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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रविवादः ७२१ प्रवेरित प्रविवादः (पुं०) [प्र+वि वद्+घञ्] झगड़ा, कलह, वैमनस्क। आचरण, व्यवहार, व्यवसाय। (सुद० १११) प्रविह (अक०) विहार करना-प्रविहर्तुम्। (वीरो० ५/३७) ०परिपालन, योग परिपालन। 'प्रवर्तनं प्रवृत्तिः अनुष्ठान प्रविविक्त (वि०) अकेला, एकमात्र। रूपा' वियुक्त, अलग। सार्थकता, भावार्थ। प्रविश् (अक०) प्रवेश करना, घुसना। (सुद० ९५) प्रवेष्टु ०अनावरत प्रयत्न, निरंतर प्रयत्न। (भक्ति० २९) प्रविवेश। (सुद० ९४) स्थायित्व, प्राबल्या प्रविश्लेषः (पुं०) [प्र+वि+श्लिष्+घञ्] गुप्त वार्ता, समाचार। प्रविषण्ण (भू०क०कृ०) [प्र+वि+सद्+घञ्] खिन्न, उदास, भाग्य, नियति, कलना। (जयो०वृ० १/३९) व्याकुल। ०प्रत्यक्षज्ञान। प्रविष्ट (भू०क०कृ०) [प्र+विश्+क्त] ०घुसा हुआ, अंदर प्रवृत्तिज्ञः (पुं०) जासूस, गुप्तचर, दूत। गया हुआ। (जयो० १/९) प्रवृत्तिनिमित्तं (नपुं०) प्रयत्न के कारण। लगा हुआ, ध्वस्त। प्रवृत्तिमार्गः (पुं०) सक्रिय मार्ग। प्रविष्टकं (नपुं०) रंगभूमि का द्वार। प्रवृत्तिशील (वि०) प्रयत्न युक्त। (जयो०वृ० १/५) प्रविस्तरः (पुं०) [प्र+विस्तृ+अप्] ०परिधि, घेरा, ध्वस्त।। प्रवृद्ध (भू०क०कृ०) [प्र+वृध्+क्त] पूर्ण बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्रवीचारः (पुं०) मैथुन व्यवहार। प्राप्त हुआ। ०बड़े पुरुष। (सुद० ४/१९) प्रवीक्ष्यता (वि०) स्पष्टीकरण। (समु० १/२८) पूरा, गहरा। प्रवीण: (पुं०) कुशल, चतुर। (सु० २/२ दयो० ८२) अहंकार, घमंडी। प्रवृद्धिः (स्त्री०) [प्र+वृध+क्तिन्] ०बढ़ना, वृद्धि। (जयो २/११४) उन्नति, समृद्धि, पदोन्नति। प्रवीर (वि०) अग्रणी, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ, पूज्य। उत्कर्ष। ___ शौर्यसम्पन्न, शक्तिशाली। प्रवेक (वि०) [प्र+विच्+ण्वुल्] श्रेष्ठ, उत्तम, अच्छा। प्रवीरः (पुं०) योद्धा, नायक, वीर, सुभट। (जयो०८/५) प्रवेगः (पुं०) [प्र+विज्+घञ्] वेग, गति, चाल। मुख्य व्यक्ति। प्रवेटः (पुं०) [प्र+वी+ट] जौ, यव। प्रवृत (भू०क०कृ०) [प्र+वृ+क्त] संकलित, घटा हुआ। प्रवेणिः (स्त्री०) [प्र+वेण+इन्] बालों का जूड़ा, शृंगारहीन ०चुना हुआ। बाल। प्रवृत्त (भू०क०कृ०) [प्र+वृत्+क्त] ०आरंभ किया गया, शुरू झूल, हस्ति पलान। किया गया। प्रवाह। प्रगत, कटिबद्ध, संलग्न। प्रवेणिका (स्त्री०) कबरी, बेणी। (जयो० १३/५३) स्थिर, निश्चित, निर्धारण। प्रवेत् (पुं०) [प्र+अच्+तुन्] ०सारथि, रथवाला, यान वाहक निर्बाधा चालका विवादरहित। प्रवेदन (नपुं०) [प्र+विद्+णिच+ल्युट] निवेदन, प्रतिवेदन, प्रवृत्तः (पुं०) गोल, वलयाकृति, वलयाकार आभूषण, कंगन। घोषणा। प्रवृत्तकं (नपुं०) रंगभूमि का अवतरण। समुचित ज्ञान। (जयो० २७/५) प्रवृत्तालम्बनं (नपुं०) गोलाकार रंगमंच का आधार। जतलाना, ऐलान करना। प्रवृत्तिः (स्त्री०) [प्र+वृत्+क्तिन्] ०प्रगति, मूल, स्रोत, उदय। | प्रवेपः (पुं०) [प्र+वेप्+घञ्] कपकपी, ठिठुरन, थरथराना। (जयो० १/६) (दयो० ३८) आरंभ, शुरु। (सुद २/२ (जयो० १/५) प्रवेपकः (पुं०) [प्र+वेप्क न्+घञ्] कपकपी। प्रयोग, रुचि, रुझान। (सम्य० १०२) प्रवेरित (पुं०) [प्रवेर+इतच्] फेंका हुआ, डाला हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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