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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवालभाव ७२० प्रविलुप्त यात्रा, अन्यत्र गमन। प्रविचक्षणं (नपुं०) चरित्र से युक्त। ०परदेश गमन। प्रविचयः (पुं०) [प्र+वि+चि+अच्] ०परीक्षा, खोज, अनुसंधान। प्रवालभाव (पुं०) उत्कृष्ट भाव, बोझल भाव। (वीरो० ३/२३) | प्रविचार: (पुं०) विवेचन, विवेक। प्रवालोपादनं (नपुं०) अंकुर का फूटना। (जयो० २२/१०) मैथुनव्यवहार-मैथुनोपसेवनं प्रविचार:। (त०वा० ४/७) प्रवासः (पुं०) [प्र+वस्+घञ्] विदेश गमन, विदेशयात्रा। 'प्रवीचरणं प्रवीचारो मैथुनोपसेवनम्' (जयो० ३/३३) प्रविचेतनं (नपुं०) विवेक, चेतना, ज्ञान, समझ। प्रवासवात (नपुं०) यात्रा गया हुआ, विदेश जाने वाला। प्रवितत (भू०क०कृ०) [प्र+वि+तन्+क्त] फैलाया हुआ, बिछाया प्रवासनं (नपुं०) [प्र वस्+णिच्+ल्युट्] विदेश निवास, अन्यत्र हुआ। गमन। ०अस्त व्यस्त। निर्वासन, देश निकाला। निवास। (सुद० १/३७) प्रवासावरः (पुं०) यात्रा का समय (जयो० २१/७३) प्रविताड्यलोकः (पुं०) पहरेदार। (समु० ३/३२) प्रवासिन् (पुं०) [प्रावस्+णिनि] यात्रा का समय (जयो० | प्रविदारः (पुं०) [प्र+वि+दृ+घञ्] विदीर्ण होना, खण्ड खण्ड २१/७३) होना। प्रवासिन् (पुं०) [प्र+वस्+णिनि] यात्री, मुसाफिर। (दयो०८९) ०खुलना। यात्री, वटोही, परदेशी, गमनशील। (जयो० १४/९५) | प्रविदारणं (नपुं०) [प्र+वि+दृणिच्+ ल्युट्] फाड़ना, विदीर्ण प्रोषित। (जयो० १९/६२) करना। प्रवासी (पुं०) देखो ऊपर। तोड़ना, ध्वस्त करना। प्रवाहः (पुं०) [प्र+व+घञ्] ०धारा, बहाव। (सम्य० १३३) संघर्ष, युद्ध, लड़ाई। (जयो० ३/९९) गड़बड़ी, हल्ला-गुल्ला। नदी मार्ग, जलमार्ग, का प्रवाह। प्रविधायि (वि०) प्रदान करने वाला। (सम्य० ७२) ०नुति। (जयो०वृ ११/९) प्रविद्ध (भू०क०कृ०) [प्र+विध्+क्त] डाला हुआ, फेंका हुआ। सक्रियता, सजगता। प्रविद्धदोषः (पुं०) अनवस्थित चित्त से वन्दन, गुरु वन्दना तालाब, सरोवर, झील। समाप्ति से पूर्व चला जाना। प्रवाहकः (पुं०) [प्र+व+ण्वुल्] भूत, प्रेत, पिशाच। प्रविद्रुत (भू०क०कृ०) [प्र+वि+द्रु+क्त] भगाया हुआ, प्रवाहनं (नपुं०) [प्र+व+णिच् ल्युट्] आगे बढ़ाना, आगे ले जाना। तितर-बितर किया हुआ। ०दस्त कराना। प्रविभक्त (भू०क०कृ०) [प्र+वि+भज्+क्त] वियुक्त, अलग प्रवाहिका (स्त्री०) [प्र+व+णिच ल्युट] ०दस्त लग जाना। अलग किया हुआ। नदी, सरिता। विभाजन किया गया, विभाजित किया हुआ। प्रवाही (स्त्री०) [प्रवाह+ङीप्] रेत, बालू। प्रविभागः (पुं०) [प्र+वि+भज+घञ्] वितरण, वर्गीकरण। प्रविकीर्णः (भू०क०कृ०) [प्र+वि+कृ+क्त] फैलाया हुआ, हिस्सा, बंद। बिखेरा हुआ, इधर-उधर छितराया हुआ, तितर-बितर प्रविभृ (अक०) बनना, तैयार होना। (समु० २/६) किया हुआ। प्रविरः (पुं०) पीला चंदन। प्रविघ्न (वि०) व्यवधान। प्रविरल (वि०) वियुक्त, बहुत दूर। प्रविख्यात (भू०क०कृ०) [प्र+विख्या+क्त] ०प्रसिद्ध, ख्यात, ०बहुत कम, विरले ही। विश्रुत। स्वल्प, थोड़े। ० बुलाया गया। प्रविलयः (पुं०) [प्र+वि+ली+अच्] विलीन होना, शुष्क होना। प्रविख्याती (स्त्री०) [प्र+वि ख्या+क्तिन्] * कीर्ति, प्रसिद्धि, यश। प्रविलुप्त (भू०क०कृ) [प्र+वि लुप्+क्त] काटा हुआ, निकाला विख्याती, ख्याती, अधिक प्रसिद्धि। हुआ, हटाया हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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