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तीर्थोदक
४४६
तुच्छ
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तीर्थोदकं (नपुं०) तीर्थस्थान का जल, पवित्र स्थान का जल।
(जयो० वृ० १८/२६) तीन (वि.) [तीव्र रक्] कठोर, प्रचण्ड, तेज, उग्र, तीखा,
पैना। तीव्रगतिः (स्त्री०) तेजगति। तीव्रगति (वि०) शीघ्रगामी, फुर्तीला, अत्यधिक गतिमान। तीव्रतर (वि०) कठोर से कठोर। तीव्रपरिणामः (पुं०) उत्कृष्ट भाव, कठोर भाव। तीव्र पौरुषं (नपुं०) अत्यधिक साहस, विशेष शौर्य, शूरवीरता। तीव्रभावः (पुं०) उत्कृष्ट परिणाम, गतिमान भाव। 'उत्कटो
भवति यः परिणामः स तीव्र इत्युच्यते' (जैन०ल० ४९६) तीव्रमन्दभावः (पुं०) प्रकर्षता एवं अपकर्षता का परिणाम,
पगरिसापगरिसत्तं तिव्वमन्दभावो णाम। (धव० ५/१८७) तीवसंवेगः (वि०) दृढ़ आवेग युक्त, अत्युग्र, अत्यन्त तेज। तु (अव्य०) [तुद्-डु] विरोधवाचक अव्यय, प्रथम शब्द
प्रयोग के बाद प्रयोग। परन्तु, किन्तु, तो, तथा, तो भी। ० दु:खाम्बुनिधौ तु सेतुः। (सुद० १/२) ० कि, जो कि-तदेक भागो भरताभिधान: समीक्षणाद्यस्य तु विद्विधानः। (सुद० १/१३) • तु पादपूरणे (जयो० २/१३५, सुद० १/२) 'प्राणादपीष्टं जगतां तु वित्तम्' (जयो० २/१३५) • जबकि-सुषुवे शुभलक्षणं सतं रविमैन्द्रीव हरित्सती तु सम्। (सुद० ३/१) ० तु तुकार इहेवार्थक (जयो० २३/७५) ० निश्चये-प्रशंसायां वा-तरङ्ग-भङ्गीतरलाभि- नेतुर्जगाम जन्माथ च मानसे तु। (जयो० ९१/९) • जैसे-किं पतिता व्रततो धृतापि तु लङ्कापतिना तेन। (सुद० ८८) ० ही-श्रुतमश्रुतपूर्वमिदं तु कुतः। ० और तथा (सम्य० १/११) ० मानो कि-'करौ पलाशप्रकरौ तु' (सुद० २/२७) ० श्रेष्ठता, भेद, आदि के अर्थ में भी 'तु' प्रत्यय का प्रयोग
होता है। तुक् (पुं०) पुत्र, सुत, बालक। 'राज्ञस्तुक् सुतो जयकुमारः'
(जयो० १/७५) सुद० २/४७, जयो० २३/५१, दयो० ३७) तुक् जा (वि०) पुत्र उत्पन्न करने वाली। तुक संग्रह (वि०) शिशुकुल, शिशु समूह। 'तुक् लोकं
चालाजा प्रजा' इति धनंजयः। (जयो० १४/७)
तुकार (अव्य०) तु, तो, तुकाराभाव (वि०) तु का अभाव, तु का लोप। (जयो०
११/५२) तुक्खारः (पुं०) विन्ध्याचल की एक जाति। तुङ् (पुं०) तुक्, पुत्र, सुत, तनया न तुङ् ममायं कुविधामनुष्या
देकेति बुद्ध्या सुतमत्र पुष्यात्। (सम्य० ६८) तुङ्ग (वि०) [तुञ्ज+घञ्, कुत्वम्] १. उन्नत, ऊँचा, उत्तुंग।
(जयो० ९/९५) २. प्रमुख, प्रधान, श्रेष्ठ, मुख्य। ३. तीव्र,
उग्र, जोशी। तुङ्गः (पुं०) उन्नत, ऊँचा, पर्वत, चोटी, शिखर, कूल १.
बुधग्रह, २. गेंडा नारिकेल तरु। तुड़कथा (स्त्री०) प्रमुख कथा, श्रेष्ठ कथा। तुङ्गकूट (पुं०) उन्नत शिखर। तुङ्गगति (वि०) उग्र गति। तुङ्गगृहं (वि) उन्नत घर, उच्च गृह। तुङ्गचाप (वि०) उत्तम चाप। तुङ्गजाति (वि०) उत्तम जाति, प्रमुख जाति। तुङ्गज्योति (वि०) प्रखर ज्वाला, तीव्र प्रकाश। तुङ तोरण (वि०) उच्च तोरण, ऊँचा तोरण, श्रेष्ठ तोरण। तुङद्वार (वि०) प्रमुख द्वार, मुख्य दरवाजा, अभीष्ट प्रवेश द्वार। तुङ्गधाम (वि०) उत्तम धाम, श्रेष्ठ स्थान। तुङ्गबीजः (पुं०) पारा, एक धातु विशेष। तुङ्गभद्रः (पुं०) हस्ति, श्रेष्ठ ज्ञान, उन्मत्त करि। तुङ्गभद्रा (स्त्री०) एक नदी। तुङ्गनाद (वि०) उच्च नाद। तुङयोग (वि०) प्रबल योग, उत्तम योग। तुङ्गरवि (वि०) प्रचण्ड सूर्य, तेज दिवाकर। तुङ्गवेणा (स्त्री०) एक नदी। तुङ्गशिखरः (वि०) उच्च शिखर। तुङ्गशेखः (पुं०) पर्वत विशेष। तुङ्गस्थानं (नपुं०) प्रमुख स्थान। तुङ्गी (स्त्री०) [तुङ्ग ङीष्] १. रजनी, २. हरिद्रा, हल्दी। तुनिवसन्निवशः (पुं०) स्थान नाम। (वीरो० १४/११) तुकीशः (पुं०) १. चन्द्र, २. सूर्य। तुङ्गीपतिः (पुं०) चन्द्र। तुच्छ (वि०) [तुद्+क्विप्-तुद्+ छोक] शून्य, मन्द, अल्प,
हीन, असार, नगण्य, परित्यक्त, तिरस्करणीय। (जयो० १/११) तुच्छास्त्वसारा मुद्गफली प्रभृतय इति
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