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तुच्छं
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तुरङ्गशाला
तुच्छं (नपुं०) तुष, भूसी।
तुन्दचरिमृज् (वि०) श्रमहीन, सुस्त, आलसी। तुच्छता (वि०) अल्पता, हीनता।
तुन्दमृज् (वि०) आलसी, सुस्त। गुणो न कस्य स्वविधौ प्रतीतः सूच्याः न कार्यं स तु कर्तरीतः। । तुन्दवत् (वि०) [तुन्द-मतुप] तोंदवाला, उभरे हुए पेट वाला, मोटा। ततोऽन्यथा व्यर्थमशेषमेतद्वस्तूत नस्तुच्छ तया सुचेतः। तुन्दिक (वि०) तोंद वाला, मोटे पेट वाला।
(वीरो० १७/३) तुन्दिकासमीप (वि०) नाभिदेश। (जयो० १८/९४) तुच्छद्गुः (पुं०) एरण्ड तरु।
तुन्दिन् (वि०) तोंद वाला। तुच्छधान्यः (पुं०) भूसी, चूर, तुष।
तुन्दिभ (वि०) तोंद वाला, भरा हुआ। तुच्छधान्यकः (पुं०) भूसी, चूर, तुष।
तुन्दिल (वि०) तोंद वाला। तुञ् (अक०) उन्नत होना, उत्तुंग होना।
तुन्न (वि०) [तुद+क्त] आहत, घायल, चोट ग्रस्त। तुञ्जः (पुं०) [तुञ्+अच्] इन्द्र का वज्र।
तुन्नवायः (पुं०) दर्जी। तुटुमः (पुं०) [तुट् उम] मूषक, चूहा।
तुभ् (सक०) प्रहार करना, पीड़ा देना, घायल करना। तुण (सक०) टेढ़ा करना, मोड़ना, झुकाना, ठगना, कपट करना। तुमुल (वि०) [तु+मुलक्] शोरगुल, उद्विग्न, हंगामा, होहल्ला, तुण्डं (नपुं०) [तुण्ड+अच्] मुंह, मुख। (जयो० २१/१०) १. | आक्रोश स्थान, उत्तेजना। __ चेहरा, २. चोंच, ३. हस्ति सूंड।
तुम्बः (पुं०) [तुम्ब्+अच्] लौकी, तूंबी। तुण्डिः (नपुं०) [तुण्ड्+इनि] मुख।
तुम्बरः (पुं०) गन्धर्व। तुण्डिका (स्त्री०) नाभि (जयो०५/७८)
तुम्बा (स्त्री०) [तुम्ब टाप्] लम्बी लौकी, बड़ी तूंबी। तुण्डिन् (पुं०) शिव। (जयो० ५/७८)
तुम्बी (स्त्री०) तूंबी, कडुवी लौकी। जो सुराई के समान, नीचे तुण्डिकेरी (स्त्री०) कुनरु लता, बिम्ब लता। (जयो०)
मोटी और ऊपर पतली होती है। कमण्डल (जयो० कर्मकरीति नाम्नास्यास्तुण्डकेरी महौजस। (जयो०)
२७/२८) समाख्याता फलं लब्धं बिम्वन्तु दरवाससः।। (जयो०) तुम्बीफलः (नपुं०) अलाबुफल, आल, लौंकी। (जयो० तुण्डिकाकुहरः (पुं०) नाभिप्रदेश। (जयो० ११/९९)
१४/६५) तुण्डिभ (वि०) तुन्दी, तोंद।
तुम्बुरुः (पुं०) गन्धर्व। तुण्डिल (स्त्री०) [तुण्ड्+भ] १. वाचाल, मुखरी, अधिक बात | तुरगः (पुं०) घोड़ा, अश्व, हय।
करने वाला, गप्पी। २. उभरी हुई नाभि वाला, तोंद वाला। तुरगाक्रान्त (वि०) तुरग से आक्रान्त। नहि वेत्ति निजं तुण्डी (स्त्री०) नाभि, तोंद, सुण्डी। (जयो०७० ३/४७)
स्मरादरस्तुरगाक्रान्तमपीत इत्यसौ। (जयो० १३/४०) तुण्डीमण्डलं (नपुं०) नाभिचक्र। (जयो० २१/२०)
तुरङ्गः (पुं०) [तुरेण वेगेन गच्छति-तुर+गम्+ड] घोटक, तुत्थः (पुं०) [तुद्+थक्] १. आग, २. प्रस्तर, पत्थर, ३. अश्व, हय। (दयो० ४०, जयो० ४/१६)
कज्जल विशेष, नीला थोथा, तूतिया जो सुर्मे की भांति तुरङ्गं (नपुं०) मन, विचार। आंख में डाला जाता है।
तुरङ्गगतिः (स्त्री०) घोड़े की चाल। तुत्थ-कथा (स्त्री०) कज्जल कथा। (जयो० ९/३९) तुरङ्गद्विषणी (स्त्री०) भैंस। तुत्था (स्त्री०) १. छोटी इलायची, २. नील का पौधा। तुरङ्गप्रियः (पुं०) जौ। तुत्थाञ्जनं (नपुं०) कज्जल, अक्षि औषधि।
तुरङ्गमः (पुं०) [तुर+गम्+खच्] अश्व, घोड़ा, अश्वकार तुद् (सक०) प्रहार करना, घायलकरना, कष्ट देना, खरोंचना, (जयो० सताना, चोट पहुंचाना।
तुरङ्गमेघः (पुं०) अश्वमेध यज्ञ। तुन्दं (नपुं०) [तुन्द्द न्] तोंद, पेट।
तुरङ्गयायिन् (पुं०) किन्नर। तुन्दकूपिका (स्त्री०) नाभि, नाभिगत।
तुरङ्गवक्त्राः (पुं०) किन्नर। तुन्दकूपी (स्त्री०)
तुरङ्गवदनः (पुं०) किन्नर। तुन्दपरिमार्ज (वि०) आलसी, उदासीन, श्रमहीन।
तुरङ्गशाला (स्त्री०) अस्तबल।
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