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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थकर ४४५ तीर्थेश्वरः ० श्रमण-श्रमणी, श्रावक श्राविका का समूह। तीर्थपदः (पुं०) तीर्थंकर पद। ० पवित्र स्थान, जिस स्थान से अर्हत् जिन मुक्ति को तीर्थपति (पुं०) तीर्थ नायक। (भक्ति० २५) प्राप्त हुए या तपश्चरण का पवित्र स्थान। तीर्थ-बिंद (वि०) तीर्थ समूह। ० धर्मक्षेत्र-तीर्थाय-धर्मक्षेत्राय (जयो० २/११०) तीर्थभानु (पुं०) तीर्थ तेज। (वीरो० ११/३०) ० धर्म तीर्थ-'स्वशक्तितोऽसौकृततीर्थसेव:' (सुद०११०) तीर्थभावः (पुं०) तीर्थंकर का परिणाम। • जलावगाहप्रदेश-निशीथतीर्थो कृतमज्जनेन जयाय | तीर्थभूमिका (स्त्री०) तीर्थंकर प्रकृति की प्रारम्भिकी (जयो० निर्यातमथ स्मरणे। (जयो० १६/१)। २४/१६) ० इष्ट प्राप्ति-मुमुक्षुभिस्तीर्थतया किलेष्टा। तीर्थभृत् (व०) तीर्थ रूपता। (जयो० २३/८०) तीर्थकर (पुं०) अर्हत् प्रभु, अर्हन्त भगवन्। तीर्थ मार्ग के तीर्थमय (स्त्री०) तीर्थरूप। जिसे तीर्थमय अपना करके भव्य प्रणेता। (वीरो० ९/१८) तीर्थकर:-तरन्ति संसारं येन | जीव भव पार करे। (भक्ति०६) भव्यास्तत्तीर्थम्। तीर्यते संसार-समुद्राऽनेनेति तीर्थम्, तीर्थयात्रा (स्त्री०) अकार्य से निवृत्त होना, धर्मयात्रा तीर्थस्थान तत्करणशीलास्तीर्थकरा:।। में जाकर भक्तिभाव पूर्वक विचरण। तीर्थकरत्व (वि०) तीर्थकर पना, सोलह भावना का स्थान। तीर्थराजः (पुं०) प्रयाग, गङ्गा-यमुना का संगम स्थल, जिस (वीरो० ७/२०) (वीरो० ७/३०) स्थान पर हो। ऐसा पवित्र स्थान तीर्थराज कहा जाता है। तीर्थकरनामः (पुं०) अरहन्त अवस्था की प्राप्ति का कारण। (जयो० वृ० ६/१०७) 'यस्य कर्मण-उदयेन परमार्हन्त्यं त्रैकोक्य-पूजाहेतुर्भवति । तीर्थरूपः (पुं०) तीर्थस्वरूप (वीरो० ४/३७) वाणी प्रोक्तां तत्परमोत्कृष्टं तीर्थकर नाम-जस्स कम्मस्स उदएण जीवस्स प्रथितसुपृथुप्रोथया तीर्थरूपाम्। (वीरो० ४/३७) तिलोयपूजा होदि तं तित्थयरं णाम' (धव० ६/६८) तीर्थसम्भव-पथः (पुं०) तीर्थभवतार मार्ग, वृद्धपरम्परा मार्ग। तीर्थकरसिद्ध (वि०) तीर्थंकर होकर सिद्ध होने वाले जीव। (जयो० ३/१०) जैनवागिव सरित्सुवेशिनी तीर्थसम्भव तीर्थकृत् (वि०) भगवत् अवतार, तीर्थंकर। पथानुवेशिनी। 'तीर्थसम्भवेन पथा वृद्ध परस्पराया तेन अन्तःपुरे तीर्थकृतोऽवतार। (वीरो० ५/५) मार्गेण यद्वा उपायसञ्जातेन वर्त्मनाऽनुवेशिनी प्रवेशवती, निर्दोष रूपाय गुणाश्रयाय तस्मै च भव्याम्बुज भास्कराय। वाण्या आप्तोपज्ञेन, वर्त्मनाऽनुवेशिनी' (जयो० वृ० ३/१०) समस्त-सत्त्वप्रप्तिबोधकाय, नमोऽर्हते तीर्थकते जिनाय।। | तीर्थसंकथा (स्त्री०) तीर्थं चरित्र की उत्तम कथा। (तीर्थ भक्ति० भ०७०२) तीर्थसिद्ध (वि०) संसार समुद्र से पार होने वाले। तीर्थकृत्व (वि०) तीर्थकर्ता (जयो० ४० ७२/७३) तीर्थसेवः (पुं०) धर्मतीर्थ का आचरण। (सुद० १११) दिनानि तीर्थकर्तृ (वि०) तीर्थ को करने वाला तीर्थकर्तुः स्वकीयस्य अत्येति तटस्थ एव स्वशक्तितोऽसौ कृततीर्थसेवः। संस्कारस्य त्वनर्थता (हि० सं० २९) (सुद० १११) तीर्थंकर (वि०) तीर्थमार्ग को स्थापित करने वाले तीर्थंकर। | तीर्थस्नातः (वि०) १. तीर्थ में नहाया हुआ। (दयो० १४) २. तीर्थंकरभक्तिः (स्त्री०) चतुर्विंशति तीर्थंकरो की स्तुति। ऋतुकाल में नहाई हुई। तीर्थस्नाताङ्गनाजकवरीभारमिव (भक्ति० १८) मुक्तबन्धनम्। (दयो० वृ० ५३) तीर्थघाट (नपुं०) तीर्थस्थान, तीर्थस्थल। तीर्थाङ्कपदं (नपुं०) विशिष्ट अंगों का उद्घाटन स्थान। 'तीर्थाङ्कानां तीर्थज्योतिः (स्त्री०) तीर्थदीप। शासनप्रकाशकरणां पदस्थानं-(जयो० वृ० १६/४७) तीर्थतटः (पुं०) तीर्थ प्रान्त। तीर्थेशः (पुं०) तीर्थकर प्रभु। तीर्थता (वि०) तीर्थरूपता। मुमुक्षुभिस्तीर्थतया किलेष्टा | तीर्थेशजन्माभिषः (पुं०) तीर्थंकर ऋषभादि का जन्माभिषेक। स्याद्वादमुद्राङ्कितचक्रचेष्टा। सुकौशला या नयसत्त रङ्गा (जयो० १९/२) 'तीर्थशान्तं वृषभादीनां जन्माभिषव' (जयो० पुनातु सा मामपि वाक्सुगङ्गा।। (भक्ति० ५) १९/२) तीर्थनाथः (वि०) तीर्थंकर प्रभु। (समु० १/३) तीर्थेश्वरः (पुं०) तीर्थंकर प्रभु, तीर्थाधिपति, तीर्थनायक। तीर्थनायकः (पुं०) तीर्थपति, तीर्थंकर प्रभु। (भक्ति० २५) (भक्ति० १८) 'जाता यत्सुतमात्र एव सुखदस्तीर्थेश्वरे (वीरो० ४/६१) किम्पुनः' (वीरो० ४/६२) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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