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तिलशः
तीर्थं
तिलशः (अव्य०) [तिल+शस्] तिल तिल करके, खण्ड-खण्ड तीक्ष्णपुष्पा (स्त्री०) लवंग पादप। करके, अल्प टुकड़े करके।
तीक्ष्णबुद्धि (वि०) तीव्रमति, उत्तम धी, तेजबुद्धि, कुशाग्रबुद्धि तिलत्सः (पुं०) एक सर्प विशेष।
तीक्ष्णरश्मिः (पुं०) रवि, सूर्य। तिलाञ्जली (स्त्री०) छोड़ना, उपेक्षा करना। (सुद० ७१) तीक्ष्णरसः (पुं०) १. जवाखर, २. जविष।
वसनेभ्यश्च तिलाञ्जलिमुक्त्वाऽऽह्वयति तु दैगम्बर्यन्तत्। तीक्ष्णलौहं (नपुं०) इस्पात। (सुद० ८१)
तीक्ष्णशूकः (पुं०) जौ। तिलाङ्कः (पुं०) तिल का चिह्नः तिलस्याङ्कश्चिह्नः' (जयो० तीक्ष्णांशुः (पुं०) १. सूर्य , २. अग्नि। ६/२१)
तीक्ष्णातपः (पुं०) १. सूर्य, २. अग्नि। तिलोत्तमा (स्त्री०) रम्भा (जयो० ११/७७) अप्सरा (दयो० तीक्ष्णातपना (स्त्री०) कठोर तप की साधना।
१/११) १. देवीयं ते महाभाग समा समतिलोत्तमा (सुद० । तीक्ष्णाराधना (स्त्री०) उत्कृष्ट भक्ति भाव। ११/३८) २. अच्छे लक्षणों वाली नारी- तिलोत्तमापि तीक्ष्णायसं (नपुं०) इस्पात। रम्भा अप्सरसः सम्प्रति। (जयो० वृ० ११/७७)
तीक्ष्णोपायः (पुं०) प्रबल उपचार। तिलोकदं (नपुं०) तिल और जल।
तीतारामः (नपुं०) प्रान्तोद्यान। समीपवर्ती आरामगृह बगीचा। तिलोदनं (नपुं०) तिल और दूध मिश्रित चावल।
(जयो० १४/१) तिलोयपण्णत्तिः (स्त्री०) यतिवषभ कत एक प्राचीन रचना. तीम् (अक०) गीला होना, तर होना।
जिसमें भूगोल, गणित एवं ज्योतिष का आदि विषय तीरं (नपुं०) ० किनारा, तट, कूल, समाहित है।
० प्रान्तभाग, समीपस्थल, • उपान्त, कगार, कोर। (दयो० तिल्वः (पुं०) [तिल्+वन्] लोध तरु।
४७, जयो० २१/७५) अलल्पतूलोदित तल्पतीरे। (सुद० तिष्ठदृगु (अव्य०) [तिष्ठन्यो गावो यस्मिन् काले, तिष्ठन्+गो] २/११) गो दोहन का समय, सन्ध्या समय, गोधूली बेला।
० बाण, धनुष पर चढ़कर छोड़ा जाने वाला। तीरो बाणो तिष्यः (पुं०) [तुष्+क्यप्] नक्षत्र विशेष।
यस्य स राजा गुणी। (जयो० वृ० ६/५८) बेला भाग। तिसाय (वि०) त्रि सन्ध्या (जयो० २/३६)
(जयो०६/५८) तीक् (अक०) पहुंचना, हिलना।
० गुणयुक्त तीर, भेदक तीर। तीक्ष्ण (वि०) [तिज+स्न, दीर्घः] १. पैना, कष्टप्रद, उत्तेजक, ० पार्श्वभाग, समीपवर्ती प्रान्त। (जयो० वृ० ६/५८)
उष्ण, कठोर, प्रबल, कटु, अहितकर, अशुभ, खर (जयो० तीरः (पुं०) १. बाज पक्षी, २. सीसा, टीन। ३. एक शब्द ८/६९) २. चतुर, बुद्धिमान।
विशेष, जो कौवों को उड़ाने के लिए प्रयुक्त किया जाता तीक्ष्णं (नपुं०) अयस्क, लोहा, विष, मृत्यु, शस्त्र।
है। व्येति काककलितां किलापदं तीरमित्यरमितीरयन्। (जयो० तीक्ष्णः (पुं०) चरपरा, कटुक, मिर्च, कालीमिर्च, राई।। २/३७) तीरमिति पदमरं शीघ्रमीरयन्-'तीर-तीर' ऐसा तीक्ष्णोऽसहनो वा।
कथन विशेष। (जयो० वृ० २/३७) तीक्ष्णकन्दः (पुं०) प्याज,
तीरित (वि०) [तीर+क्त] निर्णीत, साक्ष्य प्राप्त हुआ, सुलझाया तीक्ष्णकर्मन् (वि०) साहसी, उद्यमी, प्रयत्नशील, अत्यधिक गया। पार गया। दृष्टकर्मी।
तीर्ण (वि०) [तृ+क्त] १. पार किया हुआ, पार पहुंचा हुआ। तीक्ष्णकोणवर (वि०) अन्तस्थल भेदकर। (जयो० ६/१)
२. प्रसारित, फैला हुआ। तीक्ष्ण-कटाक्ष (वि०) तीव्र कटाक्ष, तिरछी चितवन्। (जयो० | तीर्थं (नपुं०) १. पथ, मार्ग, स्थान, साधन, माध्यम। २. ६/१)
श्रेष्ठमार्ग, उत्तम पथ। तीक्ष्णदष्ट्रः (पुं०) व्याघ्र।
• ज्ञान-दर्शन और चरित्र का समूह। तीक्ष्णधारः (पुं०) असि, तलवार।
० सुदीर्घ संसार सागर से पार होने का मार्ग। तीक्ष्णपुष्पं (नपुं०) लवंग, लौंग।
० जिसमें पार हुआ जाता है तीर्यतेऽनेनेति तीर्थम्'
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