SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिरोभावः ४४३ तिलरसः तिरोभावः (पुं०) दिगन्तर लीन। (जयो० १८/९५) तिलः (पुं०) [तिल+क्] १. तिल पादप। तिल का पौधा। तिरोभवति-तिर्यक् होना- तिरोभवस्येन भुवोऽवरे च वरे। (वीरो० (जयो० वृ० १७/५४) २. मस्सा, धब्बा। ९/३०) तिलकः (पुं०) [तिल-कन्] तिरोभावः (पुं०) स्वाभाविक विनाश। तिलक (नपुं०) १. तिलक नामक वृक्ष। २. स्वभाविक चिह्न। तिरोहिताञ्जनं (नपुं०) विलुप्ताञ्जन, कुञ्जल का अभाव (जयो० २. चित्रक, मस्तक पर लगाया गया तिलक जो चन्दन, १४/९२) रोली, हल्दी राख आदि का होता है। तिलकं तस्य रुचिं तिर्यपातिन् (वि०) तिरछे पड़ने वाले। (जयो० १६/२३) शोभा व्रजति। (जयो० वृ० ६/३०) आराध धाम धनतो तिर्यक् प्रचयः (पुं०) प्रदेशों का समुदाय। 'प्रदेशप्रचयो हि धरणीं समस्तां लोकत्रयी-तिलकतां प्रति यात्यतस्ताम्' (सुद० तिर्यक्प्रचयः' (प्रवचनसार वृ० २/४९) १/३६) १. शोभा, प्रसिद्धि (जयो० २/४६) शिरोमणि तिर्यक्सामान्यं (नपुं०) सादृश्यज्ञान का विषयभूत परिणाम। (जयो० १/९७) सामान्यं सादृश्यापरिणाम-लक्षणं तिर्यक् सामान्यम्- तिलकता (वि०) तिलक पना, शिर से बनाया गया चिह्न सादृशपरिणाम रूप। विशेष। प्रसिद्धि को प्राप्त हुए। भूतले तिलकतामुताञ्चतां तिर्यसूरि (वि०) सूर्य की समीपता पूर्वक गमन। 'तिरियसूरी श्रीमतां चरितमर्चतः सताम्। (जयो० २/४६) 'तिलकस्य य तिर्यगवस्थितं दिनकरं कृत्वा गमनम्।' (भ०आ०टी० भावस्तां श्रेष्ठतामञ्चतां प्राप्तवताम्' (जयो० वृ० २/४६) २२२) तिलकत्व (वि०) तिलकपना। तिर्यग्गति (स्त्री०) तिर्यंच अवस्था। (समु०८/३५) तिलकत्वमाल (वि०) तिलकपने को धारण करने वाला। तिर्यग्गतिनामः (पुं०) तिर्यंच गति नामकर्म। अस्मिन् भुवो भाल इयद्विशाले समादधच्छ्रीतिलकत्वभाले। तिर्यग्दिग्वतः (पुं०) तिरछी दिशाओं का परिमाण। (वीरो० २/२१) तिर्यग्योनिः (स्त्री०) तिरोभावगत अवस्था, तिर्यंच अवस्था। | तिलकल्कः (पुं०) खल, खली। तिल की पीठी। (जयो० वृ० तिर्यग्लोकः (पुं०) सूचि अंगुल का बाह्यरूप जगप्रतर एक | १७/५४) __ लाख योजन के सातवें भाग मात्र। तिलकाकितः (पुं०) तिलक वृक्ष की पंक्ति (वीरो०७/२५) तिर्यग्वणिज्य (पुं०) तिर्यंच सम्बंधी वाणिज्य/व्यापार का देशक। तिलकालकः (पुं०) मस्सा, काला तिल। तिर्यग्व्यतिक्रमः (पुं०) दिशा परिमाण का उल्लंघन। तिलकायित (वि०) तिलक धारण करने वाला। (जयो०१०/९०) तिर्यगतिक्रमः (पुं०) भूमि सीमा का उल्लंघन। ललाटे च तिलकायितं तिलकवदाचरति 'तिलकमिवाचरतीति तिर्यगायु (स्त्री०) तिर्यंच पर्याय का अवस्थान। तिलकायितः' (जयो० वृ० १२/२३) तिर्यगुरु (वि०) तिरः प्रसारित, वक्र कथन वाला। (जयो० तिलकिल्टं (नपुं०) खली, खला १/५२) तिलकोपमेय (वि०) तिलक की तरह उपमा वाला। (सुद० तिर्यंच् (वि०) तिर्यग्गति वाला जीव। तिरस्तिर्यगञ्चति गच्छन्ति। १/१४) तिर्यञ्च देखें ऊपर। तिलखलि (स्त्री०) खली। ० जो वक्रगमन करते हैं। तिलचूर्णं (नपुं०) तिल की खली। ० अन्तर्हित होकर गमन करते हैं। तिलतण्डुकं (नपुं०) आलिंगन। ० तिर्यग्गति नामकर्म को प्राप्त होते हैं। तिलतैलं (नपुं०) तिल का तैल। तिर्यंचकर्म (वि०) तिर्यक् कर्म वाला। तिलन्तुदः (पुं०) [तिल+तुद+खश्] तेली। तिर्यंच्जातिः (स्त्री०) पशु-पक्षी की योनि। तिलपर्णः (पुं०) तारपीन। तिर्यंच्प्रमाणं (नपुं०) चौड़ाई। तिलपुष्पं (नपुं०) तिल पादप का फूल। (जयो० ५/८३) तिर्यंच प्रेक्षणं (नपुं०) तिरछी आंख से अवलोकन। तिलपर्णी (स्त्री०) चन्दन तरु। तिर्यंचयोनिः (स्त्री०) पश-पक्षी की पर्याय। तिलकवत् (वि०) तिलक की तरह। (जयो० १२/१०७) तिर्यंचस्त्रोतस (पुं०) पशु उत्पत्ति, पशु जन्म। तिलरसः (पुं०) तिल का तेल। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy