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तिङन्तः
तिर्यक्
तिङन्तः (पुं०) ति आदि प्रत्यय। (जयो० १/३१)
तिमिरक्षणा (स्त्री०) सन्ध्या। तिज् (सक०) सहना, निर्वाह करना, भुगतना।
तिमिरघातक (वि०) अन्धकार नाशक चन्द्र या सूर्य। तितउः (पुं०) [तन्+डउ, द्वित्वम् इत्वम्] चलनी।
तिमिरनुद् (पुं०) सूर्य। तितउं (नपुं०) छतरी, छाता।
तिमिरमुतान्धकारः (पुं०) एक दैत्य विशेष, अन्धकार नामक तितिक्षा (स्त्री०) [तिज्+सन् ऊ+टाप्] त्याग, सहिष्णुता, ___ असुर। (जयो० वृ० १८/३०) सहनशक्ति, क्षमा।
तिमिररिषुः (पुं०) सूर्य। तितिक्षु (वि०) [तिज्+सन्+उ] सहिष्णु, क्षमाशील।
तिमिराख्यः (पुं०) तिमिरनामक रोग, रतौंधी (जयो० १८/१८) तितिभः (पुं०) [तितीतिशब्देन भणति तिति+भण्ड] जुगनू।
___तिमिराख्यं दोषमधुः' इन्द्रबधूटी, वीरबहोटी।
तिमिरारिः (पुं०) सूर्य, दिनकर, रवि। तितिरः (पुं०) [तिति इति शब्दं राति ददाति रा+क] तीतर, चकोर।
तिमिरुः (पुं०) १. अन्धकार, २. समुद्र। 'तिमि लातीति तं तित्तिरिः (पुं०) [तितीति शब्द रौति] तीतर।
समुद्र' (जयो० १५/९) तिथ [तिज्+थक्] (पुं०) १. अग्नि, २. प्रेम, ३. वर्षा ऋतु।
तिमिलक्षणा (स्त्री०) अन्धकार को अवकाश/स्थान देने वाली
सन्ध्या। अन्तस्थया च तिमिलक्षणयोव्रजन्ती वृत्त्यात्तया तिथिः (पुं०/स्त्री०) [अत्+इथिन्] चान्द्र दिवस, एक नियत दिवसा (जयो०)
तिरयितुं समभूत् स्रवन्ती। (जयो० २०/४८) तिथिक्षयः (पुं०) अमावस्या।
तिरः (पुं०) तिरछा, तिर्यक् (जयो० वृ० ६/६२)
तिरश्ची (स्त्री०) [तिर्यक् जाति: स्त्रियां ङीष्] पशु, पक्षी, तिथिपत्री (स्त्री०) पञ्चाङ्ग
चौपाया जानवर। तिथिप्रणी: (स्त्री०) चन्द्रमा।
तिरश्चीन (वि०) [तिर्यक् ख] टेढ़ा, पार्श्वस्थ, तिरछा। तिथिवृद्धिः (स्त्री०) तिथि की वृद्धि, जिसमें तिथि दो सूर्यों के
तिरसामान्यः (पुं०) विभिन्न पुरुषों में जो समान पुरुषत्व रहता भीतर पूर्ण होती है।
हैं, (वीरो० १९/१९) तिथिसत्कृतीद्धा (वि०) तिथियों को प्रकट करती हुई।
तिरस् (अव्य०) [तरति दृष्टिपथं तृ+असुन्] तिनिशः (पुं०) इमली वृक्ष।
तिरस्कारः (पुं०) अवहेलना। (जयो० ५/५३) तिन्तिडः (स्त्री०) इमली वृक्षा
तिरस्करणी (स्त्री०) परदा, चूंघट। तिन्तिडिका (स्त्री०) इमली वृक्षा
तिरस्कारिणी (स्त्री०) परदा, बूंघट, जवनिका। तिन्दुः (पुं०) तेन्दु का वृक्षा
तिरस्की (वि०) तिरस्कार करने वाला। (जयो० ३/४२) तिम् (सक०) आर्द्र करना, गीला करना, तर करना।
तिरस्क्रिया (स्त्री०) छिपाना, अन्तर्धान, तिरोहित, आच्छादन, तिमिः (पुं०) [तिम्+इन्] १. समुद्र, २. एक मछली विशेष।
निवारण, विघ्नहरण। (जयो० १२/२७) __ (जयो० १५/९)
तिरस्कृत् (वि०) तिरस्कार, किया गया, अवहेलित, निवारित। तिमिकोषः (पुं०) समुद्र।
(सुद०४/४७) तिमिङ्गिलः (पुं०) एक मत्स्य विशेष।
तिरस्क्लुप्तवती (वि०) प्राणेशदिशि। (जयो० वृ० १७/२६) तिमित (वि०) [तिम+क्त] गतिहीन, निश्चल। १. आर्द्र, तिरश्चक्रतु -तिरस्कार किया गया। (सुद० ४/४९) गीला, तट।
तिरस्तः (पुं०) तिर्यग्भाग, तिरछा हिस्सा। (जयो० १४/९१) तिमिध्वज् (पुं०) एक राक्षस विशेष।
तिरस्थानं (नपुं०) अन्तर्धान होना, दूर हटना। तिमिर (वि०) [तिम्+किरच्] अन्धकारपूर्ण।
तिरस्पसरित (वि०) तिर्यक् स्थापित। (जयो० वृ० १/५२) तिमिरं (नपुं०) १. तिमियुक्त, अन्धकार, श्यामवर्ण। 'नदीपरूपे तिरस्भावः (पुं०) अन्तर्धान होना, छिपना, ओझल होना।
तिमिरे बुडन्ति' (जयो० १५/२१) तिमिर रोग, शार्वर तिरहित (वि०) ओझल, अन्तर्धान। रतौन्धी (जयो० वृ० १८/१८)
तिरयते-छिपाता, गुप्त करता है। (जयो० ५/२३) तिमिरक्षति (स्त्री०) अन्धकार का नाश। 'तया वृषभदासस्या- | तिर्यक् (अव्य०) [तिरस्+ अञ्च+विवप्] टेढ़ेपन से, तिरछेपन भून्सोहतिमिरक्षतिः' (सुद० ४/१३)
से, वक्रता युक्त।
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