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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रलेहः ७१८ प्रवद् प्रलेहः (पुं०) [प्र+लिह्+घञ्] ०एक रस्सा। ०बंधन का साधन। प्रलोढनं (नपुं०) [प्र+लुठ्+ल्युट्] ०लौटना, लुड़कना। ____०उत्तोलन, उछालना। प्रलोभः (पुं०) [प्र+लुभ्+घञ्] ०अतितृष्णा, लालच, लालसा। ०ललचाना, ०उछालना। प्रलोभनं (नपुं०) [प्र+लुभ् ल्युट्] ०आकर्षण, लालच। फुसलाना, अपनी ओर खींचना। __ चारा, दाना। प्रलोभनी (स्त्री०) रेती, बालुका, रज। प्रलोल (वि०) ०प्रलोभी, लालची। ०अत्यन्त क्षुब्ध, थरथर कांपने वाला। प्रवक्तु (पुं०) [प्र+व+तृच्] ०वक्ता, उपदेशक, उद्घोषक, प्रवाचक। ०अध्यापक, व्याख्याता। ०स्पष्ट वक्ता। प्रवगः (पुं०) वानर, बन्दर। प्रवचनं (नपुं०) [प्र+वच्+ल्युट] निरूपण, कथन, प्रतिवादन। (समु० १/३६) उपदेश, व्याख्यान, अध्यापन। 'प्रकृष्टं वचनं प्रवचनम्' 'प्रकृष्टस्य वा वचनं प्रवचनम्' सिद्धान्त निरूपण। ०श्रुतज्ञान-प्रवचनं श्रुतज्ञानम्। शब्दकलाप-उच्यते भण्यते कथ्यते इति वचनं शब्दकलापः, प्रकृष्टं वचनं प्रवचनम्। (धव० १३/२८०) प्रवचनपटु (वि०) कथन करने में कुशल। बातचीत में कुशल, वाक्पटु। प्रवचनप्रभावना (स्त्री०) आगम प्रशंसा, श्रुत प्रशंसा, सिद्धान्त प्रभावना। प्रवचनभक्तिः (स्त्री०) अंग-आगम के अर्थ का अनुष्ठान, आचरण युक्त अर्थ में श्रद्धा। प्रवचनवत्सलत्व (वि०) सधार्मिक के प्रति अनुराग रखने वाला। सम्यग्दृष्टि जीवों के प्रति वात्सल्य भाव। प्रवचनविराधना (स्त्री०) सिद्धांत दोष। ०श्रुत दोष, ०आगम अर्थ में सम्यक् निरूपण की विराधना। प्रवचनसन्निकर्षः (पुं०) धर्म के उत्कर्ष का विचार। ०धर्मों के सत्त्व, असत्त्व का विचार। प्रवचनसन्यासः (पुं०) अनेकान्त रूप में प्ररूपणा। प्रवचनाद्धा (स्त्री०) प्रकृष्ट वचनों का काल-अद्धा कालः, प्रकृष्टानां शोभानां, वचनानामद्धा श्रुतज्ञानम्'। (धव० १३/२८४) प्रवचनार्थ (वि०) द्वादशांग वाणी का अर्थ। 'प्रकृष्टैर्वचनैः अर्यते गम्यते इति प्रवचनार्थ:'। (जैन०ल० ७७९) प्रवचनी (स्त्री०) द्वादशांग वाणी। 'प्रकृष्टानि वचनानि अस्मिन्, सन्तीति प्रवचनी भावागमः। अथवा प्रोच्यते इति प्रवचनोऽर्थः सोऽत्रास्तीति प्रवचनी द्वादशांगग्रन्थः। (धव० १३/२८४) प्रवचनीय (वि०) ०व्याख्यानीय, प्रतिपादनीय। विवेचनीय प्ररच्पणीय। संदर्भ से युक्त व्याख्यान करने वाला। 'प्रबन्धेन वचनीयं व्याख्येयं प्रतिपादनीयमिति प्रवचनीयम्' प्रवञ्चना (वि०) हति, हानि। (जयो०वृ० २/५७) (धव० १३/२८१) ०क्षति, ०घात, ०ठगी। प्रवञ्चनार्थ (वि०) प्रतारणार्थ। (जयो० २७/२२) ०ठगने के लिए, ०एक-दूसरे को हानि पहुंचाने के लिए। प्रवटः (पुं०) [प्र+वट्+अष्य्] गेहूं। गोधूम। प्रवण (वि०) [प्रविण्+अच्] ०बहने वाला, ढकान वाला। ०ढालू, दुरारोह, विप्रपाती। ०कुटिल, झुका हुआ। ०अनुरक्त, प्रवृत्त, संलग्न। कुशल, निपुण (जयो० ८/४६) भक्त, अनुरक्त, व्यस्त। ०भरा हुआ, पूर्ण। ०अनुकूल, उत्सुक ०आतुर, तत्पर। ०युक्त, सम्पन्न। विनम्र, सुशील, विनीत, कुशील, दत्तचित्त। (जयो० १६/६१) ०बर्बाद, क्षीण। प्रवणः (पुं०) चौराहा, चार रास्ते। प्रवणं (नपुं०) उतार। ०चट्टान। ०पर्वत का पार्श्वभाग, ढलान। प्रवत्स्यत् (वि०) [प्र+वस्+स्य+शतृ] यात्रा हेतु उद्यत, धर्म यात्रा हेतु तैयार। प्रवत्स्यत्पतिका (स्त्री०) यात्रा में उद्यत की पत्नी। प्रवद् (सक०) समझाना (सुद०७०) कहना। (समु० २/१) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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