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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रबालफलं ७०९ प्रभातजन्मन् मूंगा। 'बालको न भवन्तीति तेन नबालकेन तेन प्रवाले शिक्षण प्राप्त, सचेत हुआ। विद्रुमे पल्लवे च वा प्रकर्षेण बालकरूपे तस्मिन्न प्राप्त हुआ, सूचना दिया हुआ। धरोष्ठरूपता।' (जयो०वृ० ११/७९) प्रभञ्जनं (नपुं०) [प्र+भञ्ज ल्युट्] तोड़ना, खण्ड-खण्ड करना। प्रबाल:-जन्तु, प्राणी। प्रभञ्जनः (पुं०) हवा, पवन, झंझावात। शिष्य। प्रभद्रः (पुं०) निम्बतरु, नीम वृक्ष। प्रबालफलं (नपुं०) लाल चंदन की लकड़ी। प्रभय (वि०) भय युक्त। प्रबालभस्मन् (नपुं०) मूंगे की भस्म, आयुर्वेद में प्रसिद्ध | प्रभयान्वित (वि.) बहुत कष्ट सहित, अत्यधिक कष्टपूर्ण। प्रवाल भस्म। (जयो० २३/२) प्रबालशुक्तिः (स्त्री०) मूंगे की शीप। प्रबालकृता प्रभवः (पुं०) [प्र+भुव-अप] स्रोत, मूल उद्गम स्थान। शुक्तिर्मुक्तास्फोटाभिव्यक्तिः। (जयो०वृ० ११/६०) ०जन्म, उत्पत्ति। प्रबाहुः (पुं०) [प्रकृष्टो बाहुः प्रबाहुः] भुजा का अग्रभाग, कौंचा। नदी का उद्गमस्थान। प्रबाहुकं (अव्य०) [प्रबाहु+कप्] ऊंचाई पर। उत्पत्ति का कारण। उसी समय। ०देना, प्रदान करना-भूरानन्दमदीय। सकला प्रचरित शान्तेः प्रबुध् (अक०) जागृत होना-प्रबोधाय (सम्य० १५५) प्रभवं तत्। (सुद०८१) प्रबुद्ध (भू०क०कृ०) [प्र+बुध+क्त] ०जागृत, जागा हुआ। प्रणेता, रचयिता। (सुद० २/१८) दृष्टवा प्रबुद्धेः सुख सम्पदेवं श्रुतं उत्पत्ति स्थान, जन्म स्थल। तदेतद्भवतान्मुदे वा। (सुद० २/१८) 'ब्राह्मे मूहूर्त उत्थाय' शक्ति, सामर्थ्य, शौर्य, गरिमा, प्रताप, प्रभाव। इत्यादिसूक्तमाश्रित्य सूर्योदयात् पूर्वमुत्थानं सदाचारः' प्रभवितृ (पुं०) [प्र-भू+तृच्] शासक, महाप्रभु। (जयो०वृ० १९/१) प्रभविष्णु (वि०) [प्र+भू+ इष्णुच्] शक्तिसम्पन्न, पराक्रमी। बुद्धिमान, मतिमान, प्रज्ञावंत। प्रभविष्णुः (पुं०) प्रभु, स्वामी। चतुर, निपुण, ज्ञानी। प्रभा (स्त्री०) [प्र+भा+अ+टाप्] ०दीप्ति, कान्ति, प्रकाश, ज्ञाता, जानकर, भिज्ञ। चमक। ०पूर्ण जागृत, पूर्ण विकसित, खिला हुआ। सूर्य किरण, शरीर निर्गत प्रभा। शरीरनिर्गतरश्मिकला प्रभा। फैला हुआ, विस्तृत, विकासशील। प्रभाकरः (पुं०) सूर्य, ०शशि, ज्वाला। कार्यान्वित होने वाला, कार्यारंभ करने वाला। समुद्र, मीमांसक दर्शन का विचारक। प्रबोधः (पुं०) [प्र+बुध+घञ्] जागृत अवस्था, जागना, प्रभाकीटः (पुं०) जुगनू, खद्योत। जागरण। प्रभागः (पुं०) भाग, अंश, खण्ड। चेतना। प्रभाचन्द्र (पुं०) ०आचार्य प्रभाचन्द्र, न्यायशास्त्र के प्रसिद्ध खिलना, फैलना। जैनाचार्य, प्रमेयकमलमार्तण्ड के रचनकार। (वीरो०१/२५, जागरण, निन्द्राशून्य अवस्था। जयो० २२/८३) सतर्कता, सावधानी। प्रभाचंद्रसिद्धान्तदेवः (पुं०) आचार्य प्रभाचन्द्र। (वीरो० ज्ञान, ज्ञ, समझ, मेधा, बुद्धि। १५/४६) प्रबोधन (वि०) [प्र+बुध+णिच्+ल्युट्] जागरण, जागना। प्रभातरल (वि०) जगमगाता हुआ। प्रबोधनं (नपुं०) जागना, सचेत होना। प्रभात (वि०) प्रातःकाल। (सुद० २/१२) ज्ञान, बुद्धि, शिक्षण, उपदेश। प्रभातकालीनरागः (पुं०) प्रात:काल की रागिमा। (सु० ५/१) प्रबोधनी (स्त्री०) [प्रबोधन+ङीप्] देव उठनी एकादशी। प्रभातकिरणं (नपुं०) अरुणोदय की रश्मि। ___०ज्ञान युक्ता, सचेता। उपदेशिनी। प्रभातगेहं (नपुं०) प्रकाशघर, दीपगृह। प्रबोधित (भू०क०कृ०) [प्र+बुध+णिच्+क्त] जगाया हुआ। | प्रभातजन्मन् (नपुं०) अरुणोदय। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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