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प्रदिष्ट
७०५
प्रद्योतनं
प्रदिष्ट (भू.क.कृ०) [प्र+दिश्+क्त] ०संकेतित, आज्ञापित, |
| प्रदेशः (पुं०) [प्र+दिश्+घञ्] स्थान, स्थल, जगह, मण्डल आदेश दिया गया।
क्षेत्र, मैदान। आदिष्ट, निर्दिष्ट, स्थिर किया हुआ नियोजित देश, हिस्सा, भाग, प्रान्त। किया गया।
०कण्ठ तातु आदि स्थान। प्रदीप (सक०) [प्र+दीप्] प्रकाशित करना, आलोकित करना। जितने प्रदेश में परमाणु रहता है। ___ जलाना, उद्योत करना।
निरंश अवयव प्रदीपः (०) [प्रदीप णिच्+क] ०दीपक, दिया, दीवा, चिराग। सबसे सूक्ष्म अवगाह। 'सन्नहं अणोः परमाणाोरिवास्मात् प्रदीपन (वि०) जलाना, प्रकाश करना आलोकित करना।
प्रदेश स्वरूपम्। (जयो०वृ० १५/४१) प्रदीपभू (स्त्री०) दीपक स्थान, प्रकाश स्थान। (जयो०१८/६४) प्रकृष्टो देशः प्रदेशः, परमनिरुद्धो निरवयव इति यावत्। प्रदीपयुक्त (वि०) ०ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत संज्ञा सहित।
प्रदेशबन्धः (पुं०) जीव प्रदेशों और कर्म प्रदेशों का सम्बन्ध। अनेक दीपकों सहित। (जयोवृ० १५/३५) 'प्रदीपैर्दी- प्रदेशपर्यन्तः (पुं०) सम्पूर्ण स्थान तक। (जयो०वृ० १२/१०८) पकैर्युता सन्ध्या'
प्रदेशस्थितः (पुं०) देश में स्थित। 'श्रीमङ्गलावत्यभिधप्रदेशस्थिते प्रदीपसंज्ञा (स्त्री०) हस्व-दीर्घ-प्लुत संज्ञा-'हस्व-दीर्घ- प्लुतानां पुरे श्रीकनकाभिधे सन्। क्रमशः प्रदीपसंज्ञा' (जयोवृ० १५/३५)
प्रदेशवती (वि०) अनुवेशिनी। (जयो०वृ०३/१०) प्रदीपोत्सवः (पुं०) दीपावली। वीरो० २/२७)
प्रदेशनं (नपुं०) [प्र+दिश्+ल्युट्] ०भेंट, उपहार, प्राभृत, प्रदीप्त (भू०क०कृ०) [प्र+दीप्+क्त] ०प्रज्ज्वलित, प्रकाशित। उपदेश, अनुदेश।
० देदीप्यमान, जाज्वल्यमान, प्रकाशमान, द्युतिमान, ०संकेत करना। कान्तियुक्त।
प्रदेशिनी (स्त्री०) [प्र+दिश्+णिनि+ङीप्] तर्जनी अंगुली, प्रदीप्त गेह (वि०) जलता हुआ घर।
अभिसूचक अंगुली। प्रदीप्तगेहं (नपुं०) दीपघर, दीपस्थान।
प्रदेहः (पुं०) [प्र+दिह्+घञ्] लेप करना, मालिश करना। प्रदीप्त-बह्नि (स्त्री०) प्रज्ज्वलित आग, धधकती हुई अग्नि। ०लेप, मिट्टी या तेल का घोल चढ़ाना। प्रदीप्तसूर्यः (पुं०) तेजस्वी सूर्य।
प्रदोष (वि०) [प्रकृष्टः दोषो यस्य] ०बुरा समय, भ्रष्ट। प्रदीप्त-हिरण्यं (नपुं०) देदीप्यमान सोना, चमकता हुआ स्वर्ण। प्रदोषः (पुं०) संध्याकाल, रात्रि का प्रारंभ। प्रदीप्ताग्निः (स्त्री०) द्युतिदान, सदर्चिष, तेजयुक्त अग्नि। मत्सरभाव, दुष्ट परिणाम। (जयो० २/१०३)
दोष, त्रुटि, पाप, अपराध। प्रदीप्तिः (स्त्री०) द्युति, कान्ति, प्रभा, तेज।
अव्यवस्थित स्थिति, विद्रोह, बगावत। प्रदीप्तिसम्पादनं (नपुं०) द्युतिदान, कान्तिमय, प्रभायुक्त। प्रदोषकालः (पुं०) सन्ध्याकाल, रात्रि का समारंभ। (जयो०वृ० १७/६६) दीपदान।
प्रदोषतिमिरं (नपुं०) सन्ध्याकालीन अंधकार, निशातम, प्रदुष्ट (भू०क०कृ०) [प्र+दुष्+क्त] ०दूषित, मलिन, पापमय, रजनीतिमिर। घृणित।
प्रदोषभाव: (पुं०) रात्रि समय। (जयो० १५/२१) लम्पट, स्वेच्छाचारी।
प्रदोहः (पुं०) [प्र+दुह्+घञ्] दुहना, दूध निकालना। ०भ्रष्ट, पवित्र।
प्रद्युम्नः (पुं०) प्रद्युम्नकुमार, प्रसिद्ध कामदेव, कृष्णपुत्र। प्रदूषित (भू०क०कृ०) [प्रदूष-णिच्+क्त] विकृत, विषाक्त। । प्रद्योतः (पुं०) [प्रकृष्टौ द्योतः] ०आभा, कान्ति, प्रभा, प्रकाश, ०भ्रष्ट, पतित, गिरा हुआ, हीन।
रेशमी। (वीरो० १५/२३) अपवित्र, मलिन। (दयो० ९)
०एक नृप, उज्जयिनी राजा। प्रदेयः (सं०कृ०) [प्र+दा+यत्] प्रदान करने योग, दिए जाने | प्रद्योतनं (नपुं०) [प्र+द्युत ल्युट्] ०जगमगाना, चमकना। योग्य।
भास्वरित होना। संवहन किए जाने योग्य।
०प्रकाश, आभा।
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