________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रत्येक
७०३
प्रथा
.
..
प्रत्येक (वि०) सभी, प्रत्येक। 'एकमेकं प्रति'
प्रथमजन्मन् (नपुं०) प्रारंभिक अवस्था। प्रत्येककायः (पुं०) सभी अंग।
प्रथम-तत्त्वं (नपुं०) जीव तत्त्व। प्रत्येकजीवः (पुं०) पत्र, पुष्प, मूल, फल और स्कन्ध आदि प्रथमता (वि०) अग्रगामिता (जयो० ५/९)
के आश्रित जो एक जीव है। 'एगसरीरे एगो जीवो जेसिं प्रथम-तीर्थंकरः (पु) आदिब्रह्म, (जयो० ५/२४) नाभेय, तु ते य पत्तेया।
ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, आदिनाथ, प्रत्येकनामा (पुं०) एक शरीर की रचना। 'एक एक प्रति
नाभेय। प्रत्येक, यस्योदये प्रत्येक जीवो भवति पृथग्जीवो भवति प्रथमदर्शनं (नपुं०) आदि दर्शन, प्रारंभिक श्रद्धा। तत्प्रत्येकनामा' (जैन०ल० ७५७)
प्रथमदिवसः (पुं०) प्रथम दिन, पहला दिन, कार्य करने का प्रत्येकबुद्धः (पुं०) बाह्य प्रत्यय युक्त बुद्ध।
प्रारम्भिक समय। प्रत्येकबुद्धसिद्ध (वि०) सिद्धि/मुक्ति को प्राप्त हुए प्रत्येक बुद्ध। प्रथम द्रव्यं (नपुं०) जीव द्रव्य। प्रत्येकबुद्धिऋद्धि (स्त्री०) स्वयं शक्ति को प्राप्त होना, बिना प्रथमधर्मन् (नपुं०) प्रारंभिक धर्म, पहला धर्म, उत्तम क्षमाधर्म।
उपदेश ज्ञान, तपादि की अतिशयता को प्राप्त होना। प्रथमपुरु (पुं०) तीर्थंकर आदिनाथ, प्रथमादरणीय पुरुष। प्रत्येकवनस्पतिः (स्त्री०) पृथक् पृथक् वनस्पतियां। (वीरो० प्रथमपुरुषः (पुं०) अन्य पुरुष, आदिदेव तीर्थंकर ऋषभ। १९/३१)
प्रथममूलगुणं (नपुं०) मुनि का प्रथम अहिंसामहाव्रत, प्रत्येकविशेषणं (नपुं०) प्रति विशेषण। (जयो०वृ० १/६३) प्राणातिपातविरमण। प्रत्येकशरीरः (पुं०) प्रत्येक जीव, प्रत्येक अंग, पृथक्-पृथक् प्रथमयौवनं (नपुं०) किशोरावस्था, युवावस्था।
शरीर 'एकमेकं प्रति प्रत्येक, प्रत्येकं शरीरं येषां ते प्रथमवयस् (नपुं०) बचपन, शैशव। प्रत्येकशरीराः। (धव० ३/३३१)
प्रथमवार (वि०) पहली पहली बार। (दयो० २३) प्रत्येकाकं (नपुं०) जिस एक जीव का एक शरीर होता है, | प्रथमविरहः (पुं०) प्रारम्भिक वियोग।
प्रत्येक शरीर, पृथिवी आदि। 'एकमेकं प्रति प्रत्येक प्रथमसर्गः (पुं०) पहला सर्ग, काव्य का प्रथम अध्याय। पृथक्कादयः शरीरं येषां ते' (मूला० ५/१६)
(वीरो० १/१) प्रथ् (सक०) बढ़ाना, फैलाना, खोलना, विस्तृत करना, प्रथमसम्यक्त्वं (नपुं०) सम्यक्त्व प्राप्ति का समय, कर्मों की दिखलाना।
अन्तः कोडाकोडिप्रमाण स्थिति बांधने के बाद प्रथम प्रथ् (अक०) प्रकट होना, उदय होना। उद्घोषणा करना। सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। प्रथनं (नपुं०) [प्रथ्+ ल्युट्] फैलाना, विस्तार करना, बतलाना। प्रथमसुकृतं (नपुं०) पुण्य, सेवा। प्रकाशित करना, प्रदर्शन करना।
प्रथमा (स्त्री०) प्रथमा विभक्ति, कर्ताकारक। सूचित करना।
प्रथमाकारकः (पुं०) कर्ताकारक। प्रथम (वि०) [प्रथ्+अमच्] ०पहला, आदि, आगे का (जयो० प्रथमाधिपः (पुं०) महादेव। आदिनाथ। (जयो० ७/३३) २/४५, जयो० ३/६८)
प्रथमानुयोगः (पुं०) विशिष्ट पुरुष (जयो० १९/२५) शलाका प्रमुख, मुख्य, प्रधान, श्रेष्ठ, अनुपम। (जयो० २/४५) पुरुष का चरित्र। पुराणं चरितं चाख्यानं बोधिसमाधिदम्। (सम्य०५६)
तत्त्वप्राथार्थी प्रथमानुयोगं प्रथयेत्तराम्।। (अन००० ३/९) ०प्राचीन, पुरातन, प्रथमानुयोग। (जयो०वृ० १/६) प्रथमाप्रतिमा (स्त्री०) दर्शन प्रतिमा। प्रथम पुरुष, अन्य पुरुष।
प्रथमाभिधा (स्त्री०) प्रथम भुजा, प्रथमानुयोग। (जयो० १९/२५) प्रथमं (अव्य०) पहले, प्रमथतः, सबसे पहले का, पूर्वकाल प्रथमास्थितिः (स्त्री०) अन्त:करण से नीचे की स्थिति। का, पूर्व समय में।
प्रथमोशमः (पुं०) प्रथम उपशम भाव। (सम्य० ५६) प्रथमकल्पः (पुं०) ०आदिकल्प। प्रारम्भिक विधान। प्रथा (स्त्री०) [प्रथ्+अ+टाप्] परम्परा (मुनि० १२) रीति। प्रमुख नियम, पहला विधान।
(वीरो० १८/४८) प्रथमकल्पित (वि०) पहले सोचा गया, सर्वोच्च विचार वाला। पद्धति, ख्याति, प्रसिद्धि। (जयो० २७/७)
For Private and Personal Use Only