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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्युक्तिः ७०२ प्रत्यूषस् प्रत्युक्तिः (स्त्री०) [प्रति+वच्+क्तिन्] उत्तर, समाधान। (सुद० ८४) प्रत्युच्चारः (पुं०) [प्रति+उद्+चर्+णिच्+घञ्] आवृत्ति, अभ्यास। पुनर्चिन्तन। प्रत्युच्चारणं (नपुं०) [प्रति+उद्+च+णिच्+ल्युट्] ०आवृत्ति, दोहराना, पुनः पुनः घोकना, याद करना। प्रत्युज्जीवनं (नपुं०) [प्रति उद्+जी+ल्युट्] पुनर्जीवन होना, फिर से जन्म लेना, फिर से जी उठना। प्रत्युत (अव्य०) इसके विपरीत, इससे भिन्ना ०अधिक। भवेत् प्रत्युत दारुणा। (सुद० १२६) ०बल्कि, जो भी, दूसरी ओर तथा तथा प्रत्युत सम्विरागं। (सुद० १०१) प्रत्युत्क्रमः (पुं०) [प्रति+उद्+क्रम्+घञ्] ०उद्यत होना, तैयार होना। कार्यशीलता युक्त होना। ०प्रयाण करना, प्रस्थान करना। ०व्यवसाय का प्रारम्भ करना। प्रत्युत्क्षेपः (पुं०) पद प्रक्षेप, नृत्यांगना का पद संचालन। ०वाद्ययंत्रों की ध्वनि। प्रत्युत्तरः (पुं०) बदले में कहना, जवाब देना। (सुद० ७८) प्रत्युत्थानं (पुं०) [प्रति+उद्+स्था ल्युट्] किसी के विरुद्ध उठना, युद्ध की तैयारी करना, अभ्यागत के स्वागत के लिए उठना। प्रत्युत्थित (भू०क०कृ०) [प्रति+उद्+स्था+क्त] ०उद्यत, तत्पर, तैयार, संलग्न हुआ। फिर से उत्पन्न। प्रत्युत्पन्न (भू०क०कृ०) [प्रति+उद्+स्था+क्त] उद्यत, तत्पर, तैयार, संलग्न। प्रत्युदाहरणं (नपुं०) [प्रति+उद्+आ+ह+ल्युट्] विपक्ष का उदाहरण, दृष्टान्त देना।। प्रत्युद्गत (भू०क०कृ०) [प्रति उद्+गम्+क्त] ०अभ्यागत के स्वागत हेतु उद्यता ०आगे बढ़ा हुआ। प्रत्युद्गतिः (स्त्री०) [प्रति+उद्+गम्+क्तिन्] अभ्यागत हेतु उद्यत। आगे आना, स्वागत के लिए तैयार होना। प्रत्युद्गमनीयं (नपुं०) [प्रति उद्+गम्+अनीयर] स्वच्छ वस्त्र का जोड़ा। प्रत्युद्धरणं (नपुं०) [प्रति+उद्+ह+ल्युट्] पुनः प्राप्त करना, दी गई वस्तु को वापिस लेना। ०पुनः धारण करना, ग्रहण करना। प्रत्युद्यमः (पुं०) [प्रति+उद्+यम्+अप्] प्रति संतुलन, समतोल। प्रतिक्रिया, रोकथाम। प्रत्युद्यात (वि०) [प्रति+उद्+या+क्त] प्रतिक्रिया युक्त, आदर हेतु बाहर आना। प्रत्युत्नमनं (नपुं०) [प्रति+उद्+नम्+ ल्युट्] उछलना, पलट कर आना, पुनः उठना। प्रत्युपकारः (पुं०) [प्रति+उप्+कृ+घञ्] उपकार चुकाना, प्रतिदान, सेवा करना। (जयो०३० १६/४४) प्रत्युपकारशून्य (वि०) उपकार रहित, सेवा के बदले सेवा से रहित। 'मतङ्गजेन्द्रैर्निजदानवारि न वंशिनः प्रत्युपकार शून्याः। (जयो० १३/१०५) प्रत्युपक्रिया (स्त्री०) प्रत्यर्पण की भावना, सेवा का प्रतिफल। (जयो० १४/३४) प्रत्युपदेशः (पुं०) [प्रति+उप्+दिश्+घञ्] ०प्ररूपणा, निरूपण, कथन, उपदेश। सुझाव। प्रत्युपदेशः (पुं०) [प्रति+उप्+दिश् णिच्+घञ्] ०घेराव करना, बात मनवाने का आग्रह करना। ०कार्य करवाना। प्रत्युपदेशनं (नपुं०) [प्रति+उप्+दिश्+णिच्+ ल्युट] घेराव करना, बात मनवाना। कार्य की ओर उन्मुख करना। प्रत्युपपन्न (वि०) [प्रति+उप्+पद्+क्त] उद्यत, तत्पर, तैयार। फिर से उत्पन्न। प्रत्युपमानं (नपुं०) [प्रति+उप्+मा+ल्युट] ०आदर्श, समरूपता, तुलना। प्रत्युपलब्ध (भू०क०कृ०) [प्रति उप्+लभ्+क्त] वापिस प्राप्त फिर से गृहीत, पुनः प्राप्त हुआ। प्रत्युपस्थानं (नपुं०) [प्रति+उप्+स्था ल्युट] समीपवर्ती स्थान। प्रत्युप्त (भू०क०कृ०) [प्रति+उप्+क्त] ०जटित, भरा हुआ, बोया हुआ, स्थिर किया हुआ। ०दृढ़तापूर्वक टिकाया हुआ। प्रत्युवाच (वि०) समाधान दिया हुआ, पुनः समझाया गया। प्रत्युषः (पुं०) प्रभात, प्रात:काल, सुबह, भोर, तड़का। प्रत्यूषं (नपुं०) [प्रति+ऊष्+क] प्रभात, प्रात:काल, भोर। प्रत्यूषस् (नपुं०) [प्रति+ऊह्+घञ्] बाधा, विघ्न। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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