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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशनारी ६७५ प्रकृतिः हुआ। समस्या। प्रकाशनारी (स्त्री०) वरांगना, वेश्या। प्रकुपित (भू०क०कृ०) [प्र+कुप+क्त] क्रोधित, गुस्सा युक्त, प्रकाशनीय (वि.) अभिव्यक्तनीय, प्रकट करने योग्य। (दयो० अतिक्रोध वाला। ७८) प्रकुलं (नपुं०) [प्र+कुल+क] स्वस्थ काय, सुडौल, रम्यदेह। प्रकाशित (भू०क०कृ०) [प्रकाश् णिच्+क्त]०विहित | प्रक् (सक०) करना, बनाना, निष्पन्न करना। (सुद० ११४) (जयो०१० ४/१६) प्रकृत (भू०क०कृ०) [प्र+कृ+क्त] ०कृत, निष्पन्न, बना प्रदर्शित, प्रकृटीकृत। (सुद० ३/११) प्रकाशिन् (वि०) [प्रकाश इनि] ०प्रसन्न करने वाले, हर्षित ०आरंभ किया हुआ, नियुक्त किया गया। करने वाले। 'भास्वत: समुदयप्रकाशिनः' (जयो० ३३/१३) महत्त्वपूर्ण, मनोरंजक। प्रभावान्, कान्तियुक्त। प्रकृतं (नपुं०) मूल विषय, प्रस्तुत विषय। स्वच्छ, साफ-सुथरा। प्रकृत शास्त्रविधिः (स्त्री०) प्रसिद्ध आम रचना। (वीरो० प्रकिरणं (नपुं०) [प्र+कृ+ल्युट्] इधर-उधर बिखेरना। २२/६) क: कामबाणादतिवर्तितः स्यादित्थं परेण प्रकृता प्रकीर्ण (भू०क०कृ०) [प्रकृ+क्त] बिखरा हुआ, फैला हुआ, छितराया। प्रकृतकार्यः (पुं०) स्वयंवर विधि। (जयो० ९/८२) (सुद०८/२) प्रकाशित, प्रविस्तरित। प्रकृतप्रसाद (वि०) कृपाशील, स्वभाव से प्रसन्न रहने वाला। अस्त व्यस्त, शिथिल। स्वमिन्दुकान्तत्वमहो जगाद मुखं मृगाक्ष्याः प्रकृतप्रसाद। ०अव्यवस्थित, असम्बद्ध। (जयो० २४/१२२) ०क्षुब्ध, उत्तेजित। प्रकृतविभूतिः (स्त्री०) भस्म। (सुद०११२) (वीरो०१४/४१) विविध रूप वाला। प्रकृतात्मशुद्धिः (पुं०) स्वभाविक रुचि, मूल रुचि। प्रकृतः प्रकीर्णः (पुं०) प्रकीर्णक देव। प्रकीर्णा ग्राम्य पौरवत्। सम्पादित आदरो रुचिः। (जयो० १६/२७) प्रकीर्णं (नपुं०) विविध, नाना समुदाय, समुच्चय। प्रकृतानुरक्ति (स्त्री०) स्वाभाविक अनुराग। (वीरो० /३६) प्रकीर्णक (वि०) [प्रकीर्ण+कन्] बिखरे हुए, अस्त-व्यस्त, प्रकृतानुरागः (पुं०) मूल रूप में अनुराग, स्वाभाविक अनुराग, शिथिल। विशेष अनुराग। लालिमा, रक्तिमा सतां प्रवृत्ति प्रकृतानुरागा छितराए हुए, इधर उधर बिखरे हुए। सन्ध्येव बन्ध्येव विभूतिभागात्। (सुद० १११) प्रकीर्णकं (नपुं०) चमर, मोरपुंखा प्रकृतिः (स्त्री०) चेष्टा, स्वभाव (जयो० १६/५८) नैसर्गिक प्रकीर्णकः (पुं०) प्रकीर्णक देव, जो पौर और जनपद निवासी स्थिति, स्वाभाविक रूप मनुष्यों की तरह होते हैं वे प्रकीर्णक देव हैं। 'प्रकीर्णकाः आकृति, बनावट। पौरजनपदकल्पाः ' (महा०पु० २२/२९) ०अनुक्रम, परंपरा प्रकीर्णक काव्य, सूक्त काव्य, विविध प्रकार की सूक्तियों मूल, स्रोत, मौलिक कारण। से युक्त काव्य-'समुद्र इव प्रकीर्णक सूक्तरत्नविन्यास ०आदर्श, नमूना। निबंधनं प्रकीर्णकम्' (नीति वा० २२/१) योनि, लिङ्ग प्रकीर्तनं (नपुं०) [प्र+कृ+ल्युट्] प्रशंसा, श्लाघा, स्तवन। ०व्याकरण में प्रसिद्ध शब्द प्रकृति या धातु मूल प्रत्यय कीर्तन, भक्ति, गुणगान। विशेष। प्रकृति-प्रत्ययादिविरुक्तया शोधयन् (जयो०१० कथन, प्रतिपादन, गुणन २/५२) प्रकीर्तिः (स्त्री०) प्रसिद्धि, प्रशंसा। प्रकृति तत्त्व-सांख्यमत में प्रचलित शब्द। यश, ख्याति। वातावरण, पर्यावरण। उत्कृष्ट हर्ष होना। प्रकृति, शील, स्वभाव, भेद 'प्रकृतिशब्देन स्वभावो प्रकीर्तित (वि०) ख्याति युक्त। (सम्य० ११५) भेदश्चाभिधीयते' (जैन०ल० ७३०) 'पयडी सीलं सहावो प्रकुंचः (पुं०) [प्र+कुञ्+घञ्] विशेष माप। इच्चेयट्ठो' (धव० १२/४७८) प्रकुप् (अक०) [प्र+कुप्] क्रोधित होना, क्रोध करना। ०सत्त्व, रस और तमस् रूप प्रकृति। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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