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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकृतिकृपण प्रक्षर प्रकृतिकृपण (वि०) स्वभाव से हीन, मंदबुद्धि वाला। प्रकृतितरल (वि०) चंचल स्वभाव वाला। प्रकृतिबन्धः (पुं०) अनुभाव के स्वभाव का बन्ध, ज्ञानावरणादि कर्मों का बन्धन, ज्ञान पर आवरण होना। ज्ञानावरणाद्यष्टकर्मणां तत्तद्योग्यपुद्गलद्रव्यस्वीकारः प्रकृतिबन्धः। (निय० सं०वृ० ११/४०) प्रकृतिमरणं (नपुं०) आयुकर्म का गलन में प्राप्त होना। प्रकृतिमोक्षः (पुं०) प्रकृति का अन्य रूप परिणमन होना, प्रकृति का निजीर्ण होना। प्रकृतिसंक्रमः (पुं०) प्रकृति का अन्य रूप होना। 'जा पयडी ___ अण्णपयडि णिज्जदि एसो पयडिसकमो।' (धव० १६/३४०) प्रकृतिस्थानं (नपुं०) दो-तीन प्रकृतियों का समुदाय। प्रकृत्यनुकूलः (पुं०) प्रकृतानुरक्ति। (वीरो० ५/३५) सहज नुराग। प्रकृत्याश्रितः (पुं०) स्वभावाश्रित। (मुनि० २३) प्रकृष्ट (भू०क०कृ०) [प्र+कृष्+क्त] ० श्रेष्ठ, उत्तम, उत्कृष्ट, पूज्य। ०मुख्य, प्रधान। सुदीर्घ, लम्बा। विक्षिप्त, अशान्त। प्रकृष्टज्ञानं (नपुं०) उत्कृष्ट ज्ञान। प्रकृष्टकर्मन् (नपुं०) अशान्त कर्म। प्रकृष्टजन्मन् (नपुं०) उत्तम जन्म। प्रकृष्टकालः (पुं०) लम्बा समय। प्रकृष्ट गति (स्त्री०) उत्तम गति, सिद्धगति। प्रकृष्टगीतः (पुं०) मुख्य गाथन। प्रकृष्टतपः (पुं०) दीर्घ तप, लम्बा तप। प्रकृष्टदव्यं (नपुं०) विशाल वैभव। प्रकृष्टदानं (नपुं०) उत्तमधर्म। प्रकृष्टपुरुषः (पुं०) पूज्य व्यक्ति। प्रकृष्टफलं (नपुं०) श्रेष्ठ फल। प्रकृष्टबोध (पुं०) सम्प्रबुद्ध। (जयो० १८/२७) प्रकृष्टमतिः (स्त्री०) उत्तमबुद्धि। प्रकृष्टरात्रिः (स्त्री०) दीर्घ रात्रि। प्रकृष्टरूपः (पुं०) अच्छी विशेषता। (जयो० २/२३) प्रक्लृप्त (भू०क०कृ०) [प्र+क्लृप्+क्त] व्यवस्थित। सुसज्जीकृत, प्रद्यत। प्रक्लृप्ति (स्त्री०) सुसज्जा, उद्यम, उद्योग। जन्म-मरण, बाधा, दु:ख। कुरु तृप्ति प्रक्लृप्ति हर स्वामिन तव देवाधिसेवां सदा यामि। (७१) प्रकोथः (पुं०) [प्र+कुथ्+घञ्] सडांध, बदबू। प्रकोष्ठः (पुं०) [प्र+कुष्+स्थन्] कुहनी के नीचे की भुजा। ०घांगन, चौकोर आंगन। कक्ष, कमरा। प्रकोष्ठकः (पुं०) [प्रकोष्ठ कण] फाटक का समीपवर्ती कक्ष। प्रक्खरः (पुं०) कवच रक्षात्राण, ०श्वान, ०खच्चर। प्रक्रम (सक०) [प्रक्रिम] पूरा करना, उपक्रम करना। (वीरो० ८/२२) मापना (जयो० ३/७०) कन्यासमितिमन्वेष्टुं प्रचकाम प्रभोः पिता। (वीरो० ८/१२) समारंभ करना (जयो०वृ० ३/६७) प्रक्रमः (पुं०) कार्यारम्भ, प्रणाली, (जयो० ३/१४) पद्धति, रीति। ०पग, कदम, दूरी करना। ०अवकाश, अवसर, समय, मर्यादा। मात्रा, अनुपात, माप। प्रक्रमचर (वि०) अनुक्रम से गमन करने वाला। अनुगामी। प्रक्रमभंगः (पुं०) क्रम का टूटना, काव्य दोष होना। प्रक्रमशील (वि.) गमनशील। प्रक्रान्त (भू०क०कृ०) [प्रक्रिम्+क्त] ०गत, प्रगत। आरंभ किया गया। ०प्रस्तुत। प्रक्रिया (स्त्री०) [प्र+कृ+श+टाप्] प्रणाली, पद्धति, रीति, पद्धति। (जयो० २/२९) उच्चपद, समुन्नति। अध्याय, अनुभाग, परिच्छेद। प्रक्रियावतरणं (नपुं०) नर्तनकार्य। (जयो० २/२९) प्रक्रीड् (अक०) ०खेलना, मनोरंजन करना। •आमोद प्रमोद करना। प्रक्रीडः (पुं०) क्रीड़ा, खेल, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद। प्रक्लिन्न (भू०क०कृ०) [प्र+क्लिद्+क्त] तर, गीला, नमी प्राप्त। तृप्त, पसीजा हुआ। प्रक्वणः (पुं०) [प्र+क्वण+अप] वीणा की झंकार, वीणा की ध्वनि, क्वण-क्वण शब्द। प्रक्षयः (पुं०) [प्र+क्षि+अप्] विध्वंस, नाश, घात, बरबादी हानि। पापस्य प्रक्षयं कर्तुं पुनर्न च पार्यते। (हित० २२) प्रक्षर (अक०) स्राव होना, बहना। ०मन्द होना। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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