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प्रकरणचिन्ता
६७४
प्रकाशनं
प्रकरणचिन्ता (स्त्री०) वादी-प्रतिवादी के द्वारा साधर्म्य होने | प्रकारः (पुं०) [प्र+कृ+घञ्] रीति, ढंग, तरीका, पद्धति
से उसकी नित्यता सिद्ध करने का प्रयत्ना प्रक्रियते विधि। (सुद० १०७) साध्यत्वेनाभिधिक्रियेते अनिश्चतौ पक्ष-प्रतिपक्षौ यौ प्रकरणं, शैली। (जयो० १/१) तस्य चिन्ता' (जैन०ल० ७२९)
भेद, विविध रूपा प्रकरणिका (स्त्री०) [प्रकरणी कन्+टाप्] नाटक के लक्षणों विशेषता, विविधता। से युक्त।
मात्रक। (जयो० ११/४३) प्रकरिका (स्त्री०) [प्रकरी+कन्+टाप्] विष्कंभ, उपकथा। प्रकाश् (सक०) प्रकट करना, व्यक्त करना, स्पष्ट करना प्रकरी (स्त्री०) [प्रकट+ङीष्] नाटक में आगे आने वाली 'प्रकाशि यावत्तु तया' (सुद० १०१) कथा।
दीप्त करना, चमकाना। ०नटों की वेशभूषा।
प्रकाशन करना। रंगस्थली, चौराहा।
प्रदर्शन करना। एक गीत।
विस्तार करना, फैलावा विकास करना। प्रकर्म (वि०) कार्य का अतिक्रमण। (वीरो० १६/१५)
खिलाना। प्रकर्षः (पुं०) [प्र+कृष्+घञ्] उत्कृष्टता, श्रेष्ठता, सर्वोच्चता, प्रकाशः (पुं०) ०दीप्ति, प्रभा, कान्ति, चमकीला, उज्ज्वल। विशालता। (जयो०वृ० १)
०साफ, स्पष्ट, सुन्दर, देदीप्यमान। तीव्रता, प्रबलता, आधिक्य।
विख्यात, प्रसिद्ध, विश्रुत। प्रकर्षणं (नपुं०) [प्र+कृष्+ल्युट] आकर्षण, खींचने की विस्तरित। प्रक्रिया।
प्रदर्शन, स्पष्टीकरण। घटादि प्रकटयतीति प्रकाशः। विस्तार, लम्बाई, अवधि।
प्रकाश (वि०) कान्तिवान्, प्रभायुक्त, खिला हुआ, विकसित, ० श्रेष्ठता, सर्वोपरिता।
विस्तरित। ०ध्यान हटाना।
प्रकाशक (वि०) [प्र.काश् णिच्+ण्वुल] व्यक्त करने वाला, प्रकला (स्त्री०) अत्यंत सूक्ष्म अंश।
प्रतिपादित करने वाला। प्रकल्पः (पुं०) ०प्रकट, निश्चित, नियत, ०वास्तव। (जयो०
प्रकट करने वाला, खोजने वाला। २/१५९)
सूचित करने वाला, संकेत करने वाला। प्रकल्पना (स्त्री०) [प्र.क्लृप्+णिच्+युच्+टाप्] स्थिर करना, उज्ज्वल, प्रभावान्। नियत करना, निश्चय करना।
प्रसिद्ध, विख्यात, ख्यात। प्रकल्पित (भू०क०कृ०) [प्र+क्लप्+णिच्+क्त] ०कृत, बना | प्रकाशकः (पुं०) सूर्य, दिनकर। हुआ, निर्मित।
प्रकाशकी (वि०) दीप्ति करने वाली। (जयो० २०/८३) निश्चित किया हुआ, नियत किया हुआ।
प्रकाशक्रयः (पुं०) समान खरीदना। ०अङ्गित। (जयो०वृ०२/१५४)
प्रकाशन (वि०) प्रकाश करने वाला, प्रकट करने वाला, प्रकांडः (पुं०) [प्रकष्टः कांड:] शाखा, किसलय।
व्यक्त करने वाला। छापने वाला। प्रकांडकः (पुं०) शाखा, किसलय।
प्रकाशनं (नपुं०) प्रदर्शन, स्पष्टीकरण। प्रकांडर (पुं०) वृक्ष, तरु।
०स्पष्ट, स्वच्छ, प्रभा, कान्ति। प्रकाम (वि०) ०अत्यन्त, अति, तीव्र, विशेष, अधिक। प्रकाश में लाना। ०आनन्द, उत्साह।
० अन्तिम आहार को प्रकट करना। पगासणा चरमाहार प्रकामः (पुं०) इच्छा, वाञ्छा, चाह, कामना, संतोष।
प्रकाशनम्। (भ०आ०टी० ६९) पयासणाचरणं आहारप्रकामं (अव्य०) अत्यधिक, अत्यन्त।
प्रकटनम् (भ०आ०टी०६९) प्रकामभुज् (वि०) भूख से अधिक खाना, पेट भर खाना।
भक्त प्रत्याख्यानमरण के अादिभावों के अंतर्गत है।
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