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पोतकः
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पौद्गलिक
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०आर्शीवाद। (जयो० २७/२१) ०संधारण, ग्रहण। ०संवर्धन, वृद्धि, प्रगति।
०समृद्धि, प्राचुर्य, बाहुल्य। पोषणं (नपुं०) [पुष्+णिच् ल्युट्] पालन-पोषण, भरण,
रक्षण।
०संधारण, संवर्धन। पोषणकारि (वि०) पुष्ट करने वाली। (जयो० १४८६) पोषयित्नुः (पुं०) कोकिल, कोयल। पोषधः (पुं०) पर्व, अष्ठमी, चतुर्दशी आदि। पोषधव्रतं (नपुं०) पूर्व सम्बंधी व्रत। पोषापेशी (वि०) स्वोदर पोषण। (जयो०६/२४) पोषित (वि०) [पुष्प णिच् तृच] पालन-पोषण करने वाला।
(समु० १/२६) दूध पिलाने वाला। पोषिन् (वि०) पालन-पोषण करने वाला, पालक, पोषक, ___ रक्षक, संवर्धक। (जयो० १२/१८) पोष्य (वि०) [पुष्+ण्यत्] पालने योग्य, संवर्धन करने योग्य। पौंश्चलीय (वि०) [पुंश्चली+छण्] वेश्याओं से सम्बंध रखने
वाला।
पोतकः (पुं०) [पोत-कन्] पशुशावक। ०छोटा पादप।
घर का भूखण्ड। पोतधारिन् (पुं०) जहाज का मालिक। पोतभंगः (पुं०) जलयान का टूटना। पोतरक्षः (पुं०) नाव की चम्पू, किश्ती की डांड। पोतवणिज् (पुं०) सार्थवाह, समुद्र में व्यापार करने वाला। पोतवाहः (पुं०) नाविक, यान चालक। पोतासः (पुं०) [पोत+अस्+अच्] कपूर। पोतृ (पुं०) यज्ञकर्ता। पोताच्छादनं (नपुं०) तम्बु, पाल नौका का आवरण। पोताधानं (नपुं०) मत्स्य समूह, लघु मछलियों का झुण्ड। पोतायिकः (पुं०) जहाज, जलयान। (दयो०१/५) 'मार्जारादिगर्भ
विशेषः पोतः, तत्र कर्मविशेषादुत्पत्यर्थमाय आगमनं पोतायः। पोतायो विद्यते येषां ते पोतायिकः। (त०वृ० १/१४) 'यैः शास्त्राम्बुनिधेः पारं समुत्तर्तुं महात्मभिः। पोतायित मितस्तेभ्यः
श्री गुरुभ्यो नमो नमः।।(दयो० १/५) पोतायितः (पुं०) जलयान, जहाज। (दयो० १/५) पोतोपम (वि०) जल यान तुल्य। (जयो० २०/८९) पोत्या (स्त्री०) [पोत+य+टाप्] जलयान का बेड़ा। पोत्रः (पुं०) पोता (हित० १०) पोत्रं (नपुं०) [पू+ष्टुन्] ०वस्त्र, सूअर की थूथन।
नौका, जहाज, जलयान।
०हल की फाल। ०बजु। पोत्रायुधः (पुं०) सूअर, सूकर, बराह। पोदनपुरी (स्त्री०) बाहुवली की नगरी। (वीरो० ११/१७) पोत्रिन् (पुं०) सूकर, बराह। पोतकर्मन् (नपुं०) वस्त्र से निर्मित हस्ति, घोड़ा।
०वस्त्र की प्रतिमा, वस्त्र की गुड़िया, कपड़े की गुड़िया। 'पोत्तं वस्थं तेण कदाओ पडिमाओ पोत्तकम्म (धव० ४/२४९) 'हय हत्थि-णर णारि-वय-वग्घादिपडिमाओ
वत्थविसेसेसु उद्दाओ पोत्तकम्माणि णाम। (धव० १३/९) पोदनपुर (नपुं०) पोदनपुर नगर बाहुबली का स्थान।
(समु० ४/२७) पोलः (पुं०) [पुल्+ण] राशि, ढेर, समूह, विस्तार। पोलिका (स्त्री०) [पोली+कन्+टाप्] पूरी, गेहूं के आटे की
पीठी से तलकर बनाई गई पूड़ी। पोलिंदः (पुं०) [पोतस्य अजिंद इव] जलयान का मस्तूल। पोषः (पुं०) [पुष+घञ्] पोषण, संपालन, रक्षण, लालन।।
पौंश्चल्य (वि.) कुटलापन, वेश्यापन। पौंसवनं (नपुं०) पुमान्। पौंस्न (वि०) [पुंस+स्नब] पुरुषोचित, पौरुषेय। पौंस्नं (नपुं०) पौरुष, पुरुषत्व द्योतक। पौगंड (वि०) शिशुपन, बालकपन। पौगडं (नपुं०) बाल्यावस्था, बचपन। पौंडः (पुं०) एक देश का नाम।
गन्ना, मोटी ईख। पौंड्रकः (पुं०) [पुंड+कन्] पौंडा, ईख विशेष। पौड्रिकः (पुं०) पौंडा, ईख विशेष। पौंड्रनिषयः (पुं०) पौंड़ों का समूह। (वीरो० ) पौंड्रविपिकः (पुं०) इक्षु की यष्टि। (जयो०वृ० ३/४०) पौतवं (नपुं०) एक तोल विशेष। पौत्तिकं (नपुं०) शहद विशेष। पौत्र (वि०) [पुत्रस्यापत्यम्-अण] पुत्र से प्राप्त, पुत्र से
सम्बन्धी पौत्रः (पुं०) पोता, पुत्र का लड़का। पौत्रिकेयः (पुं०) [पुत्रिका ढक्] लड़की का पुत्र। पौद्गलिक (वि०) पुद्गल संबंधी। (सम्य० ३१)
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