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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पेशिः ६७० पोतः दुर्बल, क्षीण। ० मनोहर, सुन्दर। चतुर, कुशल, प्रवीण, प्रज्ञ, ज्ञ। पेशिः (स्त्री०) [पेश् इन्] मांस पेशी। ०मांस पिण्ड, मांस समूह। ०अण्डा, पुट्ठा। गर्भपिण्ड। पेषः (पुं०) [पिष्+घञ्] पीसना, चूर्ण करना, मसलना। पेषणं (नपुं०) [पिष्+ ल्युट्] ०पीसना, मसलना, चूर्ण करना। __ सिल, लोढी, घरघट्टी। पेषणिः (स्त्री०) पेषणी, निमंत्रण देने वाली। ___०चक्की , सिल, खरल। पेस्वर (वि०) [पेस्+वरच्] जाने वाला, घूमने वाला। नाशकारी, विनश्वर। पै (अक०) सूखना, मुरझाना, शुष्क होना। पैजूषः (पुं०) [पिंजूष+अण] कान। पैठर (वि.) [पिठर+अण] उबाला हुआ, गरम किया गया। पैठीनसिः (पुं०) धर्मशास्त्र का रचनाकार ऋषि। पैडिक्यं (नपुं०) भिक्षावृत्ति। पैडिन्यम् (नपुं०) भिक्षाचार्य। पैतामह (वि०) [पितामह+अण्] दादा। पैतामहाः (पुं०) पूर्वपुरुष, पुरखा, दादा। पैतामहिक (वि०) [पितामह ठक] पितामह से सम्बन्ध रखने वाला। पैतृक (वि०) [पितृ+ठञ्] पिता से सम्बन्ध रखने वाला। पिता से प्राप्त, पिता से आगत। पैतृकं (नपुं०) पितरों के प्रति श्रद्धा। पैतृमत्यः (पुं०) [पितृमसी+ण्य] अविवाहित स्त्री का पुत्र। पैतृष्वसेयः (पुं०) [पितृष्वसृ+ढक्] बुआ का लड़का, फूफी का पुत्र। पैत्त (वि.) [पित्त+अण] पिता सम्बंधी। पैत्र (वि०) [पितृ अण] पैतृक, पुश्तैनी। पैत्रं (नपुं०) तर्जनी। पैत्रिकी (वि०) पितृ सम्बन्धिनी। (जयोवृ० १/७) पैलव (वि.) [पीलु+अण] पीलु वृक्ष की लकड़ी से निर्मित। पैशल्य (वि०) सुकुमारता, मृदुता। पैशाच (वि०) [पिशाच+अण] राक्षसी, नारकीय। पैशाचः (पुं०) पिशाच, राक्षस। पैशाचविवाहः (पुं०) प्रमादयुक्त, पागल कन्या से विवाह। 'सुप्त प्रमसकन्याग्रहणात् पैशाचः' (जैन०ल० ७८) पैशाचिक (वि०) [पिशाच+अक्] राक्षसी, नारकीय। पैशाची (स्त्री०) पैशाची प्राकृत गुणाढ्य की वृहत्कथा की प्राकृत। जो अनुपलब्ध है। पैशाच्य (वि०) राक्षसीय वृत्ति वाला। (वीरो० १/३२) पैशुनम् (नपुं०) [पिशुन+ष्यञ्] चुगली, बदनामी। इधर-उधर भिड़ाना, आपस में लड़ाना। पैशून्यं/पैशुन्यः (नपुं०) अविद्यमान दोषों को प्रकट करना, इधर-उधर की करना। दोष लगाना, दोषाविर्भाव। ०पीठ पीछे दोष प्रकट करना। 'पृष्ठतो दोषाविष्करणं पैशून्यम्' (त०वा० १/२०) पैष्ट (वि०) [पिष्ट+अण] आटे की पीठी। पैष्टिक (वि०) [पिष्ट+ठञ्] पीठी से बना हुआ। पैष्टिकं (नपुं०) कचौड़ियों का समूह। पैष्टी (स्त्री०) [पैष्ट+ङीष्] धान्य की सड़ांस से निर्मित शराब। पोगंड (वि०) [पौशुद्धो गंड-एकदेशो यस्य] ०शिशु, बालक, अवयस्क। क्कृित अंग वाला। पोगंडः (पुं०) छोटा बालक। पोटः (पुं०) [पुट्+घञ्] घर की नींव। कास, मछली विशेष। पोटकः (पुं०) [पुट्+ण्वुल्] भृत्य, नौकर। पोटा (स्त्री०) [पुट्+अच्+टाप्] पोटली, पुलिंदा, गठरी। पोटी (स्त्री०) स्थूलकाय मगरमच्छ। पोट्टल्लिका (स्त्री०) [पोट्टली+कन्+टाप्] ०पोटली, पुलिंदा, गठरी। पोतः (पुं०) [पू+तन्] पशु शावक, जानवर का बच्चा। जो योनि से निकलते ही चलने फिरने लगता है, ऐसा शावका पूर्ण अवयवों से युक्त पशुशावक। 'सम्पूर्णावयवः परिस्पन्दादिसामोपलक्षितः पोतः'। (त०वा० २/३३) जो जन्मते ही कूदने फांदने योग्य परिपूर्ण अङ्गोपांग युक्त हो, ऐसे सिंह विडाल वगैरह जीव पोत कहलाते हैं। (त०सू० २/३३पृ० ४३) जहाज, जलयान, बेड़ा, किश्ती। (जयो० १३/३४) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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