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पुष्पिन्
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पूजाह
A
पुष्पिन् (वि०) [पुष्प् इनि] प्रफुल्लित, हर्षित, खिला हुआ। पूगपात्रं (नपुं०) थूकदान, पीकदान। फूलों से परिपूर्ण, पुष्प समृद्ध।
०पानदान, ताम्बूल मचला। पुष्पोपकंठित (वि०) हर्षित। (जयो० २१/७२)
पूगपीट (नपुं०) पीकदान। पुष्पोपहित (वि०) पुष्पसमूह से बने।
पीकपीडं (नपुं०) पीकदान। पुष्पोपगः (पुं०) फूलों की शय्या। (जयो० २७/१२) पूगफल (नपुं०) सुपारी। पुष्पोपत्तिः (स्त्री०) सुमनोद्गम। (वीरो०६/२२)
पूगवैरं (नपुं०) बहुत से लोगों से शत्रुता। पुष्यः (पुं०) [पुष्+क्यप्] कलियुग
पूगी (स्त्री०) सुपारी। ताम्बूल। (जयो० १२/१३६) ०पौष का महिना।
पूगीफलं (नपुं०) सुपारी, ताम्बूल। (जयो०वृ० १२/१३६) ०पुष्य नक्षत्र। (सुद० १/२९)
पूज् (अक०) पूजना, अर्चना करना। पुष्यन् (कि०वि०) पुष्ट करता हुआ। 'पुष्यत् स एव शान्ति सम्मान करना, सत्कार करना। लभते मनुष्यः' (वीरो० १४/३१)
पूज् (सक०) उपहार देना। पुष्यरथः (पुं०) पुष्यरथ, कामदेव का रथ।
भेंट चढ़ाना। पुष्यलकः (पुं०) [पुष्य लक्+अच्] ०स्थान, खूटी, कील, पूजक (वि०) [पूज्+ण्वुल्] ०अर्चक, आराधक, उपहारक। फन्नी।
०सम्मान देने वाला, आदर करने वाला, पुजारी। (दयो०७७) पुस्त् (सक०) लेप करना, बनाना।
० पूजा का अधिकारी-भव्यात्मा पूजकः शान्तो पुस्तं (नपुं०) [पुस्त्+घञ्] लेप करना।
वेश्यादिव्यसनोज्झितः। (जैन०ल० ७/९) खिलौने बनाना, शिल्पकार्य करना।
पूजकाचार्यः (पुं०) प्रतिष्ठाचार्य श्रावकाचारपूतात्मा, लिखना, हस्तलेखन करना।
दीक्षाशिक्षागुणान्बित:। क्रियाषोडशभिः पूतो, पुस्तकं (नपुं०) [पुस्त्+कन्] ०पोथी, ग्रन्थ, शास्त्र। (जयो० ब्रह्मसूत्रादिसंस्कृतः।। न हीनाङ्गो नाधिकाङ्गो, न प्रलम्बो न १३/२४)
वामनः। न कुरूपो न मूढात्मा, न वृद्धो नातिबालकः।। ०हस्तलिखित रचना।
(जैन०ल० २२९) पुस्ती (स्त्री०) [पुस्त+डीप्] पोथी।
पूजता (वि०) सम्मानीयता। (मुनि० १४) पुस्सर (वि०) पूर्वक। (जयो० २/१२)
पूजनं (नपुं०) अर्चन, आराधन (सुद० १४०) गुणन, चिन्तन, पू (सक०) पवित्र करना, शुद्ध करना, साफ करना।
स्मरण। ०परिमार्जन करना, प्रायश्चित्त करना 'दशाऽपरेऽपिप्रति- पूजनपरिस्थितिः (स्त्री०) पूजन सामग्री। (दयो० )०पूजना, बोधमापुस्तेषामथाख्याऽथ कथा तथा पू:'। (वीरो० १४/१) सम्मान करना। ०पहचानना, सोध करना।
पूजनार्थ (वि०) अर्चनार्थ। (सुद० ११४) ०सोचना, विवेक करना।
पूजनीयत्व (वि०) सम्मान युक्तता। (जयो० २/२४) ०अविष्कार करना।
पूजा (स्त्री०) [पूज्+अ+टाप्] अर्चना, भक्ति, स्तुति, आरती पूगः (पुं०) [पू+गन्, कित] समुच्चय ढेर, समूह, संग्रह, इष्टि (जयोवृ० २/२७) मात्रा।
आराधना, श्रद्धार्चना। (जयो० ५/६३) ०संघ, समाज, निगम।
विनती, गीति, उपासना। 'पूजनं गन्ध-माल्यादिभिः प्रकृति, गुण, स्वभाव।
समभ्यर्चनम्' (जैन०ल० ७१९) सुपारी, पूगी।
पूजातत्परः (पुं०) सपर्यापर, पूजा में लीन। (वीरो० ५/६) ०ताम्बूल। (जयो० २७/४७)
पूजावाक्यं (नपुं०) पूजापाठ। पूर्ग (नपुं०) सुपारी, ताम्बूल।
पूजाविधानं (नपुं०) अर्चना पद्धति। (सुद० ७२) समिष्टिवद पूगदलं (नपुं०) ताम्बूल। (जयो०वृ० २७/४७) 'ताम्बूलस्य अर्चना। (जयो० २/२९)
पूगदलस्य सचर्बणतः'। (जयो०७० २७/४७) | पूजार्ह (वि०) पूजा के योग्य, पूज्य। श्रद्धेय, पूजनीय, अर्चनीय।
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