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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरोभागः ६५९ पुष्कर पुरोभागः (पुं०) पश्चिमांश, पार्श्व, पक्षभाग। (जयो०वृ० ३/१०३) (जयो० २६/७७) पुरोवर्तिन् (वि०) पश्चिम भाग वाली, पूर्ववर्ती (जयो० १५/५९) पुरोहितः (पुं०) यागगुरु राट्, पुरस्ताद हित (जयो० ७/८१) शान्तिजनक अनुष्ठान कराने वाला। (जयो०वृ० १२/२७) 'पुरुष पुरोधा स' (जयो० २६/१०) पुरोहितः शान्तिकर्मकारी। ०धर्मकर्माध्याक्ष (जयो० ३/१४) पुर्व (अक०) रहना, बसना। पुर्व (सक०) झरना, नियन्त्रित करना। पुल (वि०) [पुल+क] विशिष्ट, योग्य, महान, उत्तम। ०व्यापक, विस्तृत। पुलकः (पुं०) [पुल+कन्] रोमाञ्च, हर्ष, प्रसन्नता खशी। एक विशेष रत्न। ०हरताल। ०सकोरा, शराबपात्र। ०सरसों, राई। पुलकांचित (वि०) दूषित, आनंदित। (समु० ७/२५) पुलकालयः (पुं०) कुबेर। पुलकावली (स्त्री०) रोमराजि। (जयो० १०/५४) पुलकोदगमः (पुं०) रोमांच होना, रोम-रोम खड़े हो जाना। पुलकित (वि०) [पुलका इतच्] रोमांचित, हर्षित, गद्गद, विकासी, आनन्दित, (जयो० ४/६०) प्रसन्नचित्त, प्रसन्नभाव। (जयो० १८/४२) पुलकिन् (वि.) [पुलक+इनि] रोमांचित, हर्षित। पुलवि (नपुं०) निगोद जीवों का स्थान, निगोद जीवों के आवास। पुलस्ति (पुं०) एक ऋषि। पुला (स्त्री०) [पुल+टाप्] मृदुतालु, गले का काक। पुलाकः (पुं०) पुलाक मुनि, जिन मुनियों का मन उत्तर गुणों की भावनाओं में संलग्न नहीं और व्रतों में भी कहीं व किसी समय परिपूर्णता रहित होते हैं। अपरिपूर्णव्रता उत्तरगुणहीना पुलाकाः। (त०वा० ९/४६) ०पुलाका भावनाहीना ये गुणेषूत्तरेषु से। न्यूनाः क्वचित् कदाच्चि पुलाकामा व्रतेष्वपि।। (हरिवंश पु० ६४/५९) पुलाको नि:सार इति प्ररूढं लोके-तन्दुलकणशून्या पुलाकः। (जैन०ल० ७१७) मूलगुण में आंशिक दोष वाला साधु। (सम्य० १४१) ०कणशून्य अन्न। मुरझाया हुआ धान्य संक्षेप, संग्रह, संक्षिप्तता संहति। क्षिप्रता, त्वरा। ०चांवलों का माड, नि:सार भूमि। पुलाकिन् (पुं०) [पुलाक+इनि] वृक्ष, तरु। पुलायितं (नपुं०) घोड़े की चाल, अश्व की सपाट गति। पुलिनः (पुं०) नदीतट, किनारा, नदीतीर, तटभाग। (जयो० १३/५६) (जयो० १३/६३) रेतीला टापू, छोटा टापू। पार्श्व भाग। (जयो० १३/३६) पुलिनं (नपुं०) नदी तट, टापू। पुलिनवती (स्त्री०) [पुलिन+मतुप्+वत्वम् ङीप्] सरिता, नदी। (दयो० २२) पुलिंदकः (पुं०) [पुल+किंदच कन्] एक आदिवासी जाति, ___अरण्यवासी लोग। बर्बर, शबर, भीलादि। पुल्लिङ्गः (पुं०) पुमान्, पुरुषलिंग। पुल्लिङ्गसिद्धः (पुं०) पुरुष शरीर में अवस्थित होते हुए मुक्ति को प्राप्त। पुलोमजा (स्त्री०) शची, इन्द्राणी। (समु० ४/२७) (जयो० . १२/९९) पुलोमा की पुत्री, इन्द्र की पत्नी। पुलोमन् (पुं०) एक राक्षस, इन्द्र। (जयो० ५/८९) पुलोमनरि (पुं०) इन्द्र।। पुलोमा (स्त्री०) इन्द्राणी की मां। पुवर्णः (पुं०) पु वर्ण, पवर्ग। (जयो०वृ० १/२४) पुष् (सक०) ०पोषण करना। (जयो०वृ० ११/५२) दूध पिलाना, पालना, पुष्ट करना। (जयो० ६/२७) शिक्षित करना। सहारा देना, बढ़ाना। (जयो० २२/३२) प्राप्त करना, रखना, उपभोग करना। प्रशंसा करना, स्तुति करना। पुष् (वि०) पुष्प करने वाला। (भक्ति० १२) पुष्करं (पुं०) [पुष्कं पुष्टिं राति-रा+क] नीलकमल। पुष्कर झील, पवित्रस्थान। द्वीप। ०ढोल का चमड़ा। तलवार का फलक, म्यान। ०वायु, आकाश, अंतरिक्ष ०बाण, पिंजर। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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