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पुरोभागः
६५९
पुष्कर
पुरोभागः (पुं०) पश्चिमांश, पार्श्व, पक्षभाग। (जयो०वृ०
३/१०३) (जयो० २६/७७) पुरोवर्तिन् (वि०) पश्चिम भाग वाली, पूर्ववर्ती (जयो० १५/५९) पुरोहितः (पुं०) यागगुरु राट्, पुरस्ताद हित (जयो० ७/८१)
शान्तिजनक अनुष्ठान कराने वाला। (जयो०वृ० १२/२७) 'पुरुष पुरोधा स' (जयो० २६/१०) पुरोहितः शान्तिकर्मकारी।
०धर्मकर्माध्याक्ष (जयो० ३/१४) पुर्व (अक०) रहना, बसना। पुर्व (सक०) झरना, नियन्त्रित करना। पुल (वि०) [पुल+क] विशिष्ट, योग्य, महान, उत्तम।
०व्यापक, विस्तृत। पुलकः (पुं०) [पुल+कन्] रोमाञ्च, हर्ष, प्रसन्नता खशी।
एक विशेष रत्न। ०हरताल। ०सकोरा, शराबपात्र।
०सरसों, राई। पुलकांचित (वि०) दूषित, आनंदित। (समु० ७/२५) पुलकालयः (पुं०) कुबेर। पुलकावली (स्त्री०) रोमराजि। (जयो० १०/५४) पुलकोदगमः (पुं०) रोमांच होना, रोम-रोम खड़े हो जाना। पुलकित (वि०) [पुलका इतच्] रोमांचित, हर्षित, गद्गद,
विकासी, आनन्दित, (जयो० ४/६०) प्रसन्नचित्त, प्रसन्नभाव।
(जयो० १८/४२) पुलकिन् (वि.) [पुलक+इनि] रोमांचित, हर्षित। पुलवि (नपुं०) निगोद जीवों का स्थान, निगोद जीवों के आवास। पुलस्ति (पुं०) एक ऋषि। पुला (स्त्री०) [पुल+टाप्] मृदुतालु, गले का काक। पुलाकः (पुं०) पुलाक मुनि, जिन मुनियों का मन उत्तर गुणों
की भावनाओं में संलग्न नहीं और व्रतों में भी कहीं व किसी समय परिपूर्णता रहित होते हैं।
अपरिपूर्णव्रता उत्तरगुणहीना पुलाकाः। (त०वा० ९/४६) ०पुलाका भावनाहीना ये गुणेषूत्तरेषु से। न्यूनाः क्वचित् कदाच्चि पुलाकामा व्रतेष्वपि।।
(हरिवंश पु० ६४/५९) पुलाको नि:सार इति प्ररूढं लोके-तन्दुलकणशून्या
पुलाकः। (जैन०ल० ७१७) मूलगुण में आंशिक दोष वाला साधु। (सम्य० १४१) ०कणशून्य अन्न।
मुरझाया हुआ धान्य संक्षेप, संग्रह, संक्षिप्तता संहति। क्षिप्रता, त्वरा।
०चांवलों का माड, नि:सार भूमि। पुलाकिन् (पुं०) [पुलाक+इनि] वृक्ष, तरु। पुलायितं (नपुं०) घोड़े की चाल, अश्व की सपाट गति। पुलिनः (पुं०) नदीतट, किनारा, नदीतीर, तटभाग। (जयो०
१३/५६) (जयो० १३/६३) रेतीला टापू, छोटा टापू।
पार्श्व भाग। (जयो० १३/३६) पुलिनं (नपुं०) नदी तट, टापू। पुलिनवती (स्त्री०) [पुलिन+मतुप्+वत्वम् ङीप्] सरिता, नदी।
(दयो० २२) पुलिंदकः (पुं०) [पुल+किंदच कन्] एक आदिवासी जाति, ___अरण्यवासी लोग। बर्बर, शबर, भीलादि। पुल्लिङ्गः (पुं०) पुमान्, पुरुषलिंग। पुल्लिङ्गसिद्धः (पुं०) पुरुष शरीर में अवस्थित होते हुए मुक्ति
को प्राप्त। पुलोमजा (स्त्री०) शची, इन्द्राणी। (समु० ४/२७) (जयो० . १२/९९) पुलोमा की पुत्री, इन्द्र की पत्नी। पुलोमन् (पुं०) एक राक्षस, इन्द्र। (जयो० ५/८९) पुलोमनरि (पुं०) इन्द्र।। पुलोमा (स्त्री०) इन्द्राणी की मां। पुवर्णः (पुं०) पु वर्ण, पवर्ग। (जयो०वृ० १/२४) पुष् (सक०) ०पोषण करना। (जयो०वृ० ११/५२)
दूध पिलाना, पालना, पुष्ट करना। (जयो० ६/२७) शिक्षित करना। सहारा देना, बढ़ाना। (जयो० २२/३२) प्राप्त करना, रखना, उपभोग करना।
प्रशंसा करना, स्तुति करना। पुष् (वि०) पुष्प करने वाला। (भक्ति० १२) पुष्करं (पुं०) [पुष्कं पुष्टिं राति-रा+क] नीलकमल।
पुष्कर झील, पवित्रस्थान। द्वीप। ०ढोल का चमड़ा।
तलवार का फलक, म्यान। ०वायु, आकाश, अंतरिक्ष ०बाण, पिंजर।
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