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तापत्
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ताम्रवृक्षः
तापत् (पुं०) सूर्य, दिवाकर, उष्णता। 'निवारिता तापतया | तामसिक (वि०) तम से सम्बन्ध रखने वाला। तमोमय, घनाघना' (जयो०२४/१९)
तमोगुण सहित। तापत्रयं (नपुं०) संताप त्रय, जन्य, जरा और मृत्यु ये तीनों | तामिस्रः (पुं०) [तमिस्रा+अण्] नरक का एक भाग।
तापत्रय हैं। 'समाप तापत्रयभिच्छवेर्भवे' जिनेन्द्रचन्द्रस्य मुदं तामेष (अव्य०) वैसा ही, उसी प्रकार का ही। (जयो० वृ० सुदर्शने' (जयो० २४/७०) जन्म जरा-मृत्यु रूप- १/१५) सन्तापत्रितयोच्छेदकस्य (जयो० वृ० २४/७९)
ताम्बूलं (नपुं०) [तम् उलच्] पान-सुपारी। (जयो० १२/१३७) तापनः (पुं०) [तप्+णिच्+ल्युट्] सूर्य, रवि, ग्रीष्म ऋतु, ओठों राग उत्पन्न करने वाला। (जयो० १२/१३७) सूर्यकान्तमणि, कामदेव का एक बाण।
ताम्बूल-करण्डः (पुं०) पानदान। तापस (वि०) साधक, तपस्वी, तपशीला व्यक्ति, साधनारत। ताम्बूलपेटिका (स्त्री०) पानदान। तापसः (पुं०) १. भक्त, सन्यासी। २. जटाधारी। जे जडिला से ताम्बूलभावः (पुं०) नाग वल्लीपत्र। योग्यप्रमाणोवेता नागदलं उ तावसा।
नागवल्लीपत्रं तस्योदारं क्षणमाप्त्वा ताम्बूलभावेन सत्पुरुषाणां तापसतरुः (पुं०) हिंगोल वृक्ष, इंगुदीतरु।
मुखमण्डनाय भवत्येव। (जयो० वृ० २२/५४) तापस्यं (नपुं०) [तापस+ष्यञ्] तपस्या।
ताम्बूलरागः (पुं०) पान की लाली। दन्तावलीमधरशोणिमसंभदकां तापान्वित (वि०) ताप से युक्त, अग्नि से संयुक्त। 'तापेन ताम्बूलराग-परिणाम-धियाप्यपङ्काम्। (जयो० १८/१०२) धर्मेणान्वितं यद्वा वह्नि संतप्त। (जयो० १५/१७)
ताम्बूलरागस्य नागवल्लीदलजन्य-लौहित्यस्य परिणामः। तापिच्छः (पुं०) [तापिनं छादयति तापिन्+छ+उ] तमाल (जयो० वृ० १८/१०२) वृक्षा
ताम्बूल वाहकः (पुं०) पान देने वाला। तापित (वि०) तपाया गया। (जयो० वृ० २।८१)
ताम्बूलवल्ली (स्त्री०) पानलता, पान की बेल। तापी (स्त्री०) ताप्ती नदी, जो सूरत के निकट।
ताम्बूलावशिष्ठ (वि०) पान की पीठ। (जयो० ६/८२) तापोज्जयी (वि०) संताप को जीतने वाला। 'संसार- ताम्बूलिक (वि०) [ताम्बूल+ठन्] तम्बोली, पान लगाकर तप्पोज्जयिसामतोया' (भक्ति० ४)
__ बेचने वाला, पनवारी। तामः (पुं०) [तम्+घञ्] १. भय, २. दोष, चिन्ता, दु:ख, ताम्बूली (स्त्री०) पान लता। इच्छा।
ताम्र (वि०) [तम्+रक्] तांवा, लाल रंग। तामपत्रायिता (वि०) ताम्रपत्र पर अंकित। (जयो० २०/७५) तानं (नपुं०) रक्तवर्ण। तामरं (नपुं०) [ताम+ए+क] १. पानी, २. घृता
ताम्रकारः (पुं०) कसेरा, ठठेरा, तांवे का कार्य करने वाला। तामरसं (नपुं०) [तामरे जले स्नहित-सस्+उ] रक्त कमल, ताम्रकृमिः (स्त्री०) इन्द्रवधूटी, रक्तवर्ण का कोट। पद्म। (जयो० १/७) सुवर्ण। ३. ताँबा।
ताम्रचूडः (पुं०) मुर्गा, सानुमति, कुक्कुट। (सुद० १/४, जयो० तामस (वि०) १. तामसिक प्रवृत्ति। सन्धीयते तामस एषशिष्टा ५/७०, दयो० ५१)
(समु०८/४४) दुर्व्यसनता, अज्ञानता, तमोगुण। (जयो० | ताम्रचूलः (पुं०) १. सानुमति, मुर्गा, कुक्कुट। शब्दत्यनेन
११/५४) २. काला, अन्धकारग्रस्त, अन्धेरा। ३. अज्ञानी। रणकर्मणि ताम्रचूलः। (जयो० १८७३) २. कलगी तामसः (पुं०) दुर्जन, दुष्ट।
युक्त-कुक्कुट। तामसं (नपुं०) अन्धकार, अंधेरा।
ताम्रपत्र (नपुं०) तांबे का फलक। तामसगुणः (पुं०) तमोगुण, हानिकारक गुण, उत्तेजक कारण, ताम्रपत्रायिता (वि०) सुवर्णक्षरा, स्वर्ण अक्षरों सहित। (जयो० दुव्यसनात्मक प्रवृत्ति।
वृ०२०/७५) तामसत्यागः (पुं०) तमोगुण का त्याग। (समु० ८/४५) ताम्रपर्णी (स्त्री०) एक नदी, जो मलयगिरि से निकलती है। तामसप्रवृत्तिः (स्त्री०) तमोगुण को उत्पन्न करने वाली वृत्ति, ताम्रपल्लवः (पुं०) अशोकवृक्षा
(सुद० १/४४) यतः समुद्रोद्धारकारकस्तामस-वृत्ति- ताम्रलिप्तः (पुं०) एक देश। कयाऽभिसारकः' (सुद० १/४४)
ताम्रवृक्षः (पुं०) चन्द्रन वृक्ष का प्रकार।
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