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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीनतमपयोधरः ६५१ पुंजः पीनतमपयोधरः (नपुं०) ०उच्चैः स्तन, उभरे हुए कुच, उठे हुए स्तन। (जयो० ११/३) पीनता (वि०) परिपुष्टता। (जयो० ६/१०६) पीनपयोधरः (नपुं०) (पीनौ पुष्टौ पयोधरः) उन्नत स्तन। (जयो० १५/३३) पीनवक्षस् (वि०) विशाल वक्षस्थल वाला। पीनसः (पुं०) जुकाम, खांसी। पीनोरुकस्तम्भः (पुं०) स्थूल स्तम्भ। (जयो० १७/६८) पीयुः (पुं०) सूर्य, अग्नि। ___०काक, ०उल्लू, ०सोना। पीयूषः (पुं०) ०अमृत, सुधा। पीयूषं (नपुं०) जल, अमृत। (वीरो० १/२२) पीयूषं नहि निःशेष पिबन्नेव सुखायते। (दयो० १/२५) ०दुग्ध, दूध। पीयूषकुम्भः (पुं०) अमृत कलश। (सुद० १०२) पीयूषमहस् (पुं०) चन्द्रमा। पीयूषमयूख (पुं०) चट्टान। (जयो० १७/२) पीयूषरुचिः (स्त्री०) शशि, चन्द्र। पीयूषलवः (पुं०) अमृतांश। (जयो० ११/६३) पीयूषवर्षा (स्त्री०) अमृतवर्षा। पीयूषपादः (पुं०) अमृत कुम्भ। पीयूषपात्र (नपुं०) अमृत कलश। (जयो० १५/७०) अमृतभाजन। ०चन्द्र (जयो०वृ० १५/७०, (जयो० १६/) पीयूषमधुरशिरा (स्त्री०) अमृतधारा। (जयो० ११/९६) ०चन्द्रमा, ०कपूर। पीलकः (पुं०) मकौड़ा, कीट। पीलनं (नपुं०) पेलना, रस निकालना। (सुद० १/७६) पीलु (पुं०) [पील+उ] ०हस्ति, कीट, बाण। ताडवृक्ष का तना। पीव् (अक०) पुष्ट होना, स्थूल होना। पीवन् (वि०) स्थूल, मोटा। हस्ट-पुष्ट, शक्तिमान। पीवर (वि०) [प्यै+ष्वरच्] ०उन्नत, विशाल। यथोत्तरं पीवरसत्कुचोरः स्थलं त्वगाद्गर्भवती स्वतोऽरम्। (सुद० २/४६) पुष्ट। (जयो०६) मांसल, शरीर से तंदुरुस्त। स्थूल-'पीवर-स्तनतटेऽथ संसजन्' यत्र मौक्तिक सुमण्डलश्रियः। (जयो०वृ० २१/५५) पीवरः (पुं०) कच्छप, कछुवा। पीवरी (स्त्री०) तरुणी, युवती। गौ, गाय, धेनु। पुंस् (सक०) कुचलना, पीसना। पीड़ा, देना, कष्ट देना, दण्ड देना। पुंस् (पुं०) पुरुष, नर, मनुष्य। (जयो० २/६१, सुद० १२५) मानव, मनुष्य जाति। पुंलिंग शब्द। ०आत्मा। पुंस्कटिः (स्त्री०) पुरुष की कमर। पुंस्कामा (स्त्री०) पति की कामना, पुरुष की इच्छा। पुंस्कोकिलः (पु०) नरकोयल। पुस्केतुः (पुं०) शिव। पुस्खेटः (पुं०) नरग्रह। पुंखः (पुं०) [पुमांसं खनति-पुम्+खन्ड ] पंख, बाण के अग्रभाग, मूठ। (जयो० २४/१०८) संहेमपुङ्खा बहुपर्व सत्त्वाऽनङ्गस्य वै पञ्चशरीति तत्त्वात्। (जयो० ११/४६) पुंखित (वि०) [पुंख्+इतच्] पंखों से युक्त। पुंगः (पुं०) ढेर, समूह, समुच्चय, राशि। पुंगं (नपुं०) ढेर, राशि। पुंगलः (पुं०) [पुंग+ला+क] आत्मा। पुंगवः (पुं०) ० बलिवर्द, सांड, सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्तम, प्रधान, प्रमुख, नायक। ०पूज्य, वन्दनीय, प्रणमनीय।। पुंप्रवरः (पुं०) उत्तम पुरुष, श्रेष्ठ व्यक्ति। (सुद० २/१०) पुंश्चली (स्त्री०) व्यभिचारिणी स्त्री। (दयो० ९) पुच्छः (पुं०) [पुच्छ्+अच्] पुंछ, पिच्छ। पुच्छं (नपुं०) पूंछ। (जयो० ६/८५) पिछला भाग। ०पीछे का हिस्सा। किसी वस्तु का किनारा। पुच्छटिः (स्त्री०) [पुच्छ्+अट् इन्] अंगुलियां चांटना। पुच्छकंटकः (पुं०) वृश्चिक, बिच्छु। पुच्छजाहं (नपुं०) पूंछ की जड़। पुच्छमूकं (नपुं०) पूंछ का सिरा। पुच्छाग्रं (नपुं०) पूंछ का सिरा। पुच्छिन् (पुं०) [पुच्छ्+इनि] मुर्गा। पुंजः (पुं०) [पुस्+जि ड] पूजा/अर्चना के लिए ले जाने वाला अक्षत समूह। (सुद० ७१) ०ढेर, समूह, यात्रा, राशि, संग्रह। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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