SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीडाकर ६५० पीन ०उजाड़ना। ० अतिक्रमण, प्रतिबन्ध। ०दया, करुणा। पीडाकर (वि०) कष्टदायी। (समु० १/२५) पीडाकरी (वि०) अत्याचारी, कष्ट देने वाला। (जयो०वृ० १/५२) पीडित (भू०क०कृ०) ०दु:खित, व्याकुलित, सताया हुआ। अतिक्रान्त, उजाड़ा हुआ। पीडितं (नपुं०) रतिबन्ध, मैथुन वासना, कामना। पीत (वि०) [पा+क्त] पीतवर्ण वाला, पीला रंग वाला। (जयो०वृ० ३/८०) ०परिव्याप्त, सिक्त, संतृप्त। साभिलाषा। (जयो०वृ० १२/१२४) पीतः (पुं०) पीतवर्ण। पुखराज, ०कुसुम्भ। पीतं (नपुं०) स्वर्ण सोना। पीतकं (नपुं०) ०हरताल, पीतल, चंदन। पीतकदली (स्त्री०) पीला केला, पका हुआ केला। पीतकंद (नपुं०) गाजर। पीतकाबेर (नपुं०) केसर। पीतकाष्ठं (नपुं०) पीला चन्दन। पीतगंधं (नपुं०) पीला चन्दन। पीतचंदनं (नपुं०) ०पीला चन्दन। __०केसर, ०हल्दी। पीतचम्पकः (पुं०) दीपक, दिया। पीततं (नपुं०) पीतवर्ण। (जयो०वृ० १५/३४) पीततमः (पुं०) प्रवष्टान्धकार जिसने अन्धकार में समाविष्ट कर लिया है। 'पीततमा पीतमुदरसात्कृतं तमो यया सा पीततमा।' पीतरं (नपुं०) केसर। (जयो० ६/७३) पीतनाञ्चना (स्त्री०) कुमकुम का अंगराग। (जयो०वृ० ६/२३) पीतनस्य केशरस्याञ्चनावत् कुङ्कुमरचित लेपपरिणतिवत् (जयो०व० ६/२३) प्रणष्टान्धकारेति यद्वा पीततमात्यन्त पीतवर्णा' (जयो०वृ० १५/३४) पीततुण्डः (पुं०) कारंडव पक्षी। पीतदारु (नपुं०) सरलवृक्ष, चीड वृक्ष। पीतदुग्धा (स्त्री०) दुधारु गाय। पीतदुः (पुं०) सरल वृक्षा पीतनः (पुं०) गूलर की जाति का वृक्ष। पीतपादा (स्त्री०) मैना। पीतपटं (नपुं०) पीला कपड़ा। पीतपटः (पुं०) कृष्ण। (जयो० १/९) पीतमणिः (स्त्री०) पुखराज। पीतमाक्षिकं (नपुं०) सोनामक्खी। पीतमूलकं (नपुं०) गाजर। पीतरक्त (वि०) संतरे का रंग। पीतरागः (पुं०) मोम, पीला रंग। पद्म केसर। पीतलेश्या (स्त्री०) चतुर्थलेश्या, पीतवर्णद्रव्यावष्टम्भाल, पीतलेश्या' पीतल (वि०) पीले रंग का। पीतवालुका (स्त्री०) हल्दी। पीतसर्षपः (पुं०) पीला सरसों। (जयो० २६/९) पीतसारः (पुं०) पुखराज मणि। चन्दन तरु। पीतसारि (नपुं०) अंजन, सुरमा। पीतस्कंधः (पुं०) सूकर। पीतस्फटिकः (पुं०) पुखराज। पीतहरित (वि०) पीलापन युक्त हरारंग। पीताम्बरः (पुं०) विष्णु, कृष्ण। (जयो० २४/५) पीताम्बरधामः (पुं०) उन्नत धाम। पीतमालीढमम्बरं गगनं यैस्तानि धामानि। (वीरो० ) पितिः (पुं०) [पा+क्तिच्] घूट पीना। अश्व, घोड़ा। मदिरालय। पीतिका (स्त्री०) [पीत+ठन्-टाप्] ०केसर, हल्दी। सोनजूही, चमेली। पीतिभान (वि.) पाण्डुरत्व। (जयो०५/८) पीतुः (पुं०) [पा+क्तुन्] ०सूर्य, ०अग्नि, आग। ०यूथपति, हस्तियूथ। पीथः (पुं०) [पा+थक्] सूर्य, ०अग्नि, ०काल, पेय, जल। पीथिः (पुं०) अश्व, घोड़ा। पीन (वि०) [प्याय+क्त] पुष्ट, शक्तिशाली, मांसल, अतिशयितामापन्न। (जयो० १/३८) विशाल, स्थूल, मोटा। पूर्ण, गोलमटोला ०प्रभूत, अधिक। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy