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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिशाचबाधा ६४९ पीडा पिशाचबाधा (स्त्री०) भूतव्याधि। पिष्याकः (पुं०) [पिष्+याक] ०खल, ०एक गन्ध द्रव्य। पिशाचभाषा (स्त्री०) पैशाची भाषा, प्राकृत भाषा का एक रूप। लोभान, केशर, ०हींग। पिशाचसंचारः (पुं०) भूतबाधा। पिसृ (अक०) चलना, गमन करना। पिशाचसभं (नपुं०) भूतग्रह, पिशाच आवास। रहना, चोट पहुंचाना। पिशाचाक्रान्तः (पुं०) भूतगृहीत, भूतबाधा से घिरा। | पिहित (भू०क०कृ०) [अपि+धा+क्त] अवरुद्ध, ढका हुआ, (जयो०वृ० २५/७१) रुका हुआ। पिशाचान्वित (वि०) भूतपीड़ा से बाधित, प्रेतात्मा से घिरा ०गुप्त, आच्छादित। हुआ। (मुनि० ११) पिहितदोषः (पुं०) आच्छादन सम्बंधी दोष, मुनिचर्या करने पिशाचिका (स्त्री०) [पिशाच+ङीप+कन+टाप] भूतनी, चुडौल, वाला साधक। सचित्त आदि से ढके हुए अचित्त (प्रासुक) डाकिनी। वस्तु को दोष युक्त मानता है। पिशाची (नपुं०) [पिश्+क्त] मांस। (जयोवृ० ३८, सच्चित्तेण व पिहिदं । __ (सुद० १२९) अहवा अचित्तगुरुगपिहिदं च। (मूला० ६/४७) 'सचित्तेन पिशिताशः (पुं०) मांसपक्षी। बैताल, भूत, पिशाच। पद्मपत्रादिना यत्पिहितं तदन्नं पिहितम्। (भा०पाल्टी० ९९) पिशुन (वि०) [पिश्+उनच्] ०दगाबाज (दयो०६१) ०चुगल | पिहिता (स्त्री०) दूषिता। खोर, मिथ्यानिन्दक। 'पिशुनं प्रीतिविच्छेदकारिः द्वयोर्बहूनां पी (सक०) पीना, आचमन करना। वा सत्यासत्य दोषाख्यानात्' (त०भा० ९/६) पीठ (नपुं०) [पेठन्ति उपविशन्ति अत्र-पि+घञ्] ०आसन, पिशुनजनः (पुं०) चुगल खोर व्यक्ति। शय्या, पीठा, पादपीठ, वेदी। पिशुनता (वि०) चुगलखोरी वाला। पीठकेलिः (स्त्री०) पीठमर्द। (जयो० १४/९५) पिशुनवचनं (नपुं०) तुच्छ वचन, निन्दकवचन। पीठगर्भः (पुं०) मूर्ति का आधार। पिशुनवाच्यं (नपुं०) निन्दक वचन। पीठतलः (पुं०) सिंहासन का भाग। (वीरो० १३/१७) पिशुलुः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। पीठभु (स्त्री०) आधार, नींव, भूगृह। पिष् (सक०) कूटना, पीसना। पीठमर्दः (पुं०) सहचर, परोपजीवी। ०चूर्ण करना। (जयो० ) पीठिका (स्त्री०) [पीठ+ङीष्+क+टाप्] ०पीडा, आधार, ०चोट पहुंचाना, मसलना। आसन। चौकी, तिपाई। ०नष्ट करना, घात करना, क्षति पहुंचा। पीड् (सक०) ०पीड़ित करना, ०सताना, घायल करना, पिष्ट (भू०क०कृ०) [पिष्+क्त] पिसा हुआ, चूर्ण किया गया, ०क्षति पहुंचाना। रगड़ा हुआ, मिलाया हुआ। तंग करना, परेशान करना। पिष्टं (नपुं०) आटा, चून, बेसन। (मुनि० ११) विरोध करना, सामना करना। पिष्टक (पुं०) वाटी। ०दबाना, भींचना, नष्ट करना। पिष्टपचनं (नपुं०) कड़ाही, पतेली, तबेली, बटलोई। ०अवहेलना करना, निचोड़ना। पीडयित्वा (जयो० २/१३०) पिष्टपशुः (पुं०) पुतला। पीडक (वि०) अत्याचारी, विनाशक, घातक। पिष्टपिण्डः (पुं०) वाटी, आटे की पेड़ी। पीडनं (नपुं०) [पीड्+ल्युट्] ०पीड़ित करना, ०कष्ट देना, पिष्टपेयः (पुं०) पिसे का पीसना। दुःख, पीड़ा, कष्ट। पिष्टमेहः (पुं०) मधुमेह। ०अत्याचार, क्षति, हानि। (जयो० १ ३/ ८) पिष्टशर्करा (स्त्री०) स्वादिष्ट। (जयो० १०/१२) ०दबाना, लेना, थामना। पिष्टातः (पुं०) [पिष्ट+अत+अण] सुगन्धित चूर्ण। पीडा (स्त्री०) दुःख, कष्ट, वेदना, बाधा। पिष्टिक (वि०) [पिष्ट+ठन्] आटे की पेड़ी, आटे की टिकिया। ० भोगना, सताना, लाठी या चाबुक से मारना। 'पीडा पिष्टोपात्त (वि०) पिट्ठी को प्राप्त हुए। (सुद० १०३) दण्ड-कशायभिघात:' For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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