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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पावर्ण ६४२ पाणिग्राहणं पावर्ण (वि.) [पर्वन्+अण] पर्व सम्बंधी। पार्श्वपरिवर्तनं (नपुं०) बिस्तर पर करवट बदलना, भाद्रशुक्लपक्ष। ०वृद्धि को प्राप्त होना। पार्श्वप्रदेशः (पुं०) निकटवर्ती भाग। (जयो०वृ० ६/५८) पार्वणं (नपुं०) पर्व का समय। उत्सवकाल। पाशवप्रभु (पुं०) पार्श्वनाथ। (वीरो० १/१४) पार्वत (वि०) [पर्वत+अण] पर्वतवासी, गिरि निवासी। पार्श्वभागः (पुं०) सन्निकटता, समीपवर्त प्रदेश (जयो० ०पहाड़ी, पर्वतीय। १३/५६) पार्वतिकं (नपुं०) [पर्वत+ठन्] पर्वतमाला, गिरि श्रृंखला। ०कोख, पांसू। पार्वती (स्त्री०) [पर्वतभवां सुकन्दरां श्रितात्] उमा, गौरी, | पार्श्वमुद्रा (स्त्री०) ध्यान की एक अवस्था, जिसमें उल्टे हाथों पर्वत पुत्री, शिव भार्या। (जयो०६/४४) पर्वतसम्बन्धिनी से वेणीबन्ध करके सामने करते हुए दोनों तर्जनियों के तटों तामेव वा पार्वती। (जयो० २४/६) मिलाने और शेष अंगुलियों के मध्य में दोनों अंगूठों के पार्वतीय (वि०) पर्वत पर रहने वाला, गिरि निवासी। रखने पर पार्श्वमुद्रा होती है। पार्वतीयः (पुं०) पहाड़ी, एक जाति। पार्वतीय नामक राजा पार्श्ववर्तिन् (वि०) समीपवर्ती, निकटवर्ती। (दयो० ९५) न्यायाधिपः प्राह च पार्वतीयं वचो वसुर्वाग्विवशो महीयम्। (जयो०वृ०६/४७) (वीरो० १८/५१) पार्श्ववर्तिनी (वि०) सन्निकटस्था (जयो० १०/९३) पार्वतेय (वि०) [पार्वती+ठक्] पर्वत पर उत्पन्न। पार्श्वशय (वि०) समीप शयन करने वाला। पार्वतेयं (नपुं०) अंजन, सुरमा। पावशूल: (पुं०) उदर शूल, कोख की पीड़ा। पार्शवः (पुं०) [पशु+अण] कुठार युक्त योद्धा। *फरसा वाला पार्श्वसङ्गत (वि०) पार्श्वगत, समीप गया हुआ। (वीरो० ४/३२) सैनिक। पार्श्वसूत्रकः (पुं०) एक प्रकार का आभूषण। पार्श्वः (पुं०) [पशूनां समूहः] पांसू, कांख। पार्श्वस्थ (वि०) समीपवर्ती, निकटवर्ती। पार्श्व (वि०) निकट, समीप। (जयो० १३/६५) ०पीछे। | पार्श्वस्थः (पुं०) सहचर, सूत्रधार। (मुनि० १२) (जयो० २/१५६) 'पृतनापतिपार्श्वमागतः' पाशवमुनि, जो आत्महितकर दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप कथमप्यर्थिगणोऽथं रागतः' और प्रवचन के पार्श्व में विहार करता है-उनके पालन ०पक्ष भाग (जयो० ३/१०३) पतन् पार्वे मुहुर्यस्य चामराणां में पूर्णतया प्रयत्नशील नहीं रहता है वह पार्श्वस्थ मुनि चयो बभौ। ०पदन्तिक (जयो० २४/९) पार्श्वस्थ सङ्गवशः (पुं०) समीपवर्ती साधुओं की संगति के पश्यति सर्वभावानिति निरुक्तात् पार्श्वः। वशीभूत। पार्श्वस्थसङ्गमवशेन दिगम्बरेषु शैथल्यमापतितमाशु पावः (पुं०) पार्श्वनाथ, तेइसवें तीर्थंकर का नाम, जिनका तपः परेषु (वीरो० २२/९) चिह्न सर्प है। पार्श्वप्रभु (समु० ११/३६) पाश्विक (वि०) [पार्श्व+ठक्] कोख से सम्बंध रखने वाला। पार्श्वकुमारः (पुं०) पार्श्वनाथ, वामादेवी का सुत, बनारस के उदर सम्बन्धित।। राजा अश्वसेन का पुत्र, जिसने जिनशासन के तीर्थमार्ग पार्षत (वि०) [पृषत्+अण्] चितकबरे हिरण से सम्बधित। का प्रवर्तन किया। पार्वती (स्त्री०) [पार्षत ङीप्] ०द्रोपदी, दुर्गा। पार्श्वकेकड़ा (स्त्री०) सेवक, अनुचर। भृत्य। पार्षद् (स्त्री०) सभा, परिषद्। पार्श्वगः (पुं०) अनुचर। पार्षद्यः (पुं०) पार्षद्य नामक देव, जो मित्र सादृश होते हैं। पार्श्वगत (वि०) पास ही स्थित, पार्श्ववर्ती, शरणागत। 'वयस्यप्रायाः पार्षद्याः''पर्षदिसाधवः पार्षद्याः' 'पर्षदो ण्यणौ' पार्श्वचरः (पुं०) सेवक, अनुचर। इति ण्य प्रत्ययः ते च वयस्थस्थानीयाः मित्रासदृशा देवराजापार्श्वजिनः (पुं०) पार्श्वप्रभु, तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ स्वामी। नामिति भावः (जैन०ल० ७०८) राभासद, सदस्य। पार्श्वदेशः (पुं०) कोख, पांसू। पाष्णि (पुं०) ०एडी, सेना की पिछाड़ी। पार्श्वनाथः (पुं०) पार्श्वनाथ स्वामी। (भक्ति० २०) ०ठोकर। पार्श्वनाथ जिनालयः (पुं०) पार्श्वनाथ स्वामी का मंदिर। पाणिग्रहः (पुं०) अनुचर, अनुयायी। (दयो० १०) पाणिग्राहणं (नपुं०) शत्रु की पीठ पर प्रहार करना। कहलाताश: (पुं०) समीपताम्बरेषु शैथल्यमापति For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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