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पारिप्लाव्यं
पारिप्लव्यं (नपुं०) क्षोभ, बेचेनी, परेशानी, कंपकंपी, थरथराहट। पारिबर्हः (पुं०) [परिवर्त अण्] वैवाहिक उपहार । पारिभद्रः (पुं० ) [ परिभद्र+अण्] ०मूंगे का वृक्ष, देवदारु तरु ।
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० सरल वृक्ष।
० नीम तरु ।
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पारिभाष्यं (नपुं० ) [ परिभू+ ष्यञ् ] ०प्रतिभूति, ०जमानत । ०धरोहर, ०न्यास, निक्षेप पारिभाषिक (वि०) [परिभाषा+ठक् ] ०सामान्य स्वरूप वाला। o किसी विशेष अर्थ वाला स्वाभाविक अर्थ युक्त । • लाक्षणिक, लक्षण युक्त । ० स्वरूप युक्त । पारिमांडल्यं (नपुं० ) [ परिमण्डल + ष्यञ् ] ०अणु, सूर्य किरण
रज ।
पारिमुखिक (वि०) [परिमुख ठक) मुंह के सामने, निकटवर्ती,
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पास का।
पारिमुख्यं (नपुं० ) [ परिमुख+ ष्यञ् ] उपस्थिति, समीप होना, पार्श्ववर्ती
पारियात्रः (पुं०) पर्वत श्रृंखला। पारियात्रिक (वि०) पर्वतवासी ।
पारियानिकः (पुं० ) [ परियान + ठक् ] यात्री सम्बंधी गाड़ी । पारिरक्षकः (पुं० ) [ परिरक्षति आत्मानं परि + रक्ष् + ण्वुल्+अण्] ० मुनि, साधु सन्यासी ।
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पारिव्राजक (नपुं०) [परिव्राजक+अण्] परिभ्रमण शील जीवन वाला सन्यासी ।
पारिवत्त्वं (नपुं० ) [ परिवृत्त+ ष्यञ् परिवेतृ + ष्यञ् ] ताऊ का अविवाहित होना, बड़े भाई का परिणय न होना । पारिशीलः (पुं० ) [ परिशील+अण्] रोटी, पूआ, मालपुआं । अपूप।
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पारिशेष्यं (नपुं० ) [ परिशेष+ ष्यञ् ] शेष बचा हुआ अवशिष्ट । पारिषद (वि०) [ परिषद् +अण्] सभा करने वाला, सभा से सम्बंध रखने वाला।
पारिषदः (पुं०) उपस्थित व्यक्ति, देवमित्र । परिषदि भवा पारिषदाः । (स०सि० ४/४) परिषदि सभायां भवाः पारिषदाः पीठमर्दमित्रतुल्याः
पारिषद्यः (पुं० ) [ परिषद्-यत्] दर्शक, सभा में उपस्थित जन समूह, श्रोतागण |
पारिहारिकी (स्त्री० ) [ परिहर + ठक् + ङीप् ] प्रहेलिका, रहस्यमयी पहेली बुझौवल
पारिहार्य : (पुं०) कंगन, वलय, कड़ा।
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पारिहार्यं ( नपुं०) ग्रहण करना, स्वीकार करना लेना। पारिहास्यं (नपुं० ) [ परिहास + ष्यञ् ] हंसी उड़ाना। पारी (स्त्री० ) [ पृ + णिच+घञ् + ङीष् ] ०हस्बिंधन का रास्सा
० जल का परिमाण ।
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०प्याला, सकोरा कटोरा ० सुराही ।
पारीण (वि०) दूसरे पार जाने वाला। ०सुविज्ञ, सुपरिचित, जानकारी।
पारीणह्यं (नपुं०) घर का सामान।
पारीन्द्रः (पुं०) [पारिपशुः तस्येन्द्रः] ०सिंह, ० अजगर । पारीरण: (पुं०) [पायां जलपूरे रण यस्य ] ०कच्छप, कूर्म,
पार्यंतिक
कछुवा ।
०छड़ी, यष्टि, लाठी।
पारु: (पुं०) [पिबति रसान् पारु] ०सूर्य, दिनकर । ० अग्नि, आग।
पारुष्य (वि० ) [ परुष + ष्यञ् ] ०खुरदुरापन, कठोरता युक्त,
कड़ापन ।
० क्रूरता, निर्दयता ।
• अपलाप, अपभाषा, बुरा-भला, अश्लील।
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० इन्द्र का आराम।
● अगर रोष युक्त।
पारुष्यः (पुं०) बृहस्पति ।
पारोवर्यं (नपुं०) [परोवर + ष्यञ् ] परम्परा, क्रम।
पार्घटं (नपुं०) [पादे घटते इति अच्] ०धूल, रज, राख। पार्जन्य (वि०) [पर्जन्य+अण्] वृष्टि से सम्बन्ध रखने वाला। पार्ण (वि०) [पर्ण+अण्] पत्तों से सम्बन्धित ।
पार्थः (पुं० ) [ पृथा+अण्] ०युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन के मातृकुलसूचक सम्बोधन।
० अर्जुन |
पार्थक्यं (नपुं०) पृथक्ता, अलग अलग। पार्थसारथिः (पुं०) कृष्ण।
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पार्थवं (नपुं०) विस्तार, फैलाव, चौड़ाई । पार्थिव (वि०) [पृथिवी+अण्] भू सम्बन्धी |
पार्थिवः (पुं०) राजा, पृथ्वीपालक। (जयो० ११/७०, ६ / ९९ ) पार्थिवसुता (स्त्री०) राजकुमारी ।
पार्पर (पुं०) मुट्ठीभर चावल ०क्षयरोग, तपेदिक । पार्यंतिक (वि० ) [ पर्यन्त + ठक् ] ०अन्तिम, आखरी । ० निर्णायक ।