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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पापफल पापफल (वि०) अनिष्टकर, घातकपरिणाम। पापबुद्धिः (स्त्री०) निम्नबुद्धि, नीचमति । पापभाव: (पुं०) पाप परिणाम पापमति: (स्त्री०) निम्नबुद्धि, दुष्टहृदय । पापमुक्त (वि०) अशुभ से हटा हुआ। पापमोचनं (नपुं०) पापनाशन, पाप का अभाव। पापयोनि (स्त्री०) पाप स्थान www.kobatirth.org पापरोगः (पुं०) निम्नरोग, घातक बीमारी । पापल (वि०) पाप अर्जित करने वाला । पापवर्जित (वि०) अघनाशक, अघोन (जयो०वृ० ३/३२) पापवृत्तिपरान्मुखः (पुं०) पाप वृति की ओर (सुद० १२८) पापश्रमण (पुं०) एकाकी विचरण करने वाला श्रमण। ० श्रमणाचार विमुक्त साधु। पापशील (वि०) दुष्ट प्रकृति वाला। पाप संकल्प (वि०) दुरात्मन् । पापहापनं (नपुं०) पापनाशक । 'पापस्य हापनं पापनाशकमेव ' (जयो०वृ०२/२२) पापहीन (वि०) अधमतारहित निरेना (जयो०० २२ / ९ ) पापहृत् (वि०) दुरितनाशक । (जयो० २४/५५) पापाचार (पुं०) पाप प्रवृत्ति । (जयो० १२ / ३) दुर्व्यसनी, दुष्ट । पापात्मक (वि०) हिंसात्मक। (जयो०वृ० ३/५४) पापानुबन्धिन् (वि०) पाप करने वाला। (दयो० २ / २३) पाप की ओर प्रवृत्त हुआ। पापापकृत् (वि०) दुरितापहारक, पापापहारी, अशुभहर्ता । (जयो०वृ० १ / ११३) पापारोपः (पुं०) अशुभ का आरोप, दुष्टता का कथन । (जयो०वृ० १/८२) पापाशय: (पुं०) अशुभोपयोग। (समु० ११५ ) पापाह: (पुं०) दुर्भाग्यपूर्ण दिवस । पापाहारिम् (वि०) पापों का अपहारक । पापापहारीति वयं वदामः सम्विघ्नबाधामपि संहरामः । (सुद०२/२३) पापिन् ( वि० ) [ पाप + इनि] पाप पूर्ण, दुष्टात्मन् । (जयो० १५/५८) परमार्थाञ्च यो भ्रष्टः पापीयान्स पुनः पुमान्। (हित०सं० ५) पापवर्ग: (पुं०) दुश्चरित्रात्माओं का समूह। पापं विमुच्यैव भवेत्पुनीतः स्वर्णं च किट्टप्रतिपाति हीतः पापाद् घृणा किन्तु न पापिवर्गान् मनुष्यतैवं प्रभवेन्निसर्गात् ।। (वीरो० १७/७) ६३८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन पापी-पाप- इष्ठन् ] अधम, नीचवृत्ति युक्त दुष्टतम्। (मुनि० १८ ) + पापीयस् (वि० ) [ पाप ईयसुन्, अयमनयोरतिशयेन पापी ] महापापी, अतिशय दुष्कर्मी। (दयो० १२) पाप्मन् (पुं० ) ( पा+मानिन्, पुगागमः] दुष्ट, नीच, अधम, अपराध पामन् (पुं०) [पा+मनिन् ] चर्मरोग, खुजली । पामन (वि०) [पामन्+र] खुजली से पीड़ित, चर्मरोग से दुःखी । पामर (वि०) [पामन्+न, न लोपः] खुजली से ० पीड़ित, कण्डू वाला। पारक ०दुष्ट, नीच, अधम, गंवार, दीन (वीरो० १७/३७) ० मूर्ख, मूढ, विसम्मूढ । * ० निर्धन, असहाय । पामर (पुं०) मूढ, मूर्ख। ०दुष्ट, नीच पुरुष | पामरत्व (वि०) शूद्रवर्णत्व। (जयो० १८/५०) प्रविरलानामेव लोकानां पामरत्वं शूद्रवर्णत्वं (जयो० १८/५०) पाय: (पुं०) उपाय, प्रयत्न । इह सत्याशंसा पायात्। (सुद०११२) पायना (स्त्री०) [पाणिच् युच्+टाप्] सिंचित करना, छिटकना, पिलाना, तर करना। ०तेज करना, पैना करना, तीक्ष्ण करना। पायस ( वि० ) [ पयस्+अण्] दूध से निर्मित । पायस (पुं०) ०पिपासा, तृष्ण खीर, दूध निर्मित चावल (जयो० २२/५) ० | पायसं (नपुं०) दूध, क्षीर। पायसस्मित (वि०) क्षीर सदृश। (जयो० १२ / १२३ ) पायिकः (पुं० ) पैदल सिपाही पायित (वि०) पिलाई गई (सुद० ३ / २६ ) पायुः (स्त्री०) [पाउण्+युक्] गुदा, मलद्वार। पायुवायु (स्त्री०) अपान वायु। (सुद० ९० ) पाय्यं (नपुं०) (पाण्यत्] ०नोर, जल, पानी। ०पेय पदार्थ, क्षीर, दूध ० प्ररक्षण, परिमाण। पार: (पुं०) [पृ+घञ्] किनारा, तट, दूसरा भाग । (जयो० ५/१००) ० अन्तिम सीमा, अन्तिम भाग। For Private and Personal Use Only o निष्पन्न, बना हुआ, निर्मित किया । पारक (वि०) पार करने वाला, आगे बढ़ने वाला, अग्रगामी, विकाशशील।
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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