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पापफल
पापफल (वि०) अनिष्टकर, घातकपरिणाम।
पापबुद्धिः (स्त्री०) निम्नबुद्धि, नीचमति । पापभाव: (पुं०) पाप परिणाम
पापमति: (स्त्री०) निम्नबुद्धि, दुष्टहृदय । पापमुक्त (वि०) अशुभ से हटा हुआ। पापमोचनं (नपुं०) पापनाशन, पाप का अभाव। पापयोनि (स्त्री०) पाप स्थान
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पापरोगः (पुं०) निम्नरोग, घातक बीमारी । पापल (वि०) पाप अर्जित करने वाला । पापवर्जित (वि०) अघनाशक, अघोन (जयो०वृ० ३/३२) पापवृत्तिपरान्मुखः (पुं०) पाप वृति की ओर (सुद० १२८) पापश्रमण (पुं०) एकाकी विचरण करने वाला श्रमण। ० श्रमणाचार विमुक्त साधु।
पापशील (वि०) दुष्ट प्रकृति वाला। पाप संकल्प (वि०) दुरात्मन् ।
पापहापनं (नपुं०) पापनाशक । 'पापस्य हापनं पापनाशकमेव '
(जयो०वृ०२/२२)
पापहीन (वि०) अधमतारहित निरेना (जयो०० २२ / ९ ) पापहृत् (वि०) दुरितनाशक । (जयो० २४/५५) पापाचार (पुं०) पाप प्रवृत्ति । (जयो० १२ / ३) दुर्व्यसनी, दुष्ट । पापात्मक (वि०) हिंसात्मक। (जयो०वृ० ३/५४) पापानुबन्धिन् (वि०) पाप करने वाला। (दयो० २ / २३) पाप की ओर प्रवृत्त हुआ।
पापापकृत् (वि०) दुरितापहारक, पापापहारी, अशुभहर्ता । (जयो०वृ० १ / ११३)
पापारोपः (पुं०) अशुभ का आरोप, दुष्टता का कथन । (जयो०वृ० १/८२)
पापाशय: (पुं०) अशुभोपयोग। (समु० ११५ ) पापाह: (पुं०) दुर्भाग्यपूर्ण दिवस ।
पापाहारिम् (वि०) पापों का अपहारक । पापापहारीति वयं वदामः सम्विघ्नबाधामपि संहरामः । (सुद०२/२३) पापिन् ( वि० ) [ पाप + इनि] पाप पूर्ण, दुष्टात्मन् । (जयो० १५/५८) परमार्थाञ्च यो भ्रष्टः पापीयान्स पुनः पुमान्। (हित०सं० ५)
पापवर्ग: (पुं०) दुश्चरित्रात्माओं का समूह। पापं विमुच्यैव भवेत्पुनीतः स्वर्णं च किट्टप्रतिपाति हीतः पापाद् घृणा किन्तु न पापिवर्गान् मनुष्यतैवं प्रभवेन्निसर्गात् ।। (वीरो० १७/७)
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पापिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन पापी-पाप- इष्ठन् ] अधम, नीचवृत्ति युक्त दुष्टतम्। (मुनि० १८ )
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पापीयस् (वि० ) [ पाप ईयसुन्, अयमनयोरतिशयेन पापी ] महापापी, अतिशय दुष्कर्मी। (दयो० १२)
पाप्मन् (पुं० ) ( पा+मानिन्, पुगागमः] दुष्ट, नीच, अधम,
अपराध
पामन् (पुं०) [पा+मनिन् ] चर्मरोग, खुजली ।
पामन (वि०) [पामन्+र] खुजली से पीड़ित, चर्मरोग से दुःखी । पामर (वि०) [पामन्+न, न लोपः] खुजली से ० पीड़ित, कण्डू वाला।
पारक
०दुष्ट, नीच, अधम, गंवार, दीन (वीरो० १७/३७) ० मूर्ख, मूढ, विसम्मूढ । * ० निर्धन, असहाय ।
पामर (पुं०) मूढ, मूर्ख। ०दुष्ट, नीच पुरुष | पामरत्व (वि०) शूद्रवर्णत्व। (जयो० १८/५०) प्रविरलानामेव लोकानां पामरत्वं शूद्रवर्णत्वं (जयो० १८/५०)
पाय: (पुं०) उपाय, प्रयत्न । इह सत्याशंसा पायात्। (सुद०११२) पायना (स्त्री०) [पाणिच् युच्+टाप्] सिंचित करना, छिटकना, पिलाना, तर करना।
०तेज करना, पैना करना, तीक्ष्ण करना। पायस ( वि० ) [ पयस्+अण्] दूध से निर्मित । पायस (पुं०) ०पिपासा, तृष्ण खीर, दूध निर्मित चावल (जयो० २२/५)
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पायसं (नपुं०) दूध, क्षीर।
पायसस्मित (वि०) क्षीर सदृश। (जयो० १२ / १२३ ) पायिकः (पुं० ) पैदल सिपाही
पायित (वि०) पिलाई गई (सुद० ३ / २६ ) पायुः (स्त्री०) [पाउण्+युक्] गुदा, मलद्वार। पायुवायु (स्त्री०) अपान वायु। (सुद० ९० ) पाय्यं (नपुं०) (पाण्यत्] ०नोर, जल, पानी।
०पेय पदार्थ, क्षीर, दूध
० प्ररक्षण, परिमाण।
पार: (पुं०) [पृ+घञ्] किनारा, तट, दूसरा भाग । (जयो०
५/१००)
० अन्तिम सीमा, अन्तिम भाग।
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o निष्पन्न, बना हुआ, निर्मित किया ।
पारक (वि०) पार करने वाला, आगे बढ़ने वाला, अग्रगामी, विकाशशील।