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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पात्रदत्ति ० ज्ञान, दर्शन चरित्र तपादि युक्त संयत । • संतुष्टशील, शुचिता युक्त, विनीत । ०गुण प्रकर्ष युक्त | ० संयम लीन, जितेन्द्रिय, धीर व्यक्ति । ० राग-द्वेषादि से रहित मनुज। 'आपदुद्भ्यः पाति यस्तस्मात् पात्रमित्यभिधीयते' (जैन०ल० ६३९) www.kobatirth.org " पात्रदत्ति (नपुं० ) ०पात्रदान, ०योग्य दान, ०भक्तिपूर्वक श्रमणों को दान। ०साधनरत के लिए यथोचित दान। महातपोधनेभ्यः प्रतिग्रहर्चनादिपूर्वक निरवद्याहारदानं ज्ञानसंयमोषकरणादिदानं च पात्रदत्तिः । ( कार्तिकेया० टी० ३९१) पात्रदानं (नपुं०) पात्रदत्ति, पूजा / प्रतिग्रहपूर्वक दान पात्रपाल (पुं०) चम्पू, डांड, नांव खेने को पतवार । पात्रविशेष: (पुं०) तपादि से सम्पन्न व्यक्ति विशेष । 'मोक्षकारणगुण संयोग: विशेष:' (त०वा० ७/३९) पात्रस्थित (वि०) भाण्डमर्जन। पात्री (वि०) उकर्षगुणवाली (सुद०३७) ०हस्तबाली (सुद०२/१०) ० धीरोदात्तगुणयुक्ता । पात्रोचित (वि०) योग्यपात्रानुसार । पात्रोपकरणं (नपुं०) उचित पात्र के लिए पुस्तकादि उपकरण । पाथोजमुखी (वि०) (पाथोजं कमलेवमुखं) कमलमुखी। (जयो० १४/४७) पाथः (पुं० ) ० अग्नि, ०सूर्य । पार्थं (नपुं०) जल, नीर, पानी। पाथस् (नपुं०) [पा+असुथुन्] जल, वारि, नीर । पाथेयं (नपुं० ) [ पथिन् + ढञ् ] मार्ग का कलेबा, रास्ते का भोजन (वीरो० २/२) सम्बल, आधार (जयो० १२/९५) ० कन्याराशि। पाथोधि (स्त्री०) समुद्र सागर (जयो० १०/८२) पाथोनिधि (पुं०) समुद्र, जलराशि। (जयो०२० / २७, समु०३ / ५) पान्वाङ्गिन् (वि) पथिक, राहगीर (वीरो० ६/२१ ) पादः (पुं०) [पद्+घन्] पैर, चरण, पांव (जयो०वृ० ३/४५) (सुद० ५/३) तत्पादयोर्विनीताभ्यामोच्चारणपूर्वकम् (सुद० ४/४६) ०पेड़ की जड़। ० गिरिभाग, तलहटी। ० चौथाई, चौथाई भाषा । छह अंगुल प्रमाण पाद। ० श्लोक का एक चरण, एक पंक्ति 'सा तनुस्तानि चाङ्गानि ' (जयो० ३/४३) ६३५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० किरण सूर्यस्य पादैः। (जयो०वृ० १५/७२) ० स्तम्भ खंभा । पादकं (नपुं०) नूपुर, पायल | पादकटकः (पुं०) पायल, नूपुर। पादपालिका पादकीलिका (स्त्री०) पायल, नूपुर, पैरों के पायजेब । पादक्षेप (पुं०) कदम, पग, पांव रखना (जयो० २४/६१६ ) पादग्रन्थिः (स्त्री०) टखना, घुटना । पादग्रहणं (नपुं० ) ०मुनि का अन्तराय, ०पैरों द्वारा रत्न आदि ग्रहण करना। पादग्रहणं (नपुं०) आदर युक्त अभिवादन, पैर लगना, चरणस्पर्श करना। पादचतुरः (पुं०) मिथ्यानिन्दक, बकरा, रेतीला तट । पाटचत्वरः देखो ऊपर। पादचम्पन (नपुं०) सम्वाहन, दबाना, पैर मसलना (जयो०वृ० १७/४०) पादचार ( नपुं०) कोमल चरण । अश्वा धरित्रीं मृदुपारचारैर्जिघ्रन्त एते स्म च पर्यटन्ति । (जयो० १३ / ८८ पादचारिन् (पुं०) पथिक (जयो०वृ० १३/६) ० पैदल सैनिक, पत्ति। (जयो० १३ / ११ ) पादचारिन् (वि० ) पैदल चलने वाला, फेरी लगाने वाला। पादजः (पुं०) शूद्र, निम्न। पादजाहं (नपुं०) पपोटा, टखने की हड्डी । पादतलं (नपुं० ) पैर का तलवा । पादत्र: (पुं०) उपानह, जूता । पादत्राणं (नपुं०) उपानह, जूता, पदरक्षक। पादपतनं (नपुं०) अभिवादन, विनम्रता, चरणस्पर्श । 'पादपतनं प्रमाणदिगौरवम्' (जैन०ल० ७०० ) For Private and Personal Use Only पादपः (पुं०) वृक्ष, तरु । (सुद० ३/१४) पादपकोटर: (पुं०) वृक्ष की खोह । (मुनि० ३ ) पादपद्मरुचिः (स्त्री०) चरण कमल के प्रति रुचि। (जयो० ४/१८) पादपोपगमनं (नपुं०) निश्चलपूर्वक अनशन करना । ० शरीर को वृक्ष की तरह स्थिर रखना । पादस्योपगमनंअस्पन्दतयाऽवस्थानम्' (जैन०ल० ७०१ ) पादपोगमनमरणं (नपुं०) अनशन, अत्यन्त निश्चलता पूर्वक मरण । पादपो वृक्षः, तस्येव छिन्नपतितस्योपगमनम् अत्यन्त' निश्चेष्टतयाऽवस्थानं यस्मिन् तत् पादपोगमनम्। (जैन०ल० ७०१ ) पादपालिका (स्त्री०) पायजेब, पायल |
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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