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पाणिसंकेतः
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पात्रं
पाणिसंकेतः (पुं०) हाथ द्वारा इंगित। (जयो० ६/६) पातङ्गि (पुं०) [पतङ्ग+इञ्] * यम, शनि, कर्म, सुग्रीव। पाणिसमस्याण (स्त्री०) हाथ की समस्या। (जयो० ६/६) पातञ्जल (वि०) पतञ्जलि द्वारा रचित भाष्य। पाण्डर (वि०) [पाण्डर+अच्] धवल, स्वच्छ, गेरु रंग का। | पातञ्जलं (नपुं०) पतञ्जलि का योगदर्शन। ___ चमेली पुष्प।
पातनं (नपुं०) [पत्+णिच् ल्युट्] गिराना, धक्का देना, धकेड़ना। पाण्डपुत्रः (पुं०) पाण्डु पुत्र। (दयो०८)
०फेंकना, पछाड़ना, डालना। पाण्डवः (पुं०) [पाण्डोः अपत्यम्, पाण्डु+अण] पाण्डवानां ०हीन करना, नीचा दिखाना।
तथा भीष्म पितामह इति। (वीरो० ८/४०) ०पाण्डुपुत्र, पातालं (नपुं०) [पतत्यास्मिन्नधर्मेणपत्+आल] अतल, वितल, ०पाण्डु की सन्तान। (सम्य० ६५) युधिष्ठिर, भीम, रसातल, भूगर्भीय ,निम्नस्थल। 'स्वर्गाप्यतिरमणीयानि
अर्जुन, नकुल और सहदेव। (जयो० १८/५१) (वीरो०) पतालानि' (जयो० हि० ११/७३) पाण्डवमय (वि०) पाण्डव युक्त। (जयो०वृ० १/१८) पातालंगत (वि०) नीचे की ओर झुके हुए। (जयो० २२/१९) पाण्डवश्रेष्ठः (पुं०) युधिष्ठिर।
पातालगंगा (स्त्री०) नीचे बहने वाली गंगा। पाण्डवाभीलः (पुं०) कृष्ण।
पातालनिलयः (पुं०) नागलोक। पाण्डवीय (वि०) पाण्डव से सम्बन्धित।
पातालनिवासः (पुं०) नाग लोक। पाण्डित्यं (नपुं०) [पण्डित+ष्यञ्] विद्वता, प्रज्ञाशील, अधिगम पातयेत् (भू०क०कृ०) गिराया। (मुनि० २०) विद्येश्वर।
पातालमूलं (नपुं०) पातालतल। (सुद० १/३६) ०कुशलता, प्रवीणता, तीक्ष्णता दक्षता।
पातिकः (पुं०) [पात+ठन्] सूंस, शिंशुमार। गंगा नदी में पाया पाण्डु (वि०) [पण्ड्+कु] पीतधवल, सफेद सा, पीलापन। जाने वाला जलचरजीवा पाण्डुः (पुं०) स्वच्छ, शुभ्रा
पातिक (वि०) संयम घातक। (मुनि० २९) ०पाण्डु-पाण्डवों के पिताश्री।
पातित् (भू०क०कृ०) [पत्+णिच्+क्त] गिराया गया, पटका पाण्डुकः (पुं०) पाण्डुकशिला।
गया, पछाड़ा गया, परास्त किया गया। पाण्डुनि (वि०) पाण्डुवर्ण वाली। (जयो० १४/६०) स्वच्छ पातित्यं (नपुं०) [पतित+ष्यञ्] पदच्युति, जाति से हीन, आकार वाली।
जातिभ्रंश। पाण्डुनिधिः (स्त्री०) नैसर्गनिधि, एक प्रामाणिक निधि। पातिन् (वि०) [पत्+णिनि] ०अवतरण करने वाला, उतरने पाण्डुर (वि०) [पाण्डु+र] सफेद सा, पीत-धवल।
वाला, गिरने वाला। पण्डुरं (नपुं०) पाण्डुर रोग, श्वेत कुष्ट।
०त्यागने वाला, परित्यक्त करने वाला, छोड़ने वाला। पाण्डुरत्व (वि०) पीतिमान। (जयो०वृ० ५/८)
०ध्वंस करने वाला, धकेलने वाला। पाण्डुरिमन् (पुं०) [पाण्डुर इमनिच्] पीलापन, सफेदी युक्त। | पातिली (स्त्री०) [पातिः संपातिः पक्षियूथं लीयतेऽत्रपाण्डुवपु (नपुं०) श्वेतप्रायशरीर। (जयो० १८/२१)
पानि+ली+डाङीष्] ०जाल, फंदा, ०हांडी, पतेली। पाण्डुशिला (स्त्री०) पाण्डुकशिला। (जयो० १९/२)
पातिव्रत्य (वि०) पति धर्म का पालन करने वाली। (सुद०८८) पाण्ड्या (स्त्री०) देश विशेष।
पातुक (वि०) [पत्+उकञ्] पतनशील, गिरने वाला। पात (वि०) [पा+क्न] रक्षित, संधारित।
पातुकः (पुं०) चट्टान, शिंशुमार। पातः (पुं०) [पत्+घञ्] उड़ना, उतरना, अवतरण करना। पात्रं (नपुं०) [पाति रक्षति-पिबन्नि अनेन वा-पा+ष्टन्] भाण्ड, ०बहना, छूटना, फेंकना।
बर्तन, पानी, सकोरा, पानी भरने का घटादि। ०पतन, उतार।
०वस्तु का आधार। (सुद०) ०पराजय, आक्रमण
०जलाशय, सरोवर। ०दोष, त्रुटि।
०अभिनेता, नायक, नायिका आदि। पातकः (पुं०) [पत्+णिच्+ण्वुल्] ०पाप, अपराध, दुरित योग्यता, श्रेष्ठता, उन्नतता। (जयो०वृ० १६/११५) (समु०८/३३)
ज्ञानाध्यान परायण।
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