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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाखण्डिन् ६३२ पाटवं पाखण्डिन् (वि०) पापी, दुराचारी। पाखण्डिमूढता (स्त्री०) कुगुरु आदि के प्रति श्रद्धा, सांसारिक कार्यों से घिरे हुए साधु के प्रति श्रद्धा। बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहवतां पाखण्डिनां कुगुरूणां नमस्कारादि करणम्।(कार्तिकेयानुप्रेक्षा टी० ३२६) सग्रन्थारम्भहिंसाना संसारावर्तवर्तिनाम्। पाखण्डिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाखण्डिमोहनाम्। (श्राव०) पाखण्डिमोहनः (पुं०) पापाचारी के प्रति श्रद्धा। पागल (वि०) [पारक्षणम् तस्मात् गलति विच्युतो भवति-पा+ गल+अच्] विक्षिप्त, मन्दबुद्धि वाला। पांक्तेय (वि०) [पंक्ति+ढक्] पंक्ति बद्धता। पाचक (वि०) [पच्+ण्वुल] पचाने वाला, सेंकने वाला। (दयो० १७) पाचकः (पुं०) रसोइया। अग्नि। पाचकं (नपुं०) पित्त। पाचनं (नपुं०) [पच्+णिच् ल्युट्] पकाने की क्रिया। पाचनः (पुं०) ०अग्नि, आग। ०खटास, अम्लता। पाचन (वि०) पकाने वाला, पचाने वाला। (वीरो० १९/४०) पाचनः (पुं०) तपस्या, प्रायश्चित्त। पाचलः (पुं०) [पच्+णिच्+कलच्] रसोइया, पाचक। ०अग्नि, आग। पाचलं (नपुं०) पचाना, परिपक्व करना। पांचजन्यः (पुं०) [पंचजन+ञ्य]०शंख। एक शंख नाद, ___* कृष्ण के शंख की ध्वनि। पांचजन्यधरः (पुं०) कृष्ण। पांचदश (वि०) [पंचदशी+अण] पन्दरस, पाक्षिक की अंतिम दिवस की तिथि। पूनम या अमावस्या का दिन। पांचदश्यं (नपुं०) [पंचदशन्+ष्यञ्] पन्द्रह का समुच्चय। पांचनद् (वि.) [पंचवद+अण्] पांच नदियों के समूह वाला स्थान पंजाब। पांचभौतिक (वि०) [पंचभूत+ठक्] पांच तत्त्वों से निर्मित भौतिक वातावरण। पांचवाषिक (वि०) [पंचवर्ष+ठक] पांचवर्ष का। पांचशब्दिक (नपुं०) [पंचशब्द+ठक्] वाद्ययन्त्र। पाचा (स्त्री०) पकाना। पांचाल (वि०) [पंचाल+अण] पंचाल से सम्बंधित। पांचालः (पुं०) पांचालदेश। पांचालिका (स्त्री०) [पांचाली+कप्+टाप] पुत्तलिका, गुड़िया। पांचाली: (स्त्री०) [पांचाल+अण्डीप्] पांचालदेश की राजकुमारी। ०द्रोपदी, पाण्डुप्रिया। ०गुड़िया, पुत्तलिका, पुतली। ०पांचाली रीति-जहां प्रसाद गुण की रचना होती है, वहां पांचाली रीति होती है। पाट् (अव्य०) आहूतार्थ में इस अव्यय का प्रयोग होता है। पाटकः (पुं०) [पट्+णिच्+ण्वुल्] विदारक, विभाजक। ग्रामीण अंचल। संगीत का उपकरण। ०पर्यन्त, तक, सीमा, किनारा, ०भाग, पाडे, स्थल। 'वेश्यानां पाटकं प्राप्तं ब्राह्मिणी निन्द्यते' वित्था, वालिस्त। (हित० १९) ०पांसे फेंकना। पाटच्चरः (पुं०) [पाटयन् छिन्दन् चरति-चर+अच्] 'पाटच्चरश्चोरो वन्दिकरो', चोर, लुटेरा, पाड़ लगाने वाला बन्दीकर। पाटनं (नपुं०) [पट्+णिच्+ल्युट्] तोड़ना, ध्वंस करना, गिराना, विदीर्ण करना, नष्ट करना, फाड़ना। पाटल (वि०) [पट्+णिच्+कलच्] गुलाबी रंग, पीतरक्त वर्ण। पाटलं (नपुं०) गुलाब पुष्प। ०पाटलवृक्ष का पुष्प। पाटलः (पुं०) एक औषधी। (जयो० २४/२६) पाटलपुष्पं (नपुं०) भूपद्म। (जयो०१/८३) पृथ्वी का कमल। पाटलरजं (नपुं०) गुलाब की पराग। ०गुलाब रंग की धूल। पाटला (स्त्री०) [पाटल+अच्+टाप्] ०लोन, लोध, ०पादर तरु, गुलाब। पाटलाञ्चित (वि०) गुलाबी वर्णवाला। (जयो० २४/२६) पाटलिः (स्त्री०) [पाटल+इनि] गुलाब का पुष्प। पाटलिकः (पुं०) छात्र, विद्यार्थी। पाटलिपुत्रं (नपुं०) पटना, एक प्राचीन नगर, जो मागध देश की राजधानी के रूप में प्रचलित था। (सुद० ११९) 'प्रसञ्चरन् वात इवाप्यपापः क्रमादसौ पाटलिपुत्रमाप। (सुद० ११९) पाटलिमन् (पुं०) [पाटल+इमनिच्] पीतरंग, पीलावर्ग। पाटल्या (स्त्री०) [पाटल+यत्+टाप्] गुलाब के पुष्पों का गुच्छा। पाटवं (नपुं०) [पटु+अण] चातुर्य, चतुराई, निपुणता। (जयो० ५/२०) 'पाटताभरणविभ्रमसर्गः'। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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