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पवित
६३०
पश्चात्तापशील
पवित (वि०) [पू+क्त] पवित्र किया हुआ, शोधा हुआ। पशु (स्त्री०) मवेशी, जानवर। (जयो०१० २२०) जंगली, पवितं (नपुं०) काली मिर्च।
नृशंस। 'सरोमन्थाः पशवः' (धव० ४३/३९१) पवित्र (पुं०) [पू+इत्र] शुद्ध, उत्तम। सुदर्शनं नाम परं पवित्रम। | पशुक्रिया (स्त्री०) क्रूर क्रिया, घातकक्रिया।
(भक्ति० ७) श्रेष्ठ, पावन, पूत। गंगापगासिन्धुनदान्तरत्र, | पशुगेहं (नपुं०) पशुशाला, वार, जहां पशुओं को बांधा पवित्रयेकं प्रतिभाति तत्र। (सुद० १/१४)
जाता है। शार। पवित्रीकृत, निष्पाप।
पशुचर (वि०) पशु की तरह चर्या करने वाला। वज्रधारी। (जयो०
पशुचर्या (स्त्री०) सहवास, स्त्रीप्रसंग, निम्न प्रवृत्ति। पवित्रं (नपुं०) चलनी, झाननी।
पशुजातिः (स्त्री०) जंगली जाति। विचार ही जाति। पवित्रकं (नपुं०) [पवित्र+कै+क] जाल, रस्सा।
पशुता (वि०) नीचता। पवित्रकटीमण्डलं (नपुं०) पविर्वज्र। सूक्ष्म कटी वाली। पशुधर्मः (पुं०) पशुप्रकृति। (जयो० ६/९)
पशुनाथः (पुं०) शिव। पवित्रता (वि०) शुद्धता, स्वच्छता। सद्भिरादरणीयस्योद् भवतोऽपि पशुपः (पुं०) ग्वाला, अहीर। पवित्रता। (वीरो० ६/४२)
पशुपतिः (पुं०) महादेव, शिव। उमामवाप्य महादेवोऽपि च पवित्रदूर्वा (स्त्री०) परमेष्ठि-पद-संस्पृष्ट दूर्वा, मंत्रित दूर्वा। गत्वाऽपत्रपतायाम्। किमिह पुनर्न बभूव विषादी स्थानं
(जयो० १२/९७) गुरवोऽभिधूवरं ददुर्वा शुभसम्वादकरी पशुपतितायाः। (सुद० ११२) पवित्रदूर्वाः। (जयो० १२/९७)
पशुपालः (पुं०) ग्वाला, पशु पालन करने वाला। पवित्रपाणि: (स्त्री०) धुले हुए हाथ।
पशुपालकः (पुं०) गोपालक, ग्वाला। पवित्रभावः (पुं०) उन्नतभाव, विशुद्धभाव।
पशुपालनं (नपुं०) पशुरक्षण। पवित्ररूप (वि०) उत्कृष्ट सौंदर्य युक्त, चरम रमणीय। पशुपुरीषः (पुं०) पाशविक विट, पशु की विष्टा, गाय का (सुद० २/४)
गोबर। (जयो० २/७८) पवित्ररूपिणी (स्त्री०) पवित्र रूपवाली, सौंदर्य से परिपूर्ण। | पशप्रेरकः (पुं०) पशुओं को हांकना, जंगल ले जाना। (समु० २/१३)
पशुबलिः (स्त्री०) पशुओं की आहूति। (वीरो० २२/१७) पवित्रात्मक (वि०) सुमन स्थल वाला, शुद्धात्मक स्वरूप | पशुभक्षणीय (वि०) पशु सम्बंधी भोजन, बांटा। (जयो०१० वाला। (जयो०वृ० १/९७)
२/१०९) पशु सम्बंधी आहार। पवित्रात्मत्व (वि०) पवित्रात्मरूपवती, विशदाक्षवती, सुलोचना। पशुभावः (पुं०) जड़भाव, मूर्तभाव। (जयो० १०/४१) (जयो० ३/८४)
पशुभोजनं (नपुं०) वाण्ट, बांटा। 'गृहस्था जना वाण्टं पशुभोजनं पवित्रारोपणं (नपुं०) उन्नत संस्कार। उत्तम भावना। ___ तद्वद् वृषं धर्ममपेक्ष्य'। पवित्रारोहरणं (नपुं०) उपनयनादि संस्कार। * संस्कारित दृष्टि। पशुमारं (अव्य०) पशुवध की रीति के अनुसार। पवित्राप्सारस् (स्त्री०) स्वर्ग सदृश। अप्सरा। ग्रामान् पवित्रा- पशुयोनिः (स्त्री०) पशु पर्याय। (समु० ५/४)
प्सरसोऽप्यनेककल्पांघ्रिपान्यत्र सतां विवेकः। (सुद० १२०) पशुरज्जू (स्त्री०) पशुधन की रस्सी। पवित्राशयवती (वि०) उदर अभिप्राय वाली। (जयो० १५/३७) पश्चात् (अव्य०) [अपर+अति-पश्चभाव:] पीछे से, पिछली पवित्रतार्थ (वि०) संहितार्थ। (जयो०० ९/९०)
ओर से। पश्चात्-पुनः। (जयो० १/४७) नि:सङ्गोऽनिलवद्यपवित्री (स्त्री०) शुद्धि, स्वच्छता।
तिर्विचरतात्सर्वत्र पश्चादयम्। (मुनि० ७) पवित्रीकृतावनिः (स्त्री०) स्वच्छ की गई, पृथ्वी, शुद्धता युक्त पश्चात्कृत (वि०) पीछे छोड़ हुआ।
घटा। (पवित्रीकृताऽवनिः यथा सा (जयो० ११/७३) पश्चात्तत्वं (नपुं०) इसके अनंतर की संतप्ति। (वीरो० १६/२६) पवित्रीभूत् (वि०) पवित्र की गई, शुद्ध हुई। (जयो० पश्चात्तापः (पुं०) पछताना, संतप्त होना। १९/५,१४/३)
पश्चात्तापशील (वि०) उपतापी। (जयो० १५/५८) पुनः पशव्य (वि०) [पशु+यत्] पशु सम्बंधी, पशुतापूर्ण।
पुनः विचार कर, पश्चात्ताप युक्त।
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