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पलक:
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पल्लक:
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पलकः (पुं०) अक्षिपलक। (जयो० १८/१०) पलङ्कयत्व (वि०) मांस भक्षणत्व। (वीरो० ९/१५) पलंकर (वि.) [पलं मासं कटति-पल+कट्+खच्] भीरु, ___ डरा हुआ, भयभीत। पलंकर (वि०) [पलं मासं करोति पलम्+कृ+अच्] पित्त। पलंकषः (पुं०) [पलं कषति-पलं कष्+अच्] राक्षस, पिशाच,
दानव। पलंकषं (नपुं०) ०मांस, कीचड़, दलदल। पलकांशः (पुं०) पक्षपात लव, पलक गिरना। (जयो० १८/१०) पलवः (पुं०) [पल+वा+क] जाल, मछलियां पकड़ने का जाल। पलांडु (पुं०) [पलस्य मांसस्य अंडमिव पल+अंड्+कु] प्याज। पलापः (पुं०) [पलं मासं आप्यते बाहुल्येन अत्र-पल+
आप्+घञ्] ०हाथी की पुटपुडी। ०पगहा, रज्जू, रस्सी। पलाय (अक०) भागना, उड़ना। (जयो०११/१२, १३/८६) पलायते। पलायनं (नपुं०) [परा+अय्+ल्युट रस्य लः] भागना, लौटना,
बच निकलना। पलायमास (वि०) भाग गई। (सुद० पृ०६९) पलायित (भू०क०कृ०) [परा+अप्+क्त] भागा हुआ, लौटा
हुआ, घांस विशेष। भयभीत हुआ। (सुद० २/२७) पलाल: (पुं०) पुआल, भूसी, घांस विशेष। पलालसमूहः (पुं०) तृणोत्कर। (जयो०वृ० २/३) पलालि: (स्त्री०) [पल+अल्-इन्] मांस समूह। पलाशः (पुं०) [पल+अश्+अण्] पलमश्नाति मांस खादतीति
(वीरो० ६/२७) (सुद० १/३३)
पलाश वृक्ष, छेवला, ढाक तरु। किंशुक। (सुद०१/३३) पलाश (नपुं०) पत्ता, पंखुड़ी।
हरा रंग। पलाशप्रकरः (पुं०) कोंपल, मांसभक्षी। (सुद० २/२७) पलाशित (वि०) किंशुकता। (सुद० १/३३) २. मांसभक्षी।
(सु० १/३३) पलाशिन् (पुं०) [पलाश वृक्ष, ढाक तरु] मांसभक्षक।
(जयो०२४/४५) पलिक्नी (स्त्री०) [पलित+अच, तस्य कन्-डीप्]० बूढ़ी स्त्री। ___०बालगर्भिणी। पलियः (पुं०) [परि+ह्र+अप्-घादेशः रस्य ल] ०शीशे का
पात्र, घड़ा, मर्तवान। ०परकोटा, ०लोहे की गदा। गोशाला, गोकुल, गोगृह।
पलित (वि०) [पल+क्त] भूरा, धवल। (समु० ७/३) पलितं (नपुं०) पल्य, एक प्रमाण विशेष। 'असंख्येययुगात्मक
पलितम्' असंख्यात युग प्रमाण काल। पलितंकरण (वि०) [अपलितः पलितं क्रियतेऽनेन पलित+
कृ+ख्युन् मुम्] सफेद करने वाला। स्वच्छता करने वाला। पलितंभविष्णु (वि०) धवल होने वाला। पलिसोज्ज्वलः (पुं०) धवल, शुभ्र। (जयो० २/३६) पलितत्व (वि०) सफेदी, धवलता। श्वेत्य (जयो० १३/५३)
जनी जनं त्युक्तुमिवाभिवाञ्छति यदा स शीर्षे पलितत्वमञ्चति
(वीरो० ९/११) पलितप्रभ (वि०) श्वेतकेशत्व की भांति वाला। (जयो० १८/४१)
क्षणिक भाव। 'संघूर्ण्यमानशिरसः पलितप्रभस्य' (जयो० १८/४१) 'पलितप्रभस्य पलभावं क्षणिकतामिता पलिता प्रभा यस्य', 'श्वेतकेशत्वं तस्य प्रभा यस्य' (जयो०वृ०
१८/४१) पल्यः (पुं०) ०प्रमाण विशेष, प्रमाणांगुल के प्रमाण से एक
योजन विस्तार, आयाम और अवगाह वाले गोल गर्त का नाम पल्य है।
एक योजन विस्तृत और एक योजन ऊँचे गोल गर्त का नाम पल्य है। 'प्रमाणांगुल-परिमित-योजनविष्कम्भायामावगाहनानि त्रीणि पल्यानि, कुशूला इत्यर्थः (स०सि० ३/३८)
योजनविस्तीर्ण योजनोच्छायं वृत्तं पल्यम्। (त०भा०४/१५) पल्यङ्कः (पुं०) [परितः अक्यतेऽत्र-परि+अक्+घञ्, रस्य
लः] पलंग, आसन, खटिया। पल्ययनं (नपुं०) [परि+अच्+ ल्युट्, रस्य ल:]०जीन, काठी,
पलान, झूल।
रास, लगाम। पल्यङ्कासनं (नपुं०) वीरासन। (सुद०७०) पल्योपमः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। एक योजन विस्तीर्ण एवं
गहरे गर्त को एक दिन के उत्पन्न बालक के बालाग्रकोटियों से भरकर सौ सौ वर्ष में एक बालान से निकालने में जो काल लगता है, उतने काल का पल्योयम होता है।
'असंखेन्जेहि वस्सेहि पलिदोवमं होदि' (धव० १३/३००) पल्लः (पुं०) [पल्ल+अच्] कोठा, भण्डारन, खत्ती, अनाज
संचयनी। पल्लकः (पुं०) कोठा, अनाज संचयनी, भण्डारन, खत्ती।
पल्लको नाम लाटदेशे धान्याधारविशेषः। (जैन०ल० ६७९)
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