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पर्यायलोकः
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पलं
पर्यायलोकः (पुं०) द्रव्य, गुणादि रूप लोक। पर्यायसमासः (पुं०) अनन्त भाग लोक पर्यायसमास है। पर्यायार्थिकः (पुं०) पर्यायार्थिक नय, जिस नय में केवल
पर्याय ही है, पर्यायार्थिक को पर्यायास्तिक भी कहा जाता है। 'पर्यायोऽर्थः प्रयोजनमस्येत्यसौ पर्यायार्थिकः। (स०सि०
१/६) प्राधान्येन पर्यायमात्र ग्राही पर्यायार्थिकः। पर्युपासनं (नपुं०) [परि+उप्+आस्+ल्युट] पूजा, सम्मान,
आराधना। ०पूर्ण/यथेष्ट उपासना। पर्युषणं (नपुं०) पर्व विशेष, भाद्र मास में मनाया जाने वाला,
आत्मोन्नति का पर्व। आराधना पर्व। जिनोपासकों में
मनाया जाने वाला आत्म-साधना का पर्व। पर्युषणकल्पः (पुं०) स्थितिकल्प, वर्षावास का कल्प। पर्वः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। पर्वांग को पूर्वांग से गुणित
करने पर पर्व का प्रमाण प्राप्त होता है। एक पूर्व वर्ष को एक लाख से गुणित चौरासी के वर्ग से गुणा करने पर
पर्व का प्रमाण होता है। पर्वकं (नपुं०) [पर्वणा ग्रन्थिना कायति] घुटने का जोड़। पर्वणी (स्त्री०) [पर्व ल्युट् स्त्रीयां ङीप्] पूर्णिमा, शुक्ल
प्रतिपदा।
उत्सव, महोत्सव। पर्वण्युपवासकृत् (वि०) पर्व पर उपवास करने वाला।
(वीरो०१४/२९) पर्वतः (पुं०) [प+अचच्] गिरि, पर्वत, पहाड़। चट्टान,
पर्वतमुनि (जयो०वृ० २/१२७) ०पर्वत नाम विद्वान् (वीरो० १८/५१) तीर्थंकर सुब्रतनाथ के समय में एक ही गुरु से पढ़े हुए पर्वत और नारद नामक दो विद्वान् थे। जो 'अज' शब्द का अलग अलग अर्थ करते थे। पर्वत 'अज' का अर्थ छाग (बकरा) करता था और नारद नहीं उगने योग्य धान्य कहता था। समस्ति यष्टव्यमजैरमुष्य छागैरियत्पर्वत आह दूष्यम्। पुराण-धान्यैरिति नारदस्तु तयोर भूत्सङ्गरसाध्यवस्तु।। (वीरो०
१८/५०) पर्वतजा (स्त्री०) नदी। सरिता, प्रवाहिणी। पर्वतपक्षकीय (वि०) पर्वत का पक्ष लेने वाला। निवार्यमाणा
अपि गीतवन्तः सत्यान्वितैरागभिभिर्हदन्तः। वाक्यावली?र
गुणोदरीर्यास्ते ये पुनः पर्वपक्षकीया:।। (वीरो० १९/५३) पर्वतपतिः (पुं०) हिमालय। हिमगिरि। पर्वतभेदी (वि०) गोत्रभिद। (जयोवृ० १/४१)
पर्वतमोचा (स्त्री०) पहाड़ी पर्वत। हिमालय पर्वत। पर्वतस्थ (वि०) पर्वत पर स्थित। पवर्तावतारः (पुं०) पर्वत का अवतार। (जयो० २४/१८) पर्वन् (पुं०) [पृ+वनिप्] ग्रन्थि, गांठ, जोड़। (जयो०११/४६)
अवयव, अंग, अंश। (सुद० ४/४३) पर्वेति अवयवसन्धिर्ग्रन्थिर्वा (समु० ३/४०)
काव्य का एक अध्याय, पुराण काव्यों में प्रायः पर्व का प्रयोग अध्याय के लिए किया जाता है।
अवधि, सीमा, निश्चित समय। विशेष तिथि विशेष, पर्वदिन। अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमादि तिथियां। (सुद० १३०, पृ० ९२) (जयो० २/३८) 'पर्वाणि चाष्टायादितिथयः पूरणात्पर्व धर्मोपचयहेतुादेति-आहारादिनिवृत्तिनिमित्तं धर्मपूरणं पर्वेति भावना। (जै०ल० ६९५) तिथि, त्योहार, उत्सव। (जयो० ६/१९)
सामान्य अवसर। पर्वकालः (पुं०) पूर्व समय, उत्सव का अवसर। पर्वकारिन् (वि०) पर्व सम्बन्धी कार्य करने वाला। पर्वगामिन् (वि०) पर्व/तिथि पर गमन करने वाला। पर्वधिः (पुं०) चन्द्र, योनि।
बेंत, नरकुल। पर्वरुह (पुं०) अनार का वृक्ष। पर्वव्रतधारणं (नपुं०) पर्व सम्बन्धी व्रत का पालन। (सुद०९६) पर्वसन्धिः (स्त्री०) पूर्णिमा, अमावस्या की समाप्ति का काल। पर्वोपवासः (पुं०) पर्व-अष्टमीआदि का उपवास। (सुद० ९६) पर्शः (पुं०) [पर शत्रु शृणति] [पर+१+कु+स च डित् वा
स्पृशति शत्रून्, स्पृश्+शुन्] ०कुठार, कुल्हाड़ी, फरसा। शस्त्र, हथियार। परशुराम।
गणपति, गणेश। पशुका (स्त्री०) [पशु+क+राप्] पसली। पर्षद (स्त्री०) सभा, समति, सम्मिलन। पलः (पुं०) [पल्+अच्] पुआल, घास! पलं (नपुं०) मांस, आमिष। (मुनि० ९) (सुद० १२७)
समय मापने का माप। 'करिसा चत्तारि पलं' चार कर्षों का एक पल।
चत्वारः कंसाः पलम्'। (त०वा० ३/३८) ०पले च दश गद्याणाः। दश गाद्याणों का एक पल। ०क्षणभर, थोड़ा समय। (वीरो० १८/५८) न स्यात्फलं
यदि पलप्रतिकूलताऽऽपि।
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