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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यसनं ६२६ पर्यायरूपः पर्यसनं (नपुं०) [परि+अस्+ल्युट्] ०फेंकना, छोड़ना, बाहर करना। निकालना, भेजना करना। ०भेज देना, स्थगित करना। पर्यस्त (भू०क०कृ०) [परि+अस्+क्त] फेंका गया, विकीर्ण किया गया। ०पदच्युत। ०प्रहार किया गया। पर्यस्तिः (स्त्री०) [परि+अस्+क्तिन्] ०पर्यंकासन, ०वीरासन ०शय्या, आसन, पलंग। पर्याकुल (वि.) मैल, गंदा, दूषित। अव्यवस्थित, उद्विग्न। ०भयभीत, भयाक्रान्त, आकुलता युक्त। उत्तेजित, घबराया हुआ, क्षुब्ध। पर्याणं (नपुं०) [परि+या+ल्युट्] जीन, काठी। पर्याय: (पुं०) ग्राहक, क्रेता। (जयो० १३/८७) पर्यापतति (स्त्री०) ग्राहक, क्रेता समूह। (जयो० १३/७८) पर्याप्त (भू०क०कृ०) [परि+अप्+क्त] ०परिपूर्ण, सम्पन्न, भरा हुआ, पूर्ण, समस्त, पारा, समग्र। योग्य, सक्षम, यथेष्ट, यथोचित। प्राप्त किया हुआ, उपलब्ध। पर्याप्तं (अव्य०) ०तत्परता से, स्वेच्छापूर्वक, संतोष, यथेष्ट, पूरी तरह सक्षमता के साथ। पर्याप्तः (पुं०) अपनी जाति के योग्य पर्याप्तियों को प्राप्त। ०कर्मोदय से युक्त 'पज्जत्तणामकम्मोदयवंतो जीवा पज्जत्ता'। (धव० ३/४/९) स्व जात्युचितपर्याप्तिलब्धि योग्याः। ०पर्याप्त कर्मोदयवन्तः पर्याप्तः। पर्याप्तकः (पुं०) कर्मोदय युक्त, पर्याप्तियों को प्राप्त। 'प्रर्याप्तनाम कर्मोदयवर्तिनः पर्याप्ताः ये हि चतनः स्व पर्याप्ती पूरयन्तीति (जैन०ल० ६८९) पर्याप्तनामः (पुं०) इन्द्रियादि की उत्पत्ति। जिसके उदय से एकेन्द्रिय विलेन्द्रिय और संज्ञी पंचेद्रिय जीवों के यथायोग्य पर्याप्तियां होती हैं। पर्याप्ताभाषा (स्त्री०) व्यवहार की साधन भूत भाषा, वाक्शुद्धि पूर्ण भाषा। पज्जत्तिगा णाम जा अववहारेतुं सक्कइ जहा सच्चा मोसा वा एसा पज्जत्तिगा। (जै०ल० ६८९) पर्याप्तिः (स्त्री०) [परि+आप+क्तिन्] ०प्राप्त करना, स्वीकार करना, अधिग्रहण करना। अन्त, उपसंहार, समाप्ति। ०पूर्णता, यथेष्टता। तृप्ति, संतोष। साधारण। ०सक्षमता, उपयुक्तता। क्रिया परिसमाप्ति। अपनी क्रिया की समाप्ति। उपचय से उत्पन्न स्थिति। शक्तियों की उत्पत्ति का कारण। 'यतो हि शरीरेन्द्रियादि निष्पत्तिः सा पर्याप्तिः' (न्यायकुमुदचन्द्र पृ० ८५२) आहारकादि की सम्पूर्णता-पर्याप्तीराहरादिकारणसम्पूर्णताः (मूला०वृ० १२/१) ०सम्पूर्णता का कारण। ०स्व विषय ग्रहण का सामर्थ्य। आत्मशक्ति विशेष। पर्याप्तिनामकर्मः (पुं०) पर्याप्तियों का उत्पादक कर्म आहारादि पर्याप्तियों की रचना। पर्याप्तोच्च (वि०) अमितोन्नत। (जयो० १३/६५) पूर्ण विकसित। पर्यायः (पुं०) [परि+३+घञ्] ०परिवर्तन, परावर्तन, परिभ्रमण। एक अवस्था से दूसरी अवस्था को प्राप्त होना। परिभेदमेति गच्छतीति पर्यायः' ०हिंडन, चक्कर काटना, इधर-उधर घूमना। समाप्ति, पूर्णता, समग्रता। प्रणाली, व्यवस्था, पद्धति, दशा। सृष्टि, निर्माण, रचना, उत्पत्ति। ०वस्तु गुण। ०अंश, भाग, हिस्सा। उत्पाद-विनाशादि होना पर्याय 'पर्येत्युत्पाद विनाशौ प्राप्नोति पर्यायः' परि समन्तात् परिप्राप्नुवन्ति परिंगच्छन्ति ये ते पर्यायाः' (त०७० ५.५८) गुणविकार। ०अनेकान्तात्मक वस्तु। उत्पादहेतुक। * अभिधान। (जयो०वृ०११/१४) क्रम भुवो विवर्ताः पर्यायाः। पर्यायच्छेदः (पुं०) पर्याय का उच्छेद, प्रायश्चित्त की क्रिया। पर्यायज्ञानं (नपुं०) वस्तु स्वभाव का ज्ञान। समग्रता का बोध। उत्पत्ति-विनाशादि का परिज्ञान। पर्यायरूपः (पुं०) वस्तु के प्रति समय बदलना। (वीरो०१९/२०) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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