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परुत
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पर्णखंडः
परुत (अव्य०) [पूर्वस्मिन वत्सरे इति पूर्वस्य परभावः उल् । परोक्षः (पुं०) सन्यासी। च] गर्त वर्ष, पिछला साल।
परोक्षं (नपुं०) अगोचर। परुद्धारः (पुं०) अश्व, घोड़ा।
परोक्षदृष्टि (स्त्री०) मूर्त-अमूर्त, चेतन-अचेतन को भली परुषः (पुं०) [पृ+उषन्] कठोर, कठिन, रुखा, सख्त, कड़ा। प्रकार न देखना, अस्पष्ट दृष्टि, अगोचर दृष्टि, अविशद् (जयो० ६/६७)
दृष्टि। ०खुरदुरा, कर्कश।
परोक्षवृत्तिः (स्त्री०) अज्ञात जीवन, अदृष्ट जीवन। गुप्त चर्या। तीक्ष्ण, प्रचण्ड।
परोद्धर्तयितुं (तुमुन्०) उपटन करने के लिए। (वीरो० ५/१०) ०ठोस, गाढा।
परोत्कर्षः (पुं०) दूरे का उत्कर्ष, अन्य लोगों का विकास। मलिन, मैला।
परोत्कर्षसहिष्णुत्वं। (सुद० ४/४२) परुषं (नपुं०) अपभाषण, दुर्वचन, कुवाणी। परुषं वृक्षं स्नेहरहितं | परोत्सृष्ट (वि०) त्यागने वाला, देने वाला द्वित्रैर्भक्त्या परोत्सृष्टं, निष्ठुरं पर पीडाकारी।
दिनै रन्वेषिने यथा। (समु० ९/१०) परुषदोषः (पुं०) पर गण में जाना। अतिदोष।
परोपकृत् (पुं०) परोपकार, दूसरे की भलाई। परुषवचनं (नपुं०) अपभाषण, दुर्वचन। ०कठोर/कर्कशवाणी। परोपकरण (वि०) परोपकारी। (सुद० १००) परुस् (नपुं०) [पृ+उस्] सन्धि, ग्रन्थि, जोड़, गांठ।
परोपकारः (पुं०) दूसरे का उपकार, दूसरे पर अनुग्रहबुद्धि, अवयव
अन्य के प्रति भलाई का भाव। (जयो० २/९९) परेत् (भू०क०कृ०) [पर+इ+त] दिवंगत, मृत।
परेषां सर्वसाधारणानामुपकारो हितसाधनं तस्यैकः। परेतभतृ (पुं०) यमराज, यमदेव।
(जयो०वृ० १/८६) परेतभूमिः (स्त्री०) श्मशान, मशान, मृत्यु स्थल।
०परेषां प्राणिनामनुग्रह एव। (जयो० वृ० १/१२) परेतरपान्तः (पुं०) शव शिविका। (जयो० २५/४७)
परस्यायनुग्रहबुद्धिः । (वीरो० १/३३) परेराज (पुं०) यमराज, यमदेव।
परोपकारेण सुरश्रियः स। (वीरो० १४/२७) परेतवासः (पुं०) श्मशान, मशान।
परोपरोधकरणं (नपुं०) दूसरे के ठहरने में बाधक न होना। परेद्यवि (अव्य०) [परस्मिन् अहनि] दूसरे दिन, अन्य दिन। परेषामुपरोधाकरणम्। परेयुः (अव्य०) अन्य दिवस।
०सूत्र विशारद, स्वामी की आज्ञा बिना वहां न ठहरना। परेष्टुः (पुं०) [पर+इष्+तु] कई बार ब्याई हुई गाय, अनेक परोष्टिः (स्त्री०) [पर+उप्+क्तिन्] तिलचट्टा। बार वत्स देने वाली गाय।
पर्जन्यः (पुं०) [पृष्+शन्य नि-षकारस्य जकार:] ०बरसने परोक्ष (वि०) [अक्ष्णः परम] अगोचर
वाले मेघ, गरजने वाले बादल। गुप्त, अज्ञाप्त, अपरिचित।
०बारिश, बरसात। नहीं दिखाई देने वाला।
०इन्द्र। इन्द्रिय और मन का कारण-'इन्द्रिय-मनोनिमित्तं विज्ञानं | पर्ण (सक०) पत्रों के युक्त करना, हराभरा करना। परोक्षम्'
पण (नपुं०) [पर्ण+अच्] वृक्ष के पत्र। ०इन्द्रिय से सम्बन्धित ज्ञान। परैः इन्द्रियैरक्षा-सम्बन्धनं ०पंख। यस्य ज्ञानस्य तत्परोक्षम्'
बाण का पंख। ०पराणीन्द्रियाणि आलोकादिश्च परेषामायत्तं ज्ञानं परोक्षम्'
पत्ता, पत्र। (जयो० ८/४१) (धव १३/२१२)
पर्णः (पुं०) ढाक का वृक्ष। ०अविशद प्रतिभास, अस्पष्ट आभास। 'अविशद प्रतिभासं पर्णकुटिका (स्त्री०) पत्तों से निर्मित कुटिया, झोपड़ी। परोक्षम् (न्याय दी० ५१) अविशदं परोक्षम् अस्पष्टं पर्णकुटी (स्त्री०) झोपड़ी, घास-फूस की झोपड़ी। परोक्षम्। यदिन्द्रियाद्यैरूपजायमानं परोक्षमर्थाद्भवतीह मानम्। पर्णकृच्छः (पुं०) प्रायश्चित का साधन। (वीरो० २०/२१)
पर्णखंडः (पुं०) पत्तों का ढेर।
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