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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra परिष्वंगः परिष्वंगः (पुं० ) [ परिष्वंञ्+घञ्] ०स्पर्श, सम्पर्क, मेल। ० आलिंगन | परिसंवत्सर (वि०) एक वर्ष का परिसंवत्सरः (पुं०) पूर्ण वर्ष । परिसंख्या (स्त्री०) [परि+सम्+ख्या-अब+टाप्] गणना, गिनती। ० योगफल, जोड़। ० विशेष विधि, विवरण स्पष्ट योग । ० एक अलंकार विशेष यत्र साधारणं किशिदेकत्र प्रतिपाद्यते। अन्यत्र तन्निवृत्यै सा परिसंख्योच्यते यथा। (वाग्भट्टालंकार ११ / १४१ ) जिस अलंकार में किसी साधारण वस्तु का एक स्थान के अतिरिक्त अन्य स्थानों में निषेध करने के लिए उसी एक स्थान में ही वर्णन किया जाता है वह परिसंख्या अलंकार होता है। www.kobatirth.org परिसंख्यात (भू०क० कृ० ) [ परिसंख्या ल्युट् ] ० गिना हुआ, योगकृत, ० निर्दिष्ट । परिसंख्यानं (नपुं० ) [ परि + संख्या + ल्युट् ] ०पूर्ण योग, गणना, गिनती। ० सही निर्देश | परिसंचर (अक० ) प्रतिभासित होना (जयो० २६/१८) परिसंचर: (पुं० ) [परि+सम्+चर्+अच्] विश्व प्रलय का समय, पूर्ण संचरण, उचित संचार । परिसमापनं (नपुं० ) [ परि + सम् +अप् + ल्युट् ] समाप्त करना, पूर्ण करना, परिपूर्ण करना। परिममाप्तिः (स्त्री० ) [ परि + सम् + आप् + क्तिन् ] पूर्ण करना, समाप्त करना । परिसमूहनं (नपुं० ) [ परि + सम् + ऊह + ल्युट् ] एकत्र करना, संग्रह करना, एक जगह लाना, ढेर लगाना। परिसर (पुं०) [परि+सु+घ] तट, किनारा, सामीप्य, आसपास, पड़ौस ० पर्यावरण। ०स्थिति, स्थल, स्थान। ० चौड़ाई। ० मृत्यु, मरण। ० नियम विधि। 2 परिसरणं (नपुं०) [परिसृल्युट्] परिभ्रमण, परिहिंडन, घूमना, डोलना, मंडराना । ● अनुसरण करना। ० फेरना। ६२२ परिहत परिसर्प: (पुं० ) [परि+सृप+घञ् ] इधर-उधर घूमना, अनुसरण करना। परिसर्पणं (नपुं० ) [परि+सृप् + ल्युट् ] ० चलना, रेंगना, मंडराना, ०उड़ना, भागना, दौड़ना । परिसर्या (स्त्री०) [परि+सुयक्-टाप्] प्रदक्षिणा फेरी, घूमना, फिरना। परिस्थल (अक० ) परिस्तरणं (नपुं० ) बखेरना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ० गिरना, व्यतीत होना। (वीरो० ९/२) [परिस्तृ+ ल्युट् ] ०फैलाना, बिछाना, ० आवरण, ढक्कन । परिस्पृश (वि०) छूना। (सुद०२ / ३२) परिस्फुट (वि०) व्यक्त, दृष्टिगोचर, झूला हुआ, बढ़ा हुआ। परिस्फुर् (अक० ) कपकपाना, थर्राना। फैलाना (जयो०१४/१५) परिस्फुरत्तारकता (वि०) कपकपाहट, थरथराहटता (बौरो० २१/२) परिस्फुरणं (नपुं० ) [परि+स्फुर् + ल्युट् ] कंपकंपी, थरथराना । परिस्यंदः (पुं० ) [ परि + स्यन्द्+घञ् ] ०रिसना, ०टपकना, ० बूंद-बूंद गिरना । ०धारा, प्रवाह, बहाव | परिस्थितिः (स्त्री० ) प्रशंसा, गुणगान । अहो दानमहो दाताऽहो पात्रस्य परिस्थिति (दयो० ११७) परिस्रवः (पुं० ) [ परिसु+अप्] ०बहना, बहाव, रिसना। ● झरना, निर्झर ० । ०नदी, सरिता ० सरकना । परिस्राव (पुं०) [परि+खु णिच्+अच्] निकास निस्राव, For Private and Personal Use Only ० आरक्षण, गुप्त रखना। ०छूट छुटकारा, ० तिरस्कार, अनादर । ० आपत्ति, परिवर्जन, विवर्जन बहाव | परिस्रुत् (स्त्री०) [परिस्रु क्विप् तुक् ] ०रिसना, बहना, टपकना । परिस्रुताश्रु (वि०) विनिर्गता, निकले हुए आंसू (दयो० १३ / १०) परिस्रुतैर्विनिर्गतैरश्रुभिः सार्धम्' परिहत ( वि० ) [ परि + ह्र+घञ् ] ०त्यागना, निवारण करना, छोड़ना (समु० १ / १० ) ० तिलाञ्जलि करना, निराकरण करना। J
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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