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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिवेष्ट्ठः ६२१ परिष्वक्त परिवेष्ट्ठः (पुं०) [परि+वेष्ट्+तृच्] सेवा करना, परोसना। परिव्ययः (पुं०) मूल्य, कीमत, लागत। परिव्याधः (पुं०) [परि+व्यध्+ण] एक जाति, नरकुल। परिव्रज् (सक०) जाना, प्रवृत्ति करना। परिव्रजत्व (वि०) वैराग्य भाव। परिव्रज्या (स्त्री०) [परि+व्रज+क्यप्+टाप्] दीक्षा लेना, वैराग्य धारण करना, संयमित होना, ०साधु बनना, साधना करना। परिव्राजकः (पुं०) [परिव्रज्+ण्वुल्] परि समन्तात् पापवर्जनेन व्रजति गच्छतीति परिव्राजकः। (जयो० ल० ६८४) परित्यज्य सर्वान् विषयभोगान् व्रजति। तपस्वी, त्यागी, व्रती, सन्यासी। परिव्राजकता (वि०) सन्यासीपना। स्वर्ग गतोऽप्येत्य पुनर्द्विजत्वं धृत्वा परिव्राजकतामतत्त्वम्। (वीरो० ११/९) परिव्रजेत -परिगमन करे। (सम्य० २२) परिव्याप्त (वि०) पांसुल, अधिक व्याप्त। (जयो० ३/४१) परिशातनाकृतिः (स्त्री०) संचय बिना निर्जरा करना। परिशाश्वत (वि०) उसी रूप बना रहना। परिशिष्टं (वि०) [परि+शिष्+क्त] छोड़ा हुआ, बचाया हुआ। परिशिष्टं (नपुं०) [परि+शील+ल्युट] अध्ययन, मनन, अनुचिन्तन अनुशीलन। परिशुद्धिः (स्त्री०) पूर्ण विशुद्धि, दोष रहित। परिशुष्क (भू०क०कृ०) [परि+शुष्+क्त] सुखाया हुआ, तपाया हुआ। परिशुष्कं (नपुं०) सूखा, रुक्ष। परिशुद्धिः (स्त्री०) शोधन। (जयो० २/१२२) परिशून्य (वि०) पूर्ण रिक्त, खाली। ०सर्वथा स्वतंत्र, नितान्त शून्य। परिशेष (वि०) अर्थापत्ति काल, अर्थ से, व्याज से, छल के कारण। (जयो० २२/३४) परिशिष्ट। 'परिशेषान्न्यायात् परोपकरणादेव' (जयो०० २४/१३२) परिशोध् (अक०) स्नान करना, नहाना, झटकारना। (जयो० २१/६७, जयो० ४/८) परिशोधकारिणी (वि०) पाप हरण करने वाली। (जयो०७० १३/५८) परिशोधनं (नपुं०) मलापहरण। (जयो० २।८१) परिशोषः (पुं०) [परि+शुष्+घञ्] सूखा, रुक्ष, रुखा। परिश्रमः (पुं०) [परि+श्रम्+घञ्] ०थकान, कष्ट, पीड़ा। उद्योग, यत्न, प्रयत्न। (जयो० २/६१) ०परिभ्रान्त (जयो० ७०/३२) ०चेष्टा, गहन अध्ययन। परिश्रमस्पृक (पुं०) परिश्रान्त, थकान, उद्योग। (जयो० ११/७) परिश्रयः (पुं०) [परि+श्रि+अच्] ०सम्मिलन, सभा। ०शरण, आश्रय, आधार। परिश्रान्तः (पुं०) परिश्रम, उद्योग। परिश्रान्ति (स्त्री०) [परि+श्रम् क्तिन्] थकान, कष्ट, पीड़ा। उद्योग, प्रयत्न, परिश्रम। परिश्लेषः (पुं०) [परि+श्लिष्+घञ्] आलिंगन, गले लगाना। परिषद् (स्त्री०) [परितः सीदति, परि+सद्+क्विप्] सभा, सम्मिलन। (जयो० ५/३३) परिषदः (पुं०) [परि+सद्अच्] ०सदस्य, अधिकारी। परिषेकः (पुं०) [परि+सिच्+घञ्] छिड़कना, उड़ेलना, गीला करना। परिषेचनं (नपुं०) [परि+सिच+ल्युट्]०छिड़कना, उड़ेलना, गीला करना। ०अभिषेक करना। आद्रीकरण। (जयो० २/९३) परिष्कण्ण (वि०) [परिस्किन्द्+क्त, णत्वं वा] परिपालित, दूसरे द्वारा पाला। परिष्कंद (वि०) [परि+स्कन्द्+घञ्] परिपालित। परिष्कारः (पुं०) [परि कृ+घञ्] ०आभूषण, अलंकरण, सजावट। ०दीक्षा संस्कार, पवित्रक्रिया। परिष्कृत (भू०क०कृ०) [परि+कृत्+क्त, सुट् षत्वम्] संसृष्ट, संस्कारिता अलंकृत, श्रृंगार, सजावट। परिष्टोमः (पुं०) [परि+स्तु+मन्] हाथी की झूल। आवरण, आच्छादन। परिष्ठापनासंयमः (पुं०) वस्त्रादि के रखने में संयम रखना। परिष्पंदः (पुं०) [परि+स्पंद्+घञ्] ०अनुचर, भृत्य, नौकर चाकर। शृंगार, अलंकरण। धड़कन, स्पंदन। संवर्धन, खाद्य सामग्री। परिष्वक्त (भू०क०कृ०) [परि+स्वं+क्त] ०परिरब्ध, आलिंगित, समालिंगित। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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