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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिप्लव: ६१६ परिभ्रमः ०भ्रमणशील, घुमक्कड़। परिभागपर्यन्तः (पुं०) विभाग पर्यन्त। (दयो० १२/१०८) ०कांपता हुआ, थरथराता। परिभावः (पुं०) [परि+भू+घञ्] ०अपमान, तिरस्कार, घृणा। परिप्लवः (पुं०) जलप्लावन, जल में डुबोना, गीला करना। प्रतिष्ठा हानि, निरादर। ___उत्पीडन, अत्याचार। (वीरो० १२/२९) परिभाविन् (वि०) [परि+भू+णिनि] तिरस्कार करने वाला, परिप्लावनं (नपुं०) अनर्थ, अत्याचार, उत्पीडन। कामुकी- अपमान करने वाला, लज्जित करने वाला। नामन्यथापि, परिप्लावन-दर्शनात्। (हित० सं० १६) परिभाषणं (नपुं०) [परि+भाष्--ल्युट] प्रवचन, निरूपण, परिप्लुत (भू०क०कृ०) [परि+प्लु+क्त] जलप्लावि, बाढ ग्रस्त। प्रतिपादन। ०व्याकुलित, घबड़ाया हुआ। ०वार्तालाप, बातचीत करना। आद्रीभूत, क्लान्त, दु:खी। परिभाषा। स्नात। अपशब्द करना, धिक्कारना। परिप्लुतं (नपुं०) छलांग। परिभाषा (स्त्री०) [परि+भाष्+अ+टाप्] ०व्याख्यान, कथन, परिप्लुता (स्त्री०) मद्य, मदिरा। निरूपण, प्रवचन। परिप्लुष्ट (भू०क०कृ०) [परि+प्लुष्+क्त] झुलसा हुआ, भन ०कलंक, जिड़की, गाली। भनाया हुआ, जला हुआ। लक्षण, स्वरूप, विवेचन निर्वचन। परिफुल्ल (वि०) पुष्पित, खिला हुआ। (जयो० १४/२६) नियम, विधि, सर्वत्र घटित होने वाली विवेचना। ०पूर्ण विकसित, विकासशील, अलंकृत। परिभिन्नमर्मः (पुं०) शरीरधारी से भिन्न निगोदिका जीव। परिफुल्लगण्डः (पुं०) फूले हुए गाल (सुद० ) (सम्य० ४१) परिफुल्लद्देहः (पुं०) सम्पुष्पित काया, समलंकृत शरीर। | परिभुक्त (भू०क०कृ०) [परि+भुज्+क्त] ० जित, खाया, (जयो० १०/११९) कलामुखीमयमात्मरश्मिभिः हुआ, उपयुक्त। श्रीपरिफुल्लद्देहाम्' (जयो० १०/११९) प्रयोग में लाया हुआ। परिफुल्लवदनः (पुं०) विकास शील शरीर। (जयो० १४/६) | परिभुग्न (वि०) [परि+भुज+क्त] विनत, नम्रीभूत, झुका परिपुल्लोलपः (पुं०) पुष्पित लताग्र। 'परिफुल्लं च तदुलपं हुआ। ०वक्रीकृत। लताग्रम्' (जयो० १४/२६) परिभूतिः (स्त्री०) [परि+भू+क्तिन्] तिरस्कार, अपमान, परिबर्हः (पुं०) [परि+बह+घञ्] भृत्य, सेवक, अनुचर। अनादर। निन्दा। उपस्कर, गृह वस्तु। परभूषणः (पुं०) [परि+भूष्+ल्युट्] श्रृंगार युक्त। ० सम्पत्ति, वैभव, धन-दौलत। परिभोगः (पुं०) [परित्यज्य भुज्यत इति] ० भोगकर छोड़ा परिबृंहणं (नपुं०) [परि+वृह्ह ल्युट्] ०समृद्धि, कल्याण। गया, फिर से भोगा जाता। सम्पूरक, परिशिष्ट। उपभोग, पुन: धारण करने योग्य। 'परिभोगः समाख्यातो परिबंहित (भू०क०कृ०) आवर्धित, बढ़ा हुआ, समृद्ध हुआ। भुज्यते यत पुनः' यथा योषिदलंकार-वस्त्रागार-गजादिकम्।। परिबोधनं (नपुं०) यथार्थ ज्ञान। (जयो० २/३०) (लाटी० सं०६/१४७) परिभर्सित (वि०) भर्त्सना युक्त। (सुद० ९८) परिभोगान्तरायः (पुं०) परिभोग में बांधा, उपभोग में विघ्न। परिभवः (पुं०) [परि+भू+अप्] ०अपमान, निन्दा, तिरस्कार। 'जस्स कम्मस्स उदएण परिभोगस्स विग्घं होदि तं (जयो० ९/४) परिभोगान्तराइयं। (धव० ६/७८) प्रतिष्ठा हानि, निरादर, पराक्रम। परिभ्रंशः (पुं०) [परि+भ्रंश्+घञ्] ०छूटना, गिरना। परिभवपदं (नपुं०) घृणा का पात्र, अपमान स्थान। बच निकलना। परिभवविधिः (स्त्री०) प्रतिष्ठा भंग। परिभ्रमः (पुं०) [परि+भ्रम+घञ्] ०घूमना, टहलना, परिभ्रमण परिभविन् (वि०) [परि+भू+इनि] तुच्छ, अनादर, अपमान, करना। वाग्जाल, घुमा-फिराकर कहना। तिरस्कार, पीड़ित, दु:खित। ०भूल, भ्रमा फलना। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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