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परिपणं
६१५
पिरिप्लव
प्रौढ़, सिद्ध, पूर्णता प्राप्त। (दयो० ५३)
परिपुटनं (नपुं०) [परि+पुट ल्युट] ०छाल उतारना, वल्कट जानकर, ज्ञानी।
हटाना। परिपणं (नपुं०) [परि+पण्+घ] मूलधन, पूंजी, अपना धन। ०अलग करना। परिपणनन् (नपुं०) [परि+पण ल्युट] प्रतिज्ञा करना, नियम लेना। परिपुष्ट (वि०) उत्तरोत्तर उन्नत, पूर्ण भरा हुआ। (जयो०१०/६०) परिपणित (भू०क०कृ०) [परि+पण्+क्त] प्रतिज्ञायुक्त, नियम परिपूजनं (नपुं०) [परि+पूज्+ल्युट्] पूजा करना, सम्मान युक्त।
करना, अर्चना करना, विशेष स्थान देना। 'यक्षादिकम्य परिपंथकः (पुं०) [परि+पंथ्+ण्वुल्] शत्रु, विरोधी, दुश्मन। परिपूजनमप्यनेनः' (वीरो० २२/१६) परिपंथिन् (वि०) [परि+पंथ+णिनि] विरोध करने वाला। परिपूणकः (पुं०) ०घी की छननी, ०भरना, पूरा करना। अन्यमतानुयामी।
सुधरी नामक पक्षी का घोंसला। 'परिपूणको नाम परिपठ् (सक०) मानना, (जयो० २/८०) परिपठ्यते ०प्रयोग घृत-क्षीर-गालनम्' (जैन०ल० ६८२)
करना। देवतां परिपठति सैनसः' (जयो० २/२६)। परिपूर्ण (भू०क०कृ०) [परि+पूर+क्त] अभिवृद्ध पूर्णता (भक्ति० परिपाकः (पुं०) [परि+पच्+घञ्] *पकाया गया, पचना, ७) युक्त, भरा हुआ। (जयो०वृ० १/२२) पकाना।
परिपूर्णेन्द्रियः (पुं०) पूर्ण इन्द्रियां। ०परिणाम, फल, नतीजा।
परिपूत (भू०क०कृ०) पवित्र, विशुद्ध किया, शोधा गया। ०कुशलता, दूरदर्शिता।
(जयो० १२/१३७) ०फटका गया, साफ किया गया। परिपक्वन, विकास, पूर्णता।
परिपूर (सक०) पूर्ण करना, भरना, परिमार्जन करना, परिपाकभर्ता (वि०) कर्मों के परिपाक को भोगने वाला। स्वच्छ करना। (मुनि० १२) (वीरो०१६/४०)
पिच्छात: परिपूरयेत्तनुमिमां पूर्णप्रयत्नात्सदा। (मुनि० १२) परिपाटल (वि०) पीला लाल।
परिपूरणं (नपुं०) भरण पोषण। (जयो० ५/८२) परिपाटल (वि०) परम्परा, रीति, प्रणाली, पद्धति। परिपूरित (वि.) खचित, भरा हुआ। (जयो०वृ० १२/१३०) व्यवस्था, क्रम, उत्तराधिकार।
परिपूर्तिः (स्त्री०) [परि+पूर+क्तिन्] पूर्णता, बिताना, पूर्ण परिपाठः (पुं०) विवरण, निर्देशन, परिगणना, पुनर्निरीक्षण। करना, संपूर्ति। 'श्री त्रिवर्गसहकारिणो जनानाश्रिकेष्टिपरिपार्श्व (वि०) निकट, पास।
परिपूर्तितन्मनाः' (जयो० २/९८) परिपालनं (नपुं०) [परि+पल्+णिच् ल्युट्] रक्षा करना, | परिपृच्छा (स्त्री०) [परि+प्रच्छ्+अ+टाप्] प्रश्न, पूछताछ,
संभालना, धारण करना, जीवित रखना, सुरक्षित करना। पूछने की भावना। ०भरण-पोषण, संवर्धन। (जयो० १८)
परिपेलव (वि०) सूक्ष्म, अत्यन्त मृदु अतिकोमल। परिपालित (वि०) संवर्द्धित। (सुद० ३/४)
परिपोटः (पुं०) [परि+पूट+घञ्] कर्ण रोग। परिपिण्डित (वि०) अव्यक्त वन्दन, सूत्रोच्चारण वन्दन। परिपोषणं (नपुं०) [परि+पुष्+ ल्युट] भरण-पोषण, परिपिष्टकं (नपुं०) [परि+पिष्+क्त कन्] सीसा।
खिलाना-पिलाना, पालन करना, पुष्ट करना। (जयो० परिपीडनं (नपुं०) [परि+पीड्+ल्युट] ०मसलना, मर्दन करना, २/११) 'नान्नतो हि परिपोषणं गवाम्'। रक्षण (जयो० दबाना, दबोचना।
२/११३) निचोड़ना, भींचना।
परिप्रश्नः (पुं०) पूछताछ, प्रश्न करना, सवाल करना, जानने ०क्षति पहुंचना, चोट लगाना।
की इच्छा रखना। परिपीडितदोषः (पुं०) कृतिकर्म का दोष, साधुवन्दना का परिप्राप्तिः (स्त्री०) उपलब्धि, अधिग्रहण।
दोष। दोनों हाथों से अपने जानु का स्पर्श करते हुए वन्दना परिप्रेष्यः (पुं०) भृत्य, सेवक, अनुचर। करना कृतिकर्म के बत्तीस दोषों में चतुर्थ दोष-'हस्ताभ्यां | परिप्लव (वि०) [परि+प्लु+अच्] ० भरे हुए, परिपूर्ण
जानुनो स्वस्य संस्पर्शः परिपीडितम्' (जैन०ल० ६८२) (सुद० १००) परिपीता (स्त्री०) अवलोकिता (जयो० ५/३३)
० अस्थिर, चंचल, चपल।
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