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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिणामवत् ६१३ परित्यागः परिणामवत् (वि०) स्वभाव की तरह, वस्तु परिणति की तरह। (सुद० १०५) परिणामविशुद्धप्रत्याख्यानं (नपुं०) विशुद्ध भाव का प्रत्याख्यान। रागेण व दोसेण व सगपरिणामेण सिदं जं तु। तं पुण पच्चक्खाणं भावविशुद्धं तु णादव्वं ।। (मूला० । ७/१४६) परिणामसुरम्य (वि०) योग्य भाव। विशुद्ध भाव। (जयो० ३/६०) परिणामित (वि०) शुद्धिपूर्वक। (मुनि० ९) परिणायः (पुं०) [परि+णी+घञ्] चाल चलना, मुहरें बदलना। परिणायकः (पुं०) [परि+णी+ण्वुत्] नेता, अधिकारी (जयो० ___३/२०) पति, स्वामी। परिणाययितुं (हेत्वर्थ) [परि+णी+तुमुन्] विवाहयितुं विवाह के लिए। परणाने के लिए, (जयो०८) परिणाहः (पुं०) [परि+न+घञ्] परिधि, वृत्त, विस्तार, चौड़ाई। | (जयो० १७/५३) परिणाहवत् (वि०) [परिणाह+मतुप] परिधि की तरह, विस्तृत, फैला हुआ। परिणाहिन् (वि०) [परिणाह्+इनि] वृत्त, परिधि युक्त, ०फैला हुआ, विशालतम। परिणाहिनी (स्त्री०) गामिनी। (जयो० २/११९) परिणिंसक (वि०) [परि+निस्+ण्वुल्] स्वाद चखने वाला, खाने वाला। परिणिष्टा (स्त्री०) [परि+निष्टा] पूर्ण विश्वास, पूर्ण कौशल। परिणीत (भू०क०कृ०) [परि+नी+क्त] विवाहित, अंगीकृत, स्वीकृत। परिणीतगाथा (स्त्री०) स्तुतिकथा। (जयो० २६/७१) परिणय संबंधी विचार। परिणीता (स्त्री०) विवाहिता स्त्री, परिणय युक्त स्त्री। अंगीकृता। (दयो० ५/३१) परिणेतृ (पुं०) [परि+नी+तृच्] पति, भर्ता। परिणेतुं (तुमुन्) अंगीकार करने के लिए, विवाह करने के | लिए-शिवश्रियं य, परिणेतुमिहः। (वीरो० २१/१) परिणेत्री (स्त्री०) सेविका, दासी, परिचारिका। (जयो० १२/१६) परितर्पणं (नपुं०) [परि+तृप्+ ल्युट्] संतुष्ट करना, तृप्त करना, इच्छा पूर्ण करना। परितस् (अव्य०) [परि+तस्] सर्वत्र, इधर-उधर घूमना, चारों ओर, सभी ओर। 'परितोऽप्यधिगच्छति' (जयो०९/३१) 'परितः प्रचलज्ज्वलच्छलान्निखिलाश्चा पि दिशः समुज्जलाः।' (वीरो०७/३२) 'दीपावली च परितः समपादि एतैः' (वीरो० २१/२३) परितः समन्ततः (जयो० १२/७४) परित:-इतस्ततः (जयो० ८/२९) परितापः (पुं०) संताप, दु:ख, कष्ट वेदना, पीड़ा, व्यथा, शोक। विलाप, पीड़ा, व्यथा, शोक। ०अत्यधिक गर्मी। परितापनं (नपुं०) प्राणियों के लिए सन्ताप, परितापस्य शारीरिकस्य मानसिकस्य च सन्ताप:। (जयो० १२/५८) प्राणिनः सन्तापकरणं परितापनं व्याह्रियते'। परितापनाशिनी (वि०) संताप ध्वंसनी। (जयो० १३/५८) परितुष् (अक०) संतुष्ट होना-परितुष्यति (वीरो० ९/४) परितापनिकी (स्त्री०) खड्गादि से पीड़ा पहुंचना। परितापनं परितापः, पीडाकरणमित्यर्थः। परितुष्ट (भू०क०कृ०) [परि+तुष्+क्त] अति संतोष, चूर्ण संतोष, अधिक संतुष्टि। परितुष्टिः (स्त्री०) [परि+तुष्+क्तिन्] •तुप्ति, संतुष्टि। हर्ष, आनन्द, खुशी। परितोषः (पुं०) [परि+तुष्+घञ्] ०संतोष, हर्ष, आनन्द, खुशी। तृप्ति, संतुष्टि, संतोषदायक। (जयो० ४/४८) परितोषयन् (वि०) संतोषयन, सुंष्टियुक्त। परितोष संस्कृतिः (स्त्री०) परितृप्ति भाव। 'परितोषस्य संतोषस्य संस्कृतिः' (जयो० १३/५६) परितोषिक (वि०) अति संतुष्टि वाला। उपानय। (जयो० ९/२१) परित्यज् (सक०) छोड़ना, त्याग करना, विसर्जित करना, बहाना। (जयो०१/१०१) 'पिताऽपि तावत्तनयं परित्यजेत्' (वीरो० ५/८) परित्यक्त (भू०क०कृ०) [परि+त्युक्त] छोड़ा हुआ, उत्सृष्ट, सर्वथा त्यागा गया, मुक्त। (जयो०० ५/८८) ०अभाव ग्रस्त, वञ्चित, रहित। परित्यजनं (नपुं०) त्यक्त, छोटित। (जयो० १८/१६) परित्यागः (पुं०) [परित्यज्+घञ्] उत्सर्ग करना, छोड़ना, फेकना, ०बहाना, विसर्जित करना। उज्झन। (जयो०वृ० ५/८) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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