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परिणामवत्
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परित्यागः
परिणामवत् (वि०) स्वभाव की तरह, वस्तु परिणति की
तरह। (सुद० १०५) परिणामविशुद्धप्रत्याख्यानं (नपुं०) विशुद्ध भाव का प्रत्याख्यान।
रागेण व दोसेण व सगपरिणामेण सिदं जं तु। तं पुण पच्चक्खाणं भावविशुद्धं तु णादव्वं ।। (मूला० ।
७/१४६) परिणामसुरम्य (वि०) योग्य भाव। विशुद्ध भाव। (जयो०
३/६०) परिणामित (वि०) शुद्धिपूर्वक। (मुनि० ९) परिणायः (पुं०) [परि+णी+घञ्] चाल चलना, मुहरें बदलना। परिणायकः (पुं०) [परि+णी+ण्वुत्] नेता, अधिकारी (जयो० ___३/२०) पति, स्वामी। परिणाययितुं (हेत्वर्थ) [परि+णी+तुमुन्] विवाहयितुं विवाह
के लिए। परणाने के लिए, (जयो०८) परिणाहः (पुं०) [परि+न+घञ्] परिधि, वृत्त, विस्तार, चौड़ाई। |
(जयो० १७/५३) परिणाहवत् (वि०) [परिणाह+मतुप] परिधि की तरह, विस्तृत,
फैला हुआ। परिणाहिन् (वि०) [परिणाह्+इनि] वृत्त, परिधि युक्त,
०फैला हुआ, विशालतम। परिणाहिनी (स्त्री०) गामिनी। (जयो० २/११९) परिणिंसक (वि०) [परि+निस्+ण्वुल्] स्वाद चखने वाला,
खाने वाला। परिणिष्टा (स्त्री०) [परि+निष्टा] पूर्ण विश्वास, पूर्ण कौशल। परिणीत (भू०क०कृ०) [परि+नी+क्त] विवाहित, अंगीकृत,
स्वीकृत। परिणीतगाथा (स्त्री०) स्तुतिकथा। (जयो० २६/७१) परिणय
संबंधी विचार। परिणीता (स्त्री०) विवाहिता स्त्री, परिणय युक्त स्त्री। अंगीकृता।
(दयो० ५/३१) परिणेतृ (पुं०) [परि+नी+तृच्] पति, भर्ता। परिणेतुं (तुमुन्) अंगीकार करने के लिए, विवाह करने के |
लिए-शिवश्रियं य, परिणेतुमिहः। (वीरो० २१/१) परिणेत्री (स्त्री०) सेविका, दासी, परिचारिका। (जयो० १२/१६) परितर्पणं (नपुं०) [परि+तृप्+ ल्युट्] संतुष्ट करना, तृप्त
करना, इच्छा पूर्ण करना। परितस् (अव्य०) [परि+तस्] सर्वत्र, इधर-उधर घूमना,
चारों ओर, सभी ओर। 'परितोऽप्यधिगच्छति' (जयो०९/३१)
'परितः प्रचलज्ज्वलच्छलान्निखिलाश्चा पि दिशः समुज्जलाः।' (वीरो०७/३२) 'दीपावली च परितः समपादि एतैः' (वीरो० २१/२३) परितः समन्ततः (जयो० १२/७४)
परित:-इतस्ततः (जयो० ८/२९) परितापः (पुं०) संताप, दु:ख, कष्ट वेदना, पीड़ा, व्यथा,
शोक। विलाप, पीड़ा, व्यथा, शोक।
०अत्यधिक गर्मी। परितापनं (नपुं०) प्राणियों के लिए सन्ताप, परितापस्य शारीरिकस्य
मानसिकस्य च सन्ताप:। (जयो० १२/५८) प्राणिनः
सन्तापकरणं परितापनं व्याह्रियते'। परितापनाशिनी (वि०) संताप ध्वंसनी। (जयो० १३/५८) परितुष् (अक०) संतुष्ट होना-परितुष्यति (वीरो० ९/४) परितापनिकी (स्त्री०) खड्गादि से पीड़ा पहुंचना। परितापनं
परितापः, पीडाकरणमित्यर्थः। परितुष्ट (भू०क०कृ०) [परि+तुष्+क्त] अति संतोष, चूर्ण
संतोष, अधिक संतुष्टि। परितुष्टिः (स्त्री०) [परि+तुष्+क्तिन्] •तुप्ति, संतुष्टि।
हर्ष, आनन्द, खुशी। परितोषः (पुं०) [परि+तुष्+घञ्] ०संतोष, हर्ष, आनन्द,
खुशी।
तृप्ति, संतुष्टि, संतोषदायक। (जयो० ४/४८) परितोषयन् (वि०) संतोषयन, सुंष्टियुक्त। परितोष संस्कृतिः (स्त्री०) परितृप्ति भाव। 'परितोषस्य संतोषस्य
संस्कृतिः' (जयो० १३/५६) परितोषिक (वि०) अति संतुष्टि वाला। उपानय।
(जयो० ९/२१) परित्यज् (सक०) छोड़ना, त्याग करना, विसर्जित करना,
बहाना। (जयो०१/१०१) 'पिताऽपि तावत्तनयं परित्यजेत्'
(वीरो० ५/८) परित्यक्त (भू०क०कृ०) [परि+त्युक्त] छोड़ा हुआ, उत्सृष्ट,
सर्वथा त्यागा गया, मुक्त। (जयो०० ५/८८) ०अभाव
ग्रस्त, वञ्चित, रहित। परित्यजनं (नपुं०) त्यक्त, छोटित। (जयो० १८/१६) परित्यागः (पुं०) [परित्यज्+घञ्] उत्सर्ग करना, छोड़ना,
फेकना, ०बहाना, विसर्जित करना। उज्झन। (जयो०वृ० ५/८)
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