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परिकरः
६०९
परिखेदः
०कृताचार।
करना।
परिकरः (पुं०) परिजन, अनुचरवर्ग, अनुयायी वर्ग। पुरिपरीतमुपेत्य | परिक्रमणं (नपुं०) [परि+की+ल्युट्] विनिमय, अदला-बदली। निजोचितं, परिकरं परमत्र सुसंहितम्। (समु०७/१३)
भाड़ा, मजदूरी। संग्रह, समुच्चय, समूह, परिग्रह। (जयो० २६/१३) परिक्रमा (पुं०) प्रदक्षिणा। (जयो० १२/७३) आरंभ, उपक्रम।
परिक्रया (स्त्री०) बाढ़ लगाना, घेरना। परिधि, कटिबन्ध, कटिवस्त्र।
परिक्रान्त (वि०) प्रदक्षिणीकृत्। (जयो०वृ० १२/७५) परिकर्तृ (पुं०) सुगन्धित करना, संस्कारित करना।
परिकृत् (वि०) अनुगृहीत। (जयो० ९/३१) परिकर्मन् (पुं०) [परि+कृ+मनिक्] ०सेवक, भृत्य।
परिक्लांत (भू०क०कृ०) [परि+क्लम्+क्त] परिश्रांत, थका सुगन्धित करना, प्रसाधन, सजावट, अलंकरण।
हुआ। सज्जा, तैयारी।
परिक्लेदः (पुं०) [परि+क्लिद्+घञ्] कष्ट, दु:ख, बाधा,
कठिनाई, अड़चन, थकावट। पूजा, अर्चना।
परिक्षयः (पुं०) [परि+क्षि+अच] विनाश, ह्रास, बर्बादी। ०द्रव्य के गुण विशेष का परिणाम। परिकर्म द्रव्यस्य
___०अन्तर्धान होना, समाप्त होना। गुणविशेष परिणामकरणम्।
असफलता। गणितविषयक सूत्र।
परिक्षरः (पुं०) चूता रहना, निकलना, बहना। (जयो० १४/९०)
परिक्षाम (स्त्री०) [परि++क्त] कृश, क्षीण, दुर्बल, कमजोर, योग्यता उत्पन्न करना। परिकर्मनिबन्धनं (नपुं०) अनुकरणीय दृष्टान्त। (जयो० ९/५१)
परिश्रांत, थका हुआ। परिकर्ता (वि०) समुत्पादक। (जयो०वृ० २३/४८)
परिक्षालनं (नपुं०) [परि+क्षल्+णिच् ल्युट्] मार्जन, प्रक्षालन, परिकर्षः (पुं०) [परि कृष्+घञ्] निकालना, उखाड़ना, बाहर
प्रमार्जन, धोना। ०साफ करना, स्वच्छ करना।
परिक्षिप्त (भू०क०कृ०) [परि+क्षिप्+क्त] * प्रसृत, बिखेरा परिकर्षणं (नपुं०) [परि कृष्+ ल्युट्] निकालना, उखाड़ना।
हुआ। परिकलित (वि०) सम्बंधित। (सुद० १/४४)
परिवेष्टित, घेरा हुआ। परिकल्कनं (नपुं०) [परि+कल्क ल्युट्] धोखा, ठगी,
•फैलाया हुआ, परित्यक्त। छलभाव।
परिक्षीण (भू०क०कृ०) [परि+क्षि+क्त] ०अन्तर्हित, लुप्त, परिकल्पनं (नपुं०) [परि+कृप+ल्युट] निर्णय करना, स्थिर
आच्छादित। करना, निर्धारण करना।
०ह्रास युक्त, क्षीण हुआ। उपाय निकालना, अविष्कार करना।
कृश, घिसा हुआ, पका हुआ। वितरण करना।
दरिद्र किया हुआ, खोया हुआ, विनष्ट किया। परिकांक्षित (वि०) [परि+कांक्ष्+क्त] पूर्ण आकांक्षाशीला
०कम किया हुआ, घटाया हुआ। परिकांक्षितः (पुं०) साधु, मुनि।
परिक्षीव (वि०) [परि+क्षीव्क्त ] नशे में धुत, मदहोश, उन्मत्त। परिकीर्ण (वि०) प्रसृत, फैलाया हुआ। ०घिरा हुआ, आवृत। परिक्षेपः (पुं०) [परि+क्षिप्+घञ्] ०फेंकना, विक्षेप करना, परिकूट (नपुं०) अवरोध, रोक, घेरा, आड़।
बिखेरना, इधर-उधर डालना। परिकोपः (पुं०) [परि+कुप्+घञ्] ०अधिक गुस्सा, विशेष घेरना, परिवेष्टित करना।
क्रोध, तीव्र कोप, असह्य क्रोध, सहिष्णुता का अभाव। घेरे की सीमा, नियत सीमा। परिक्रमः (पुं०) भ्रमण, घूमना, टहलना।
परिखा (स्त्री०) [परितः खन्यते खन् ड+टाप्] * खाई, खातिका प्रदक्षिणा, परिक्रमण।
(वीरो०२/२४) (सुद०१/२३) * प्रतिकूप। लीक खूड। ०इधर-उधर भटकना।
परिखातं (नपुं०) खाई, प्रतिकूप। परिक्रयः (पुं०) [परि+की+घञ्] भाड़ा, मजदूरी, रोजी। परिखेदः (पुं०) [परितः खेदः] परिश्रांत थकावट, थकान, काम में लगना, मोल लेना।
क्लान्त, परिश्रम से उत्पन्न खेद।
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