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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मतत्त्वं ६०५ परलोकयात्राः परमात्मतत्त्वं (नमुं०) परमात्मा का भाव, विशुद्धतत्त्व। भरोसे रहना। यः स्यात् परमुखापेक्षी, श्वेव लोके विगर्हितः। देहं वदेत्स्वं बहिरात्मनामाऽन्तरात्मतामेति विवेकधामा। विभिद्य (समु० २/३४) देहात्परमात्मतत्त्वं प्राप्नोति सद्योऽस्तकलङ्कसत्वम्।। (सुद० परमेश्वरः (पुं०) परमात्मा, महान् ऐश्वर्य युक्ता महत्त्वादी१३३) श्वरत्वाच्च यो महेश्वरतां गतः। त्रैधातुक-विनिर्मुक्तस्तं परमात्मदशा (स्त्री०) नारायणता परम विशुद्ध परिणति। वन्दे परमेश्वरम्।। (जैन०ल० पृ० ६६७) (वीरो० १४/३२) विशुद्ध आत्म परिणाम। परमेष्ठिता (वि०) परमेष्ठिपना। (भक्ति० १७) परमात्मपथः (पुं०) सर्वज्ञ पथ, वीतराग मार्ग। (समु० ९/२५) परमेष्ठिन् (पुं०) [परमेष्ठ इनि] जिनदेव। (जयो० १२/७) परमेहितकारके आत्मनः पथि। (जयो० २५/५२) परमपदस्थित परमात्मा, शिव, अर्हत् जिनेश्वर, देवपद। परमात्म-बुद्धिः (स्त्री०) परमात्म मति, उत्कृष्टात्मबुद्धि। (जयो० ३/९८) लभेत मुक्तिं परमात्मबुद्धिः समन्ततः सम्प्रतिपद्यशुद्धिम्। परमेष्ठिपूजित (वि०) परमेष्ठियों द्वारा अर्चित। (जयो० २/२४) (वीरो० १४/२८) 'मङ्गलं तु परमेष्ठिपूजितम्' परमे पदे तिष्ठतीति परमेष्ठी। परमे इन्दादीनां वन्द्ये पदे तिष्ठतीति परमेष्ठी। परमात्मबोध (पुं०) परमात्मा का ज्ञान। (मुनि० ३०) परम्पर (वि०) एक दूसरे से आगे। (जयो० ४/५०) परमारः (पुं०) परमार वंश। परम्परदृष्टान्तः (पुं०) अन्य दृष्टान्त की अपेक्षा। परमारान्वयः (पुं०) परमार वंश में उत्पन्न। 'परमारान्वयोत्थस्य परम्परा (स्त्री०) तति, पंक्ति। (वीरो०२/१५) धरावंशस्य भामिनी। शृंगारदेवी आसीच्च जिनभक्ति सुतत्परा।। परमेष्ठिपदसंस्पृष्ट (वि०) परमपद को स्पर्शित करने वाली। (वीरो० १५/५) (जयो०वृ० १२/३७) परमार्थः (पुं०) मोक्ष। (सुद० ४/३४) परमोदकः (पुं०) बहुत से लड्ड। 'परा समुत्कृष्टक मोदका। परमार्थसिन् (वि०) पदार्थ के प्रति श्रद्धा रखने वाला। (जयो० १२/१३८) उत्तम मोदक। परमार्थसारः (पुं०) विशुद्ध आत्म स्वभाव का सार। स्वत्वं परम्परागत (वि०) क्रमशः, एक के बाद प्राप्त हुआ। समालम्ब्य परोपकारान मनुष्यताऽसौ परमार्थसारा। (दयो०१/७) (वीरो० १७/११) परम्पराबन्धः (पुं०) परम्परा प्राप्ति रूप बन्ध। परमानन्दः (पुं०) उत्कृष्ट सुख। (जयो० ३/९५) परम्परालब्धिः (स्त्री०) परम्परा लब्धि, परम्परा प्राप्ति की परमोपयोगः (पुं०) सम्पूर्ण पदार्थों का विषय करने वाला। प्ररूपणा। (समु०८/२४) परम्परा वृद्धिः (स्त्री०) सन्तान वृद्धि, परम्परा तु संताने परमोपदेशकः (पुं०) सर्वज्ञ कथन कर्ता। (समु०८) खड्ग कोशे परिच्छदे। परमोत्कर्षः (पुं०) महाविकास। (जयो०वृ० १/४२) परम्परास्थापना (स्त्री०) उत्तरोत्तर प्रमाण स्थापना। परमार्थकाल: (पुं०) वर्तना का उपकारक, द्रव्य गति आदि का परम्परोनिधा (स्त्री०) परम्परा के अनुसार स्थानकों का उपकारक काल। वर्तनालक्षणश्च परमार्थकाल:। अन्वेषण। जिस अधिकार में दुगुने एवं चौगुने आदि की परमार्थदात्री (वि०) कल्याणकारी। (वीरो० ३/१८) परीक्षा की जाती है। परमार्थमाद्य (वि०) प्रार्थना। (सुद० २/३१) परराट् (पुं०) शत्रुभूप। (जयो० ३/१०९) परमार्थ प्रत्याख्यानं (नपुं०) विकारी भावों का परित्याग। परलोकः (पुं०) अन्यभव में जाना। परलोको भवान्तर लक्षणः। परमावगाढ रुचिः (स्त्री०) परम तत्त्वों के प्रति अति प्रसन्नता। ०परस्वरूप प्राप्त करना। परमावती (स्त्री०) एक गंगा का नाम। निर्विकल्प स्वरूप का अवलोकन। ०स्वर्ग-अपवर्ग पाना। परमावधिज्ञानं (नपुं०) उत्कृष्ट मर्यादा सम्बंधी ज्ञान। परमा परलोकभयः (पुं०) परभय के आश्रय का भय। विजातीय ओही मज्जाया जस्स णाणस्स तं परमोहिणाणं। (धव० तिर्यंच देवादि पर्याय का भय। १३/३२३) भद्रं चेज्जन्म स्वर्लोके माभून्मे जन्म दुर्गतौ। परमार्हत् (वि०) अर्हन्त मतानुयायी (वीरो० २२/१४) मनुष्यस्य देवादेर्भयं परलोकभयम्॥ परमुखापेक्षी (वि०) दूसरे की अपेक्षा करने वाला, दूसरे के | | परलोकयात्राः (स्त्री०) स्वर्ग यात्रा। (दयो० १०२) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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