SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परलोकसंकथा ६०६ परा परलोकसंकथा (पुं०) दूसरे लोकों की कथा। (वीरो० ९/११) परलोकसंजीवनीकथा (स्त्री०) परलोक के संवेदन की कथा। परलोकहेतु (नुपं०) अपरलोक का कारण। (वीरो० ३/७) परवादः (पुं०) अक्षवाद, दूषित निरूपण। परवाणिः (पुं०) धर्माध्यक्ष, संवत्सर। परविवाहकरणं (नपुं०) दूसरे के विवाह को करना। सवेद्य-चरित्रमोहोदयात् विवह्र विवाहः, परविवराहस्य करणं परविवाहकरणं। परव्यपदेशः (पुं०) अन्य दाता की देय वस्तु को देना। अन्यदातृदेयार्पणं परव्यपदेश परस्प व्यपदाः कथनं परव्यपदेशः। परशरीरः (पुं०) दूसरे की देह। परशुमुद्रा (स्त्री०) पताका सदृश ध्यान की मुद्रा। पताकावत् हस्तं प्रसार्य अङ्गगुष्ठयोजनेन परशुमुद्रा। परसमयः (पुं०) ०परस्वरूप का मानना, रागादि भाव को अपनाना, विभावदशा को स्वीकार करना। 'जीवो सहावणियदो अणियदगुण-पज्जओ य परसमओ। परसमयरतः (पुं०) पर व्यापार में अनुरक्त। परसंग्रहः (पुं०) दूसरे के द्रव्य का ग्रहण। परसेवातत्परः (पुं०) आराधना कारक। (जयोवृ० २/१३१) परलोकः (पुं०) स्वर्ग-अपवर्ग। परया (अव्य०) कदाचित। (जयो० १०/६४) परवत् (वि०) [पर+मतुप मस्य वः] पराधीन, दूसरे के वश में। परवत्ता (स्त्री०) पराधीनता, दूसरे की आधीनता। परवशत्व (वि०) पराधीनता। (जयो० २/१२८९) परवक्तु (वि०) प्रतिवक्ता। परवर (वि०) भयनाशक। (जयो० २/३१) परवतनी (स्त्री०) अन्यथा वचन। परशः (पुं०) पारस पत्थर, वह पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। परशुः (स्त्री०) कुल्हाड़ी, कुठार। (भक्ति० ३०) शस्त्र, हथियार। ०वज्र, घातक अस्त्र। परशुराम। कुठारघाती सैनिक। परश्वधः (पुं०) कुठार, कुल्हाड़ी। परसत्त्वः (पुं०) अन्य प्राणी। (दयो० ३५) परसार्थ (वि.) शत्रुसमूह। (जयो०६/२९) परस् (अव्य०) परे, आगे, पश्चात्, दूर, दूरी। परस्कृष्ण (वि०) अत्यन्त काल। परस्तात् (अव्य०) [पर+अस्ताति] इसके पश्चात्। परस्परः (वि०) [परः परः इति विग्रहे इक] एक दूसरे पर, अन्योन्य। (जयो० ३/८७) परमपरम् (वि०) श्रेष्ठ या हीन। (जयो०६/८४) परस्परतः (वि०) एक दूसरे से। (वीरो० २१/२३) परस्पदानं (नपुं०) एक दूसरे का सम्मान। (जयो० ५/४९) परस्परप्रसादः (पुं०) एक दूसरे का दृष्टिदान, 'अन्योन्यस्य दृष्टिदानम्' (जयो० १०/११६) परस्परप्रेमः (पुं०) एक दूसरे से प्रेम, मेल, प्रीति। (जयो०३० ६/१३०) नरश्च नारी च पशुश्च पक्षी देवोऽथवा दानव आत्मलक्षी। तस्यैव तस्मिन्नुचितोऽधिकारः परस्परप्रेममयो विचार:।। (वीरो० १४/५०) परस्पर विरोधः (पुं०) आपस में वैमनस्य। (जयो०१० ३/१) परस्परस्नेहः (पुं०) एक-दूसरे से स्नेह, विरोधी स्वभाव वालों के प्रति भी स्नेह। सिंहो गजेनाखुरथौतुके, न वृकेण चाजो नकुलोऽहिजेन। स्म स्नेहमासाद्य वसन्ति, तत्र चात्मीय भावेन परेण सत्रा।। (वीरो० १४/५१) परस्पराधिकारिणी (वि०) एक-दूसरे पर अधिकार करने वाला। (जयो० ३/३२) परस्पराविरोधः (पुं०) दूसरे से विरोध नहीं। (हित०सं०७) परस्मैपदः (पुं०) [परस्मै पदार्थ पदं भाषा वा] दूसरे के लिए प्रयुक्त वाच्य क्रिया के दो रूपों में एक रूप। परहन्त (वि०) दूसरे का घातक। निहन्यते यो हि परस्य हन्ता पातास्तु पूज्यो जगतां समन्तात्।। (वीरो० १६/७) परहरणं (नपुं०) परसंहारक। परेषा जीवानां हरणे संहारकरणे (जयो० २३/६३) परहित (वि०) परोपकार। (समु०५/१) परा (वि०) [पृ+अच्+टाप्] दूर, पीछे, उलटे क्रम से, एक ओर। ०अति उत्कृष्टा। (जयो० १/६१) उत्कृष्ट-परामुत्कृष्टाम्'। (जयो०१० २/५९) परायण। (जयो० ५/५९) ०पराक्रम, शक्ति सम्पन्न्ता। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy