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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रिन् ५९८ पदगः | पत्रिन् (वि०) पंखों युक्त, पत्र सहित।। पत्रिन् (वि०) पक्षी, पर्वत गिरि। ०रथ, वृक्षतरु। पत्सलः (पुं०) [पत्+सरन् रस्य ल:] मार्ग, पथ, रास्ता। पथः (पुं०) [पथ्क घञर्थे] पथ, रास्ता, मार्ग पंथा (जयो० २/४८) (सम्य० ९४) ०प्रसार, किनारा। पथ कथनं (नपुं०) पन्थ कथन। (सुद० १३६) पथगत (वि०) मार्ग को प्राप्त। पथगामी (वि०) मार्गानुगामी। पथचर (वि०) मार्गानुसार चरण करने वाला। पथदर्शक (वि०) पथप्रदर्शक, मार्ग दर्शक। दिशा निर्देश देने वाला। (वीरो० ४/५८) 'दिनेशवद्यः पथदर्शको भवेत' (विरो० ४/५८) पथपद्धतिः (स्त्री०) मार्ग पदव्यय। (जयो० ११/२८) पथाग्रवर्तिन (वि०) पथानुगामी। (जयो० २/६२) पथानुवेशिनी (स्त्री०) आप्ताज्ञा प्रतिपादिनी, मार्गानुवेशिनी। (जयो० २/१०) पथपथ्यः (पुं०) पदार्थ समूह। (पथो मार्गस्य पथ्यमन्न वस्त्रादिकः। (जयो० १२/१३६) पथभृष्ट (वि०) मार्ग च्युत, अपने कर्तव्य से विहीन। (जयो०३४/ पथारूढः (पुं०) मार्ग युक्त। (मुनि० १३) पथापात (वि०) वृद्ध परम्परा सम्मत। (जयो० ३/२६) पथिकः (पुं०) [पथिन्+ष्कन्] यात्री, मुसाफिर, बटोही, अध्वनीन। ०पान्थजन। (वीरो० २/१३, जयो० ९) ०पथदर्शक, ०पादचारिन्। (जयो० १३/६) पथिकतंतिः (स्त्री०) पथिक समूह। पथिक-संतति (स्त्री०) यात्री समुदाय। पथिसार्थः (पुं०) एक ही समूह में जाने वाले यात्री। पथिगतवार्ता (स्त्री०) मार्ग को प्राप्त। (जयोवृ० १३/४१) पथिन् (पुं०) [पथ आधारे इनि] ०पथ, रास्ता, मार्ग। पर्यटन, यात्रा, परिभ्रमण। कार्यपद्धति, व्यवहार क्रम। ०सम्प्रदाय, सिद्धान्त। पथिलः (पुं०) [पथ्+इलच्] यात्री, पर्यटक, राहगीर, बटोही। पथिष्ठा (स्त्री०) मार्गस्थिता। (जयो० १३/१५) कर्त्तव्य परायणा। पथ्य (वि०) [पथिन् यत्-इनो लोपः) स्वास्थ्यप्रद, कल्याणकारी, (सुद० ८९) उपयोगी, हितकर, लाभदायक। योग्य, उचित, उपयुक्ता पथ्यं (नपुं०) स्वास्थ्यवर्धक, पौष्टिक, लाभकारी। पथ्यवचनं (नपुं०) हितकर वचन। 'पथ्यं यदायती हितम्' पदः (पुं०) चरण, पैर, पाद। (जयो० २/११५) जाना, चलना, फिरना। (सुद० ७१) ०पहुंचना, पास जाना। पद्ग (वि०) पदाति, पैदल चलने वाला। (जयो०७० २१/१२) पदं (नपुं०) ०जाना, पहुंचना, प्राप्त होना। अनुगमन करना, पीछे चलना। सेवा करना, सहायता करना। विचारकरना, अवलोकन करना समझना। अधिकार में लेना, ग्रस्त करना। धारण करना। ०सान्त्वना देना, अनुग्रह करना। निकट जाना। छल बहाना। (जयो० १२/८०) प्रविष्ट होना, घटित होना। सुवन्त और तिङत शब्द 'सुप्तिङ्गतं पदम्। (जयो० ६/७७) पद्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति पदम्' (धव० ५/१९) पदां सुप्तिङ्गन्तानाम् (जयो०वृ० १/९) सुप्तिङ्गन्तात्मकानिपदम्' (जयो०वृ० २/५२) स्थान-पदे पदे पावनपल्लवलानि। (सुद० १/१८) (सुद०८८) पदं व्यवसित स्थानत्राण लक्ष्मा िवस्तुषु' इत्यमरः। (जयो०वृ० १८८०) पदवी, (सुद०४/१४) प्रतिष्ठा। (जयो० १/४५,जयो०६/८) ०काव्यचरण। (जयो० १/४५) प्राक्त, प्रदेश। (जयो० ३/४५) ०वर्ण समुदाय, पदम्। ०वर्णानामन्योन्यापेक्षाणां निरपेक्षः समुदायः पदम्। अर्थ समाप्ति का नाम। पदं तु अर्थ समाप्तिः। अवयव। (जयो०५/४९) जो अपने योग्य अर्थ को ग्रहण करे। पद्यते गम्यते स्वयोग्योऽर्थोऽनेनेतिपदम्। आपदाओं से रहित। पदकं (नपुं०) [पद्+कन्] पदवी, पदक। पदकः (पुं०) एक आभूषण, स्वर्णपदक, रजतपदक या कांस्यपदका पदक (वि०) पद ज्ञाता, किसी सूत्र के अर्थ का ज्ञाता। पदक्रमः (पुं०) चलना, पैर रखना। पदगः (पुं०) पैदल सैनिक, पैदल अंगरक्षक, गमनशील। (जयो० ९/११) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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