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पतञ्जलिः
पतिसेवा
पतञ्जलिः (पुं०) महाभाष्यकार, पाणिनि व्याकरण के सूत्रों पर | पताकिक (वि०) [पताका+ठन्] ध्वजदण्डाधारी, ध्वज लहराने महाभाष्य लिखने वाले।
वाला। ०योगदर्शन के प्रवर्तक आचार्य। (वीरो० १९/१७) पताकिन् (वि०) [पताका+इनि] झण्डा ले जाने वाला। पतत् (वि०) [पत्+शतृ] उड़ने वाला, उतरने वाला, अवरोहण ध्वजावाहका करने वाला।
पताकिनी (स्त्री०) सेना। पतत् (पुं०) पक्षी, पतंगा (वीरो० ५/३८)
पतिः (पुं०) [पाति-रक्षति-पा+इति] पाति-रक्षति तामिति पति। पतत्ग्रहः (पुं०) पीकदान, थूकदान।
गृहपति, स्वामी, भर्ता। (सुद० २/५०) जिसकी पत्नी पतत्पतिः (पुं०) गरुड पक्षी। 'पततां पक्षिणां पतिर्गरुडः' हो, जो भार्या की रक्षा करता। (जयो०० ७/७५)
०मालिक, अधिपति, प्रभु। (जयो० १/८०) पतद्ग्रहः (पुं०) तद्प परिणमन।
शासक। पतत्रं (नपुं०) [पत्-करणे अत्रन्] ०बाजू, डैना।
प्राण-वल्लभ 'पतिशब्द-शस्त:-शस् प्रत्यये' (जयो०७० ०पंख, पर।
१६/७४)। पतिरपि प्राणवल्लभोऽपि शस्तः प्रशंसनीयोऽस्ति ०सवारी।
(जयो०वृ० १६/७४) यद्वा शस् प्रत्ययत आरम्भ पुनः पतत्रिः (स्त्री०) [पत्+अत्रिन्] पक्षी।
सखिशब्दवत् पतिशब्दोऽपि प्रवर्तत। (जयो०वृ० १६/७४) पतत्रिन् (पुं०) [पतत्र+इनि] पक्षी।
०पति-चन्द्रमा। (जयो०वृ० १५/५०)
पतिचरी (स्त्री०) पति का अनुगामिनी। ०बाण।
पतिदेवः (पुं०) पतिदेव, जो पत्नी अपने भर्ता को देव तुल्य ०अश्व।
समझती। पतनं (नपुं०) [पत्+ल्युट्] उतरना, गिरना, पड़ना, नीचे आता।
पतितत्व (वि०) पतितपना। (सुद० ८८) ०धर्मभ्रष्ट होना, च्युत होना।
पतिता (स्त्री०) तुच्छनारी। (सुद० ८८) अवपात, भ्रंश, नाश, ह्रास, निपत्ति।
पतितुज् (पुं०) चक्रवर्तिसुत। (जयो० ९/२) मृत्यु, मरण।
पतित/पतितत्व (वि०) गिरी हुई। (जयो० २/१६) पतनान्तरायः (पुं०) ०पतन का अन्तराय, ०पतन का दोष,
प्रतिबिम्बित। (जयो० १२/१२०) भूमि पर मूच्छित होकर गिरना। 'भूमौ मूर्छादिना पाते
पतितोद्धारकः (वि०) दलित उद्धार अपने वाला। (वीरो०१० पतनाख्यो'। (अनगार धर्मामृत० ५/५४)
५/६०) पतनीय (वि०) [पत्+अनीयद्] भ्रंशनीय, नाश योग्य।
पतिधर्मः (पुं०) अपने पति के प्रति कर्तव्य। ०पति का पतनीयं (नपुं०) पतित करने वाला, पाप करने वाला।
कर्तव्य। पाति रक्षति नामिति पतिः भार्यारक्षा पतिधर्म। पतनोन्मुख (वि०) गिरने वाला।
पतिपरायणा (स्त्री०) पातिव्रत्य पालिका। पतमः (पुं०) [पत्+अम] चन्द्र।
पतिपिणा (स्त्री०) सती स्त्री। ___०पक्षी, शलभ।
पतिप्रिया (स्त्री०) भर्ता का प्रियतमा। पतयालु (वि०) [पत्+णिच्+आलुच्] पतनोन्मुख।
पतिरहित (वि०) पति के बिना। (जयोवृ० १६/५२) पताका (स्त्री०) [पत्यते ज्ञायते कस्याचिद्भेदोऽनया पत्+ पतिलोकः (पुं०) प्रभु लोक।
आक्+टाप्] ०ध्वज, झण्डा, ०ध्वजा, वैजयन्ती। (जयो० पतिवियोगः (पुं०) भर्ता का वियोग, अपने प्रियतम का ३/३३) 'शृंङ्गोपात्त-पताकाभिरावयन्'। (जयो० ३/८६) विछोह। (जयोव० १६/५२) (जयो०७० ३/७४)
पतिविरह (पुं०) पति का विछोह। (जयो०वृ० १६/५२) पताकांशुक (नपुं०) झण्डा, ध्वजा।
पतिव्रता (स्त्री०) पतिपरायणा, पतिव्रतधारिणी। पताकाततिः (स्त्री०) ध्वजाली। (जयो०व० ३/८२)
पतिसंयोगः (पुं०) चन्द्रमा का सम्बंधी। (जयो० १५/५००) पताकास्थानं (नपुं०) प्रासंगिक कथा की सूचना, नाट्य प्रसंग पतिसेवा (स्त्री०) भर्ता के प्रति आदरभाव, प्रियतम के प्रति में आकस्मिक प्रदर्शन।
आस्था।
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