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पण्डित
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पतञ्जल
पण्डित (वि०) पाप से रहित व्यक्ति। पण्डा, बुद्धिमान,
विद्वान्। 'पापात् डीन:-पलायितः पण्डितः अथवा पण्डा बुद्धिः सा संजाता अस्येति पण्डितः' (जैन०ल० ६५७) पण्डिताः सम्यग्ज्ञानवन्तः। सूक्ष्मबुद्धि, चतुर। ०प्रवीण, कुशल, दक्ष, निपुका ०पण्डा हि रत्नत्रयपरिणता बुद्धि संजाता यस्य स पण्डितः। ०परमसमाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ-(परमात्म
प्रकाश, १४) ०ज्ञानी। (सम्य० ३) पण्डितः (पुं०) शास्त्रज्ञ, चतुर, विद्वान्, धीमंत, ज्ञाता। (जयोवृ०
३/२०) पण्डितजातीय (वि०) चतुर। पण्डित-पण्डितः (पुं०) पाडित्यपूर्ण, ०अतिशय पाण्डित्य
युक्त, ज्ञान दर्शन और चरित्रविषयक व्यक्ति। पाण्डित्यं यस्य ज्ञान दर्शन-चारित्रेषु स पण्डितपण्डित इत्युच्यते।
(भ०आन्टी०२६) पण्डितमरणं (नपुं०) संयत मरण, आत्मानुभूति रूप समाधि,
परमसमाधि पूर्वक मरण। पण्डितमानिक (वि०) विद्वान् समझने वाला, प्रवीणता युक्त,
कुशलता युक्त, शास्त्रज्ञा पण्डिता (स्त्री०) प्रज्ञाशीला, संयिता, शास्त्रप्रवीणा। (सुद०
१२) विदुषी। (सुद० ९०) पण्डितिमन् (पुं०) [पण्डित+इमनिच] ज्ञान, विद्वता, बुद्धिमत्ता। पण्य (वि०) [पण+यत्] क्रय-विक्रय-योग्य वस्तु।
(जयो०१३/८७)
लेन-देन योग्य। पण्य (पुं०) वस्तु, पात्र, भाजन।
०वाणिज्य, व्यवसाय, व्यापार।
मूल्य। पण्यदारं (नपुं०) वेश्यागमन, सप्त व्यसनों में पञ्चम व्यसन।
(जयो० २/१२५) पण्यदारा (स्त्री०) वेश्या, दारिका, पत्तननायिका। पण्ययतिः (पुं०) बड़ा व्यापारी। पण्यभूमिः (स्त्री०) मालगोदाम, अनाज संचयन केंद्र, संयचन
स्थान। पण्ययोषित् (स्त्री०) वेश्या। (सुद० १२५) पण्यललना (स्त्री०) वेश्या। (सुद० १३३) आर्यात्वं स्म समेति
पण्यललना दासीसमेतान्वितः। (सुद० १३३)
पण्य-वीथिका (स्त्री०) मण्डी, विक्रय केन्द्र। पण-वीथी (स्त्री०) दुकान, आपण। पण्य शाला (स्त्री०) ०दुकान, आपण। विक्रय केन्द्र। पण्यस्त्री (स्त्री०) वेश्या।
पण्यस्त्री तु प्रसिद्धा या वित्तार्थ सेवते नरम्। तन्नाम दारिका दासी वेश्या पत्तननायिका।।
(लाटीसंहिता २/१२९) पण्याङ्गना (स्त्री०) वेश्या। (दयो० ६३ पत् (अक०).गिरना, नीचे आना, पड़ना। (सुद० ३/२४)
* उतरना, घटित होना, डुबोना। पत्यु (सुद० ४/१८) शिखरतस्तु पतन्ति बृहत्तरोः पदसरोरुहयोश्च जगद्गरोः। (जयो० १/९३)
नमस्कार करना, पैरों में झुकना। पततो नृपतीन् पदयोरुदतोलयदेष पाणियुग्मेन। (सुद०६/५२) चरणयोर्मूले पततो नमस्कुर्वतो नृपतीन्। (जयो०पृ० ५२) 'दीपे पतङ्ग पतन्' (सुद० १२७) इत्येवं पदयोर्दयोदयवतो नूनं पतित्वाऽथ
सा। (सुद० १२४) पतः (पुं०) [पत्+अच्] उड़ान, जाना, गिरना, उतरना। पतङ्गः (पुं०) [पतन्-उत्प्लवन् गच्छति-गम्+ड] ०पतंग,
चार इन्द्रिय जीव, जो दीपक की लौ या तेज रोशनी में तेज की ओर खिंचा चला जाता है और उससे प्रणांत को प्राप्त हो जाता है। दीपे पतङ्गः पतन्। (सुद० १२७) शलभ, टिड्डीदल, टिड्डा। मधुमक्खी । ०सूर्य। (जयो० १५/२०)
०पक्षी। पतङ्गं (नपुं०) पारा। चंदन की लकड़ी। पतङ्ककः (पुं०) पतंग, चार इन्द्रिय जीव। पतङ्गसन्त्रायित (वि.) पतंग/पक्षी उड़ाने में संलग्न।
(वीरो०१२/२०) पतङ्गमः (पुं०) पक्षी, शलभ। पतनिका (स्त्री०) [पतंग+कन्+टाप्] मधुमक्खी, छोटी चिड़िया। पतङ्गवीथिका (स्त्री०) अनियत प्रवेश, अनियत गति से जाना,
साधुचर्या का एक दोष। पतङ्गावलिः (स्त्री०) शलभपंक्ति। (जयो० १०/११५) पतम्चिका (स्त्री०) [पतं शत्रु चिक्कयति पीडयति] धनुष की
डोरी। पतज्जल (वि०) भूतल पर गिरता जल। (जयो० १२/१३१)
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