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पट:
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पट्ट
पट: (पुं०) [पट् वेष्टने करणे घनर्थे कः] वस्त्र, कपड़ा, | पटानुझितवान् (पुं०) दिगम्बरी दीक्षा। विजनं स विरक्तात्मा
चिथड़ा, लता। (समु० ९/३) (जयो० २/२८) (सम्य० गत्वाऽप्यविजनाकुलम्। निष्कपटत्वमुद्धर्तुं पटानुज्झितवानपि।। १०९)
(वीरो० १०/२४) ०चूंघट, परदा।
पटालुका (स्त्री०) [पट+अल्+उक्टाप्] जौक। पट (नपुं०) छत, छप्पर, आवरण। ०वस्त्र।
पटिः (स्त्री०) [पट्+इन्] ०मत्र का परदा, रंगशाला का वस्त्र। पटकः (पुं०) पड़ाव, शिविर।
०कनाता पटकारः (पुं०) जुलाहा, तन्तुवाय।
पटिमन् (पुं०) [पटु+इमनिच्] निपुणता, दक्षता, चतुराई चित्रकार।
नैपुण्य, प्रचंडता, तीव्रता। ०बुद्धि कौशल। पटकुटी (स्त्री०) तम्बू, शामियाना, पाल।
पटीरः (पुं०) [पट्-ईरन्] ०खेलने की गेंद, चंदन लकड़ी। पटच्चरः (पुं०) [पटत् इति अव्यक्तशब्द चरति-पटत्+
०कामदेव। च+अच्] चोर।
पटीर (नपुं०) ०कथा, चलनी पेट, ०खेत, मेघ। पटच्चरं (नपुं०) जीर्णवस्त्र, चिथड़ा, लत्ता।
ऊँचाई। पटत्कः (पुं०) चोर।
पटीरजन्मन् (पुं०) चन्दन तरु। पटना (स्त्री०) पाटलीपुत्र, विहार की राजधानी। (सुद० हि०
पट (वि०) ०चतुर, कुशल, प्रवीण। दक्ष, होशियार, निपुण, ११६)
योग्य। पटपटा (अव्य०) अनुकरण मूलकध्वनि।
तीक्ष्ण, तीखा, चरपरा। पटबुद्धिः (स्त्री०) प्रचुर तन्तु युक्त वस्त्र की तरह बुद्धि,
कर्कश, कठोर।
०प्रवण, स्वस्थ। सूक्ष्मबुद्धि। पटभवनं (नपुं०) शिविर, तम्बू। 'रचितानि शिविराणि पटभवनानि'
०कठोर, क्रूर, पाषाणहृदय। (जयो०वृ० १३/६५)
चालाक, धूर्त।
०सक्रिय, व्यस्त। पटभागः (पुं०) वस्त्र का हिस्सा।
पटुक (वि०) मनोहर, सुखद। धयं विपाकपटुकं कटुकं पटमंडलः (पुं०) तम्बू।
विपश्चित्। (जयो० २७/६४) पटलं (नपुं०) छप्पर, छत।
पटुकल्पः (पुं०) तीक्ष्णबुद्धि, चतुरधी वाला। ०ढक्कन, आवरण, अवगुण्ठन, लेपन।
पटुत्व (वि०) चतुरता, तीक्ष्णता। 'मुखस्य सम्भाषणराशि, समुच्चय, समूह। (दयो० ८६)
पटुत्वादित्याशयः' चातुर्य। (वीरो०१/१८) (जयो०वृ० १/५५) पटवापः (पुं०) तम्बू, शिविर।
पटुदेशीय (वि०) तीक्ष्णबुद्धि वाला। पटवेश्मन् (नपुं०) तम्बू, शिविर।
पटुवाक्यता (वि०) तीक्ष्णता युक्त वचनावली, कर्कश शब्दावली। पटवासः (पुं०) तम्बू, सुगन्धित चूर्ण। ०घाघरा, पेटीकोट।
बोलने की अतुरता (दयो० ७०) औदार्य रूपमारोग्यं पटवासकः (पुं०) सुगन्धित चूर्ण।
दृढत्वं पटुवाक्यता। (दयो०७०) पटसंहारः (पुं०) कपड़े की कतरन। (समु० ९/२३)
पटोलः (पुं०) [पट् ओलच्] परमल, जो पान की पनवाड़ी पटहः (पुं०) [पटेन हन्यते-पर+हन्+ड] ०नगाड़ा, ठक्का , | में होता है। घोंसा, ढोल, नगारा, (जयोवृ० १०/२२) (जयो० १२/७८)
पटोल (नपुं०) ०एक प्रकार का वस्त्र। चमकदार वस्त्र। आवक, दुन्दुभी। (वीरो० ११/६३) आनकः पटहो ढक्का | पटोलका (स्त्री०) [पटोल+कै+क] शुक्ति, सीप, घोंघा। इत्यमरः। 'पटह आतोद्यविशेषः' (जयो०वृ० १८/१०)
पट्टः (पुं०) •पाट, शिला, गोल पत्थर। घायल करना, मारना।
पटें (नपुं०) [पट्+क्त] शिला, प्रस्तर, लोष्ठ। (जयो० ७/८५) पटहघोषकः (पुं०) ढिंढोरची. नगाड़ा पीडने वाला।
राजाज्ञा, राज अनुदान, राजकीय सहायता, पट्टलिखना। पटहशब्दं (नपुं०) दुन्दुभी शब्द।
मुकुट, आसन देना।
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