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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चष ५९२ पट् समूह। पञ्चष (वि०) पांच-छह। अर्हन्नथो सिद्ध इतो गणेश साध्यापकः साधुरनन्यवेशः। पञ्चषष्ठ (वि०) पैंसठवां। पञ्चाश्रया ये परमेष्ठितायास्ते सन्तु नित्यं गुरवः सहाया:।। पञ्चषष्ठिः (स्त्री०) पैंसठ। (भक्ति०१७) पञ्चसप्तत (वि०) पचहत्तरवां। पञ्चाश (वि०) पचासवां। पञ्चसप्ततिः (स्त्री०) पचहत्तर। पञ्चाशत् (स्त्री०) पचास। पञ्चसहस्रं (नपुं०) पांच हजार। (समु० ६/१८) पञ्चाशति (स्त्री०) पचास। पञ्चसालीधान्यं (नपुं०) पांच साली धान्य। पञ्चाशितका (स्त्री०) [पञ्चाश+क+टाप्] पचास श्लोक का पञ्चहायन (वि०) पांच वर्ष की वय का। पञ्चाकारः (पुं०) पांच प्रकार की आकृति। पञ्चाश्चर्यः (पुं०) पांच आश्चर्य (जयो००६/१३२) पुष्पवृटि पञ्चाक्षं (नपुं०) पांच इन्द्रियां। (जयो० २८/७०) स्पर्शन, आदि। रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण। पञ्चेन्द्रियं (नपुं०) पांच इन्द्रियां (वीरो० १९/३५) (सुद० पञ्चाङ्गः (पुं०) ग्रोचर ग्रह। (दयो० ४) १२७) 'पञ्च स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षुः श्रोत्ररूपाणीन्द्रियाणि पञ्चाङ्गरूपः (पुं०) ज्योतिषशास्त्र के तिथि, वार, नक्षत्र, योग येषां ते पञ्चेन्द्रियाः' (जैन०ल० पृ० ६५७) और कारण ये पांच ग्रह गोचर रूप हैं। पञ्चेन्द्रियपराधीनः (पुं०) पांचों इन्द्रियों के वशीभूत। हस्ती गोचर भूमि वाले ग्रामवासी कृषक-सादा भोजन, सादा स्पर्शन-सम्वशोभुवि वशामामाद्य सम्बद्ध्यते, मीनोऽसौ पहनावा, पशुपालन, कृषिकरण और सादा रहन-सहन। वडिशस्य मांसमुपयन्मृत्यु समापद्यते। पञ्चाङ्ग रूपा खलु यत्र निष्ठा सा गोचराधारतयोपविष्टा। अम्भोजान्तरितोऽलिरेवमधुना दीपे पतङ्गः पतन, भवानिनो वत्सलताभिलाषी स्पृशेदपीत्थं बहुधान्यराशिम्।। सङ्गीतैकवशङ्गतोऽहिरपि भो तिष्ठेत-करण्डं गतः।। एकै (सुद० १/२१) काक्ष-वशेनामी विपत्ति प्राप्तुवन्ति चेत्। पश्चेन्द्रिय-पराधीन: पञ्चाचारः (पुं०) पांच प्रकार का चरित्र, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, पुमाँस्तत्र किमुच्यताम्। (सुद०पृ० १२७) चरित्राधार, तपाचार और वीर्याचार (भक्ति० ७) पञ्जरं (नपुं०) [पञ्। अरन्] पिंजरा, चिड़ियाघर। (वीरो० पञ्चाचारभक्तिः (स्त्री०) पांच प्रकार के आचार/चारित्र पर २/४०) पक्षीनिलयतित्तिर-लावक-हरिणादिधरणार्थं विरचितं भक्ति भाव। (भक्ति० ७) ग्रन्थिविशेषकलित-रज्जुमयं जालं पञ्जरः। (जैन०ल० ६५७) पञ्चातप (वि०) पांच अग्नियों से तप, चारों ओर अग्नि एवं शरीर, कलियुग। सूर्य तपन रूप तप वाला तपस्वी। ०आतापना। ०कंकाल, ठठरी। पञ्चाननः (पुं०) सिंह, शेर। (दयो० ४४, वीरो. १७/३०) पञ्जरकः (पुं०) पिंजड़ा। (समु० ५/८) आखुः प्रवत्तौ न कदापि तुल्य:। पञ्चाननेनानुशयैकमूल्यः। पंञ्जिः (स्त्री०) [पञ्ज+इन] ०रुई का गाला, पूनी। तथा मनुष्येषु न भाति भेदः मूकेऽथ तूलेन किमस्तु खेदः।। अभिलेख, बही, पंजिका। (वीरो० १७/३०) जंत्री, पत्रक, पाना, पञ्चांग। पञ्चायतः (पुं०) पञ्चेन्द्रिय प्रवृत्ति। 'पञ्चानामिन्द्रियाणामाय आजीवनं पञ्जिका (स्त्री०) ०अभिलेख, सूची, लिपिबद्धता। तस्य।' (जयो०वृ० २७/६६) विवेचन, निरूपण। पञ्चायतनं (नपुं०) पांच इन्द्रियां निजानि पञ्चायतनानि तर्पयन्नवाप व्याख्या, शब्द विश्लेषण। पापं मनागनाकुलः। (जयो० २३/६) न्यन्त्रीपत्रक। पञ्चायुतः (पुं०) पांच हजार। 'वीरस्य पञ्चायुतबुद्धिमत्सु | पट् (सक०) फाड़ना, टुकड़े करना, विदीर्ण करना, विभक्त सकृत्प्रभावः समभून्महत्सु। (वीरो० १४/४६) करना। पञ्चालिका (स्त्री०) पुत्तलिका, गुड़िया। छेदना, घुसेड़ना, भेदना, चुभोना। पञ्चाली (स्त्री०) पुत्तलिका, गुड़िया। ०उन्मूलन करना, खोटना, उखाड़ना। पञ्चाश्रयः (पुं०) पांच का आधार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, ०खींचना, बाहर करना। उपाध्याय और साधु का आश्रय। गूंथना, बुनना, लपेटना। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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