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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पङ्कजिनी पञ्चधा पङ्कजिनी (स्त्री०) कुमुद पादप, कमलदण्ड। पचनः (वि०) पकाया हुआ, पक्व किया हुआ। पङ्कप्रभा (स्त्री०) एक नरक की भूमि। (समु० ५/३४) पचनः (पुं०) अग्नि। पङ्कमंडुकः (पुं०) द्विकोष शंख। पचनं (नपुं०) [पच ल्युट्] ०पचाना, भोजन बनाना, परिपक्व पङ्करुह् (नपुं०) कमल। करना। पङ्कवासः (पुं०) केंकड़ा। ईंधन, बर्तन, भाण्ड, पात्र। पङ्कारः (पुं०) [पङ्क+ऋ+अण] सिवार। पचा (स्त्री०) [पच्+अड्+टाप्] पकाने की क्रिया। सीढ़ी, नसैनी, जीना, पौड़ियां। पचिः (स्त्री०) [पच्+इनि] अग्नि। ०बांध, मेंड। पचेलिम (वि०) [पच्+एलिमच्] इच्छा करने वाला। पङ्किल (वि०) [पंक+इतच्] मैला, मलिन, गंदला, कर्दम | (सुद० ९८) ०शीघ्र ही पकने वाला, ०परिपक्व होने (जयो० ११/४) योग्य, ०स्वतः पकने वाला। पङ्किलत्व (वि०) कर्दमबाहुल्य। (जयो० ११/४) पचेलूकः (पुं०) [पच्+ एलुक] रसोइया। पढ़ेजं (नपुं०) [पके जायते-पंके+जन्ड् ] कमल। पञ्च (सं०वि०) पांच संख्या। (सम्य० १८) पड़ेजात (वि०) कीचड़ में उत्पन्न कमल। (जयो० १४/५८) पञ्चक (वि०) [पञ्चकन्] पांच से युक्त, पांच से सम्बद्ध, पङ्केरुह् (नपुं०) कमल। (जयो० ५/६००) पांच का समावेश। (जयो० ११/४६) 'अ सि आ उ सा पढ़ेरुहः (पुं०) सारस पक्षी। इत्येव' (जयो० १९/५५) 'हाँ ह्रीं हूँ, हौं ह्रः। (जयो०१९/५५) पड़ेशय (वि०) [पंके+शी+अच्] कीचड़ में रहने वाला। पञ्चता (स्त्री०) पांच गुना, पांच का समूह। पङ्क्तिः (स्त्री०) [पंच्+क्तिन्] ० श्रेणी, कतार। पञ्चकर्मन् (नपुं०) पांच विधि, पंचक्रिया। ०समूह, समुदाय, संग्रह दल, रेवड़। पञ्चकृत्वस् (अव्य०) पांच बार। ०पृथ्वी। पञ्चकोणं (नपुं०) पांच कोण की आकृति। यश, प्रसिद्धि। पञ्चकोषा (पुं०) पांच प्रकार का परिधान। ०संख्या समूह। पञ्चकोशी (स्त्री०) पांच कोश की दूरी, मृत्यु, प्रणाश, पंक्तिग्रीवः (पुं०) रावण। विनाश। (जयो० ३/२४) पंक्तिचरः (पुं०) समुद्री पक्षी। पञ्चत्व (वि०) पांच से युक्त, पांच संख्या वाला, पञ्चमभाव। पंक्तिबद्ध (वि०) कतारबद्ध। (जयो० १/८३) (जयो०वृ० (जयो० १/४८) १३/६४) पञ्चथुः (पुं०) [पञ्चन्+अथुच्] ०समय, कोयल। पंक्तिवर्ज (वि०) पंक्तियुक्त, श्रेणीगत, एक दल से युक्त। पञ्चतत्त्वं (नपुं०) पांच तत्त्व, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पंक्तिश (वि०) पंक्तिबद्ध, क्रम से, एक समूह, वाला। आकाश। (जयो०वृ० १२/११८) पञ्चतपस् (पुं०) पञ्चतप वाला। पंगु (वि०) [खञ्ज+कु, खस्य पत्वे जस्य गादेशः] लंगड़ा, | पञ्चतय (वि०) पांच गुणा। खंज, एक पैर से लडखड़ाता। पञ्चत्रिंश (वि०) पैंतीसवां। पंगुः (पुं०) लंगड़ा। पञ्चत्रिंशत् (स्त्री०) पैंतीस। पंगूल (वि०) [पंगु+लच्] विकलांग, लंगड़ा, अपंग। पञ्चदर्शन् (वि०) पन्द्रह। पच् (सक०) पकाना, पचाना, भूनना। पञ्चदशसर्गः (पुं०) पन्द्रहवां सर्ग। ० भोजन तैयार करना। पञ्चदशी (वि०) पन्द्रह से युक्त। [पञ्चानां दशानां समाहारः] पूर्ण करना, परिपक्व करना। (जयो० ५/९९) गलाना, उबालना। ०पूर्णिमा। पचतः (पुं०) [पच्+अत] ०अग्नि, आग। ०इंगाल, अंगार। | पञ्चदीर्घ (नपुं०) पांच दीर्घ। सूर्य, ०इन्द्र। पञ्चधा (अव्य०) [पञ्चन्+ध] पांच प्रकार से पंचभेद तत्व। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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