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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नैमित्तिकता ५८५ नैसर्गिक नैमित्तिकता (वि०) नैमित्तिकपना। (सम्य० ६) नैमिष (वि०) [निमिष अण] अस्थायी, क्षणिक, क्षणभर रहने वाला। नैमेय (वि०) विनिमय, लेन-देन, अदला-बदली। नैयग्रोधं (नपुं०) [न्यग्रोध+अण] बड़फल, बरगद फल, बरगद पेड़, वटवृक्षा एक संस्थान विशेष। नैयमिक (वि०) [नियम+ठक्] नियमित, नियम सम्बन्धी। नैयायिक (वि०) [न्याय+ठक्] न्यायदर्शन का अनुयायी। (वीरो०७० ३/१९) नैरर्थ्य (वि०) [निरर्थ+ष्यञ्] निरर्थकता, बकवास। नैरयिक (वि०) [निरर्थ+ष्यञ्] नरकगामी। नैराश्य (वि०) [निराश+ष्यञ्] निरर्थकता, बकवास। नैराश्य (वि०) [निराश+ष्यञ्] निराशा, आशा का अभाव। (वीरो० २०/२४) निराशापन, (सुद० ११७, ८४) तृष्णा से रहित। (वीरो० १४/३१) नैराश्यमेवयस्याशाऽऽरम्भङ्गविवर्जितः। साधुः स एव भूभागे ध्यानाध्ययनतत्परः।। (सम्य० ९४) नैराग्य-निगडं (नपुं०) निराशा रूप सांकल। अभिवाञ्छसि चेदात्मन् सत्कर्तुं संयमद्रुमम्। नैराश्य-निगडेनैतन्मनोमर्कटमाधर।। (वीरो० ११/४३) नैरुक्त (वि०) [निरुक्त+अण्] निरुक्ति ज्ञाता, शब्द व्युत्पत्ति का जानकार। नैरुज्य (वि०) [निरुज+व्य] आरोग्य, स्वास्थ्य। नैर्ऋतः (पुं०) [निऋति+अण] राक्षस। नैर्गुण्य (वि०) [निर्गुण+ष्यञ्] निर्गुणता, सद्गुणों की हीनता। नैपुण्य (वि०) [निघृण-ष्यञ्] घृणा की अधिकता, निर्ममता, क्रूरता। नैर्जुप्सा (वि०) जुगुप्सा का अभाव। (जयो० २।८२) नैर्जुगुप्सि (वि०) ग्लान्यभाव। (जयो० २/७६) नैर्मल्य (वि०) निर्मलता, स्वच्छता, शुद्धता। (जयो० १८/६६) निःशेषतो मले नष्टे नैर्मल्यमधिगच्छति। (सुद० १३५) नैर्लज्ज्य (वि०) [निर्लज्य+ष्यञ्] निर्लज्जता, ढीठपन। नैव (अव्य०) नहीं, ऐसा नहीं-'नैव लोकविपरीतमञ्चितुम्' (जयो० २/१५) प्रवेष्टुं नैव शक्नोति चटिका त्वन्तु चेटिका। (सुद०९४) नैविड्य (वि०) निविडता, घनिष्टता, संशक्तता। नैवेद्यं (नपुं०) [निवेद+ष्यञ्] देवार्चन में प्रयुक्त द्रव्य, भोज्य द्रव्य। (जयो० २४/७१) जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प और पञ्चम नैवेद्य। 'क्षुद्यारोगविनाशनाय-नैवेद्यम्' षड्-रसमयनाना-व्यञ्जन-दलमविकलमपि च सुधायाः, सम्बलमादायार्पयेयमहमग्रे जिनमुद्रायाः वशेऽपि स्यां न क्षुधायाः।। (सुद० पृ० ७२) नैवेद्य-गुल्गुला इति जयोदय काव्ये वि। (जयो० ११) नैःशङ्ग्य (वि०) निर्ग्रन्थता, परिग्रह त्यागपना। (मुनि० ५) नैशिक (वि०) रात्रि विषयक। नैश्चल्य (वि०) [निश्चल+ष्यञ्] अचलता, स्थिरता, दृढ़ता। नैश्चल्यमाप्त्वा विलसेद्यदा तु तदा समस्तं जगदत्र भातु। (वीरो० २०/४) नैषध (वि०) निषधदेशवासी, निषध देश में उत्पन्न होने वाला। नैषधः (पुं०) निषध पर्वत। (जयो० २४/१०) नैषधि (वि०) निषध पर्वत संबंधी। नैषेधिकी (स्त्री०) उत्तरगुण एवं मूलगुणधारी। (जयो० २४/९) नैष्कर्म्य (वि०) [निष्कर्म+ष्यञ्] अकर्मण्यता, क्रियाहीनता, उद्यमविहीनता। समेति नैष्कर्म्यमुतात्मनेयं नैराश्यमभ्येत्य चराचरे यः। (वीरो० १४/३१) नैष्किक (वि.) [निष्क+ठक] निष्क से निर्मित, टकसाल में बना हुआ। नैष्ठिक (वि०) [निष्ठा+ठक] उपसंहारक, अन्तिम। निर्णायक, निर्णीत, निश्चयात्मक। स्थिर, दृढ़। नैष्ठिकः (पुं०) आध्यात्मिक शिक्षा में निपुण। नैष्ठिक ब्रह्मचारी (वि०) आजीवन ब्रह्म में विचरण करने वाला, भिक्षावृत्ति पूर्वक विचरण करने वाला। जिसका क्रियाकाण्ड, आवरण पर्यन्त स्त्री से रहित हो। नैष्ठिकश्रावकः (पुं०) जो निष्ठापूर्वक धर्माचरण करता, धर्म के प्रति निष्ठावान्, निरतिचार रूप से श्रावक धर्म परिपालक। नैष्ठिकः निष्ठयाचरति तत्र वा भव:' (सागारधर्मामृत टी०१/२०) मूलोत्तर-गुण-श्लाघ्यतपोऽनुष्ठाननिष्ठा' (सा०ध० ३/१) नैष्ठुर्य (वि०) [निष्ठुर+ष्यञ्] निष्ठुरता, कठोरता, क्रूरता। नैष्ठुर्ययो (पुं०) निष्ठुर व्यवहार। (सुद० १३४) नैष्ठ्य (वि०) [निष्ठ+ष्यञ्] दृढ़ता, परिपक्वता, स्थायित्व। नैष्प्रतीच्छयं (वि०) अप्रतिग्रह। (जयो० २/७४) नैसर्गिक (वि.) [निसर्ग+ठक] स्वाभाविक, निसर्गज, सहज, अन्तर्जात, स्वतः उत्पन्न। 'नैसार्गिको मेऽभिरुचिवितक' (वीरो०५/२३) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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